Sunday, December 27, 2009

दिल में और तो क्या रखा है

दिल में और तो क्या रखा है
तेरा दर्द छुपा रखा है।

इतने दुखों की तेज़ हवा में
दिल का दीप जला रखा है।

इस नगरी के कुछ लोगों ने
दुख का नाम दवा रखा है।

वादा-ए-यार की बात न छेड़ो
ये धोखा भी खा रखा है।

भूल भी जाओ बीती बातें
इन बातों में क्या रखा है।

चुप चुप क्यों रहते हो ‘नासिर’
ये क्या रोग लगा रखा है

--नासिर काज़मी

जान-ओ-दिल से मैं हारता ही रहूँ

जान-ओ-दिल से मैं हारता ही रहूँ
गर तेरी जीत मेंरी हार में है।
क्या हुआ गर खुशी नहीं बस में
मुसकुराना तो इख़्तियार में है।
–-फरहत शहजाद


इख़्तियार = Choice, Control, Influence, Option, Right

वही पलकों का झपकना वही जादू तेरे

वही पलकों का झपकना वही जादू तेरे
सारे अंदाज़ चुरा लाई है ख़ुशबू तेरे।

तुझसे मैं जिस्म चुराता था मगर इल्म न था
मेरे साये से लिपट जाएँगे बाज़ू तेरे ।

तेरी आँखों में पिघलती रही सूरत मेरी।
मेरी तसवीर पे गिरते रहे आँसू तेरे।

और कुछ देर अगर तेज़ हवा चलती रही
मेरी बाँहों में बिखर जाएँगे गेसू तेरे।

--अज्ञात

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते?

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते?
ख़त किसलिए रखे हैं जला क्यों नहीं देते?

किस वास्ते लिखा है हथेली पे मेरा नाम
मैं हर्फ़ ग़लत हूँ तो मिटा क्यों नहीं देते?

लिल्लाह शब-ओ-रोज़ की उलझन से निकालो
तुम मेरे नहीं हो तो बता क्यों नहीं देते?

रह रह के न तड़पाओ ऐ बेदर्द मसीहा
हाथों से मुझे ज़हर पिला क्यों नहीं देते?

जब इसकी वफ़ाओं पे यकीं तुमको नहीं है
‘हसरत’ को निग़ाहों से गिरा क्यों नहीं देते?

–-हसरत जयपुरी


हर्फ = Syllable, Letter
शब-ओ-रोज़ = Night and Day

Lyrics: Hasrat Jaipuri
Singer: Hussain Brothers

लोग कहते आये हैं जिसे ज़िन्दगी

for people who die to love, they are actually loving to die

लोग कहते आये हैं जिसे ज़िन्दगी
हमने तो उसकी हर अदा में मौत देखी है

--अज्ञात



(here 'zindagi' is the loved girl, jise dekhkar aashiq jite hain...ya fir pal-pal marte hain... )

खूब करता है, वो मेरे ज़ख्म का इलाज

खूब करता है, वो मेरे ज़ख्म का इलाज
कुरेद कर देख लेता है, और कहता है वक्त लगेगा !!

--तपेश कुमार

ना वो जाल रखती है, ना ज़ंजीर रखती है

ना वो जाल रखती है, ना ज़ंजीर रखती है
पर नज़रों से वार करने की तासीर रखती है
निकल जाती है पास से अजनबी बनकर दोस्तो
जो रात को तकिये के नीचे मेरी तस्वीर रखती है
--अज्ञात

तमन्ना कोई मेरे दिल की पूरी ना हुई

तमन्ना कोई मेरे दिल की पूरी ना हुई
चाहत का कोई अफसाना ना बना
आज फिर चली गयी नज़रों के सामने से
आज फिर उस से बात करने का बहाना ना बना
--अज्ञात

वो ख्वाबो की तरह सच्चा बहुत था

वो ख्वाबो की तरह सच्चा बहुत था
ये धोखा था मगर अच्छा बहुत था

वो मेरा है गलतफहमी थी मुझको
पर ये सच है मैं उसका बहुत था

--अज्ञात

Saturday, December 26, 2009

मुमकिन है, ज़िन्दगी का ये अन्दाज़-ए-इश्क़ हो

मुमकिन है, ज़िन्दगी का ये अन्दाज़-ए-इश्क़ हो
तु उसकी बेरुखी में कभी डूब के तो देख

--राजेश रेड्डी

Thursday, December 24, 2009

ज़माने के सवालों को मैं हस के टाल दूँ फराज़

ज़माने के सवालों को मैं हस के टाल दूँ फराज़
लेकिन नमी आंखों की कहती है, मुझे तुम याद आते हो
--अहमद फराज़

उसे मैं याद आता तो हूँ फुरसत के लम्हों मे फराज़

उसे मैं याद आता तो हूँ फुरसत के लम्हों मे फराज़
मगर ये हकीकत है, के उसे फुरसत नहीं मिलती
--अहमद फराज़

लाज़िम है मोहब्बत की कसक दोनो तरफ़ हो

लाज़िम है मोहब्बत की कसक दोनो तरफ़ हो
इक हाथ से तो ताली बजाई नही जाती
इक तुम हो फ़राज़ के करते नही इज़हार-ए-मोहब्बत
हम से तो दिल की बात छुपाई नही जाती
--अहमद फराज़

ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई

ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
चले आओ के दुनिया से जा रहा है कोई

कोई अज़ल से कह दो, रुक जाये दो घड़ी
सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई

वो इस नाज़ से बैठे हैं लाश के पास
जैसे रूठे हुए को मना रहा है कोई

पलट कर न आ जाये फ़िर सांस नब्ज़ों में
इतने हसीन हाथो से मय्यत सजा रहा है कोई

--अहमद फराज़

दिल गुमसुम, ज़ुबां खामोश

दिल गुमसुम, ज़ुबां खामोश, ये आंखें आज नम क्यों है
जब तुझे कभी पाया ही ना था, तो फिर आज खोने का ग़म क्यों है
--अज्ञात

Saturday, December 19, 2009

ये इश्क़ भी क्या है, इसे अपनाये कोई और

ये इश्क़ भी क्या है, इसे अपनाये कोई और
चाहूँ किसी और को, और याद आये कोई और
उस शक्स की महफिल कभी बरपा हो तो देखो
हो ज़िक्र किसी और का, शरमाये कोई और
--अज्ञात

Friday, December 18, 2009

कितने पास कितने दूर हैं हम

कितने पास कितने दूर हैं हम
खुदा ही जानता है कितने मजबूर हैं हम
सज़ा ये है कि मिल नहीं सकते आपसे
और गुनाह ये है के बेकसूर हैं हम
--अज्ञात

दिल दे तो इस मिजाज़ का परवरदिगार दे

दिल दे तो इस मिजाज़ का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी को खुशी में गुज़ार दे
--दाग देहलवी

Sunday, December 13, 2009

MISSED CALL तो मार दे

उस प्यारी सी सूरत का फिर एक बार दीदार दे
तड़प रहे हैं हम यहां, अब और ना इंतज़ार दे
आवाज़ मत सुना ए ज़ालिम मगर
कम से कम एक MISSED CALL तो मार दे
--अज्ञात

दिल को आता है जब भी खयाल उनका

दिल को आता है जब भी खयाल उनका
तस्वीर से पूछा करते हैं हम हाल उनका
वो कभी हम से पूछा करते थे, जुदाई क्या है
आज समझ आया है सवाल उनका
--अज्ञात

खफा है मुझसे, मुझे परेशान करता है

खफा है मुझसे, मुझे परेशान करता है
अजब शक्स है, खुद से बदगुमान करता है

न मेरी परवाह है, न मेरे हाल की कुछ फिक्र
सलूक वो करने लगा है, जैसे अनजान करता है

वो मेरे ज़िक्र पे मुझसे कतरा कर गुज़र जाना
ऐसा लगता है, जैसे वो दूरी का सामान करता है

पहले तो मुझसे मिलना ही एहम था जिसके लिये
अब मिलता है, तो जैसे एहसान करता है

तालुक तोड़ना है तो आ के कह दे मुझसे
वो ऐसी बातें क्यों ग़ैरों से बयान करता है

--अज्ञात

Saturday, December 12, 2009

ज़ुल्फें हैं उसकी भीगी हुई रात की तरह

ज़ुल्फें हैं उसकी भीगी हुई रात की तरह
लेहज़ा खुश्क खुश्क सा है बरसात की तरह
खुश्बू से उस हसीन की महकी है कायनात
उसका ख्याल भी है मुलाकात की तरह
--अज्ञात

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
--डा कुमार विश्वास

सीख जायेगा

हवा के रुख पे रहने दो, जलना सीख जायेगा
कि बच्चा लड़खड़ायेगा तो चलना सीख जायेगा

वो पहरों बैठ कर तोते से बातें करता है
चलो अच्छा है, अब नज़रें बदलना सीख जायेगा

इसी उम्मीद पर बदन को हमने कर लिया छलनी
कि पत्थर खाते खाते पेड़ फलना सीख जायेगा

ये दिल बच्चे की सूरत है, इसे सीने में रहने दो
बुरा होगा जो ये घर से निकलना सीख जायेगा

तुम अपना दिल मेरे सीने में कुछ दिन के लिये रख दो
यहां रह कर ये पत्थर भी पिघलना सीख जायेगा

--मुनव्वर राणा

सब की पूजा एक सी, क्या मन्दिर क्या पीर

सब की पूजा एक सी, क्या मन्दिर क्या पीर
जिस दिन सोया देर तक, भूखा रहा फ़कीर
--अज्ञात


Another version of this is here

कीमती पीते हैं, लाजवाब पीते हैं

कीमती पीते हैं, लाजवाब पीते हैं
बहुत पीते हैं, बेहिसाब पीते हैं
जब भी आती है तेरी याद
हम खून बेच कर शराब पीते हैं
--अज्ञात

Wednesday, December 9, 2009

मुझे नसीब हुआ उसके ध्यान में रहना

मुझे नसीब हुआ उसके ध्यान में रहना
ज़मीन पे होते हुए आसमान में रहना

मैं जानती हूँ की वो मेरा हो नहीं सकता
मुझे पसंद है लेकिन गुमान में रहना

मुहब्बतों में जो दिल बे-क़रार हो जाएँ
उन्हें नसीब कहाँ इत्मिनान में रहना

किसी किसी को दिया मर्तबा खुदा ने ये
किसी का होना किसी की अमान* में रहना

मुझे नसीब हुआ उसके ध्यान में रहना
ज़मीन पे होते हुए आसमान में रहना

--अज्ञात


अमान=security

जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे

जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहां है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
--अहमद फराज़


जुज़=other than

Source : http://www.urdupoetry.com/faraz31.html

शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे ना दो

शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे ना दो
मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे ना दो

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे ना दो

ऐसा कहीं ना हो के पलटकर ना आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदायें मुझे ना दो

कब मुझ को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत ना था 'फ़राज़'
कब मैं ने ये कहा था सज़ायें मुझे ना दो

--अहमद फ़राज़


Source : http://www.urdupoetry.com/faraz07.html

Monday, December 7, 2009

खूबसूरती भी क्या बुरी चीज़ है

खूबसूरती भी क्या बुरी चीज़ है ग़ालिब
जिसने भी कभी डाली बुरी नज़र ही डाली

--मिरज़ा ग़ालिब

पहलू में रह के दिल ने दिया बड़ा फरेब

पहलू में रह के दिल ने दिया बड़ा फरेब
रखा है उसको याद, भुलाने के बाद भी

--अज्ञात

Sunday, December 6, 2009

हम याद नहीं करते तो भुलाते भी नहीं

हम याद नहीं करते तो भुलाते भी नहीं
हम हसते भी नहीं तो किसी को रुलाते भी नहीं
आप जैसे अनमोल दोस्त सम्भाल रखे हैं
अगर और बना नहीं सकते तो किसी को गंवाते भी नहीं

--अज्ञात

गुलशन में सब को जुस्तजू तेरी है

गुलशन में सब को जुस्तजू* तेरी है
बुल्बुल की ज़ुबां पे गुफ्तगू तेरी है
हर रंग में है जल्वा तेरी दोस्ती का
जिस फूल को सूंघता हूँ, खुश्बू तेरी है

--अज्ञात


जुस्तजू=Desire

है याद मुलाक़ात की वो शाम अभी तक

है याद मुलाक़ात की वो शाम अभी तक
मैं तुझको भुलाने में हूँ नाकाम अभी तक

आ तुझको दिखाऊँ तेरे बाद ए सितमगर
वीरान पड़ा है दर-ओ-बाम अभी तक

गर तर्क-ए-ताल्लुक को हुआ एक ज़माना
होंटों पे मचलता है तेरा नाम अभी तक
तर्क-ए-ताल्लुक=रिश्ता तोड़ना

महसूस ये होता है के वो हम से खफा हैं
क्या तर्क-ए-मोहब्बत का है इल्ज़ाम अभी तक

मैंखाने में भूले से चले आये हैं मोहसिन
एहबाब की नज़रों में है बदनाम अभी तक

--मोहसिन नक़वी

हर शाम हर रात इंतज़ार में गुज़री

हर शाम हर रात इंतज़ार में गुज़री
ज़िन्दगी बेबसी के सैलाब में गुज़री
हम वो फूल थे जिसे वो रख के भूल गये
फिर तमाम उम्र उनकी किताब में गुज़री

--अज्ञात

Saturday, December 5, 2009

यादों में बसा रखा है तुझे इस कदर

यादों में बसा रखा है तुझे इस कदर
कोई वक्त पूछे तो तेरा नाम बताते हैं

--अज्ञात

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता

अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता

ना मज़ा है दुश्मनी में ना है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता

ये मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती
ना तुम्हें क़रार होता ना हमें क़रार होता

तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िन्दगी का हमें ऐतबार होता

--दाग़ देहलवी


Source http://www.urdupoetry.com/daag04.html

उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में

उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में

कितना है बद_नसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी ना मिली कू-ए-यार में
कू-ए-यार=यार की गली

--बहादुर शाह ज़फर

तेरे हुस्न को परदे की ज़रूरत ही क्या है ग़ालिब

तेरे हुस्न को परदे की ज़रूरत ही क्या है ग़ालिब
कौन होश में रहता है, तुझे देखने के बाद

--मिरज़ा ग़ालिब

गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गये

गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गये
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गये

--ख़ातिर ग़ज़नवी


Source : http://www.urdupoetry.com/kgaznavi01.html

Friday, December 4, 2009

दुनिया में और भी वजह होती है दिल के टूट जाने की

दुनिया में और भी वजह होती है दिल के टूट जाने की...
लोग यूँ ही महब्बत को बदनाम किया करते हैं
--अज्ञात

अपने किरदार पे लोग रखते नहीं नज़र

अपने किरदार पे लोग रखते नहीं नज़र...
शिकवा करते हैं, मुक़द्दर के बिगड़ जाने का !!
--अज्ञात

Tuesday, December 1, 2009

ता उम्र सीने में रखा ये हमारा न हो सका

ता उम्र सीने में रखा ये हमारा न हो सका
तुमने मुस्कुरा कर देखा ये दिल तुम्हारा हो गया

--अज्ञात

तनहा पाते ही मुझको कर लेता है मेरे दिल का रुख

तनहा पाते ही मुझको कर लेता है मेरे दिल का रुख
मुझको ये काफिला तेरी यादों का लगता है

--जौली

ਰੋਗ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ, ਪਿਆਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ

ਰੋਗ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ, ਪਿਆਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ
ਮੈਂ ਮਸੀਹਾ ਵੇਖਿਆ, ਬੀਮਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ

ਇਹਦੀਆਂ ਗਲੀਆਂ ਮੇਰੀ, ਚੜਦੀ ਜਵਾਨੀ ਖਾ ਲਈ
ਕਿਉਂ ਕਰਾ ਨ ਦੋਸਤਾ, ਸਤਿਕਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ

ਸ਼ਹਿਰ ਤੇਰੇ ਕਦਰ ਨਹੀਂ, ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸੁੱਚੇ ਪਿਆਰ ਦੀ
ਰਾਤ ਨੂੰ ਖੁੱਲਦਾ ਹੈ ਹਰ, ਬਾਜਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ

ਫੇਰ ਮੰਜਿਲ ਵਾਸਤੇ, ਇੱਕ ਪੈਰ ਨ ਪੁੱਟਿਆ ਗਿਆ
ਇਸ ਤਰਾਂ ਕੁਛ ਚੁਭਿਆ, ਕੋਈ ਖਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ

ਜਿੱਥੇ ਮੋਇਆਂ ਬਾਅਦ ਵੀ, ਕਫਨ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਨਸੀਬ
ਕੌਣ ਪਾਗਲ ਹੁਣ ਕਰੇ, ਇਤਬਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ

ਏਥੇ ਮੇਰੀ ਲਾਸ਼ ਤੱਕ, ਨੀਲਾਮ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ
ਲੱਥਿਆ ਕਰਜ ਨ ਫਿਰ ਵੀ, ਯਾਰ ਤੇਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ

--शिव कुमार बटालवी


Read in Hindi

अब किसी और को चाहूँ, तो शिकायत कैसी

अब किसी और को चाहूँ, तो शिकायत कैसी
मुझ से बिछड़े हो, मोहब्बत मेरी आदत कर के
--अज्ञात

Sunday, November 29, 2009

तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े ना निबाहे जाते

तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े ना निबाहे जाते
वरना हम को भी तमन्ना थी के चाहे जाते
--शान उल हक़ हक़ी


Source : http://www.urdupoetry.com/haqi03.html

दर्द के फूल खिलते हैं, बिखर जाते हैं

दर्द के फूल खिलते हैं, बिखर जाते हैं
ज़ख्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं

--जावेद अख्तर

लोग तेरा जुर्म देखेंगे, सबब देखेगा कौन?

लोग तेरा जुर्म देखेंगे, सबब देखेगा कौन?
यहाँ सब प्यासे हैं, तेरे खुश्क लब देखेगा कौन?
--अज्ञात

कोई बात नहीं

यही वफा का सिला है, तो कोई बात नहीं
ये दर्द तुम से मिला है तो कोई बात नहीं

यही बहुत है तुम देखते हो साहिल से
हम अगर डूब भी रहे हैं तो कोई बात नहीं

रखा छुपा के तुमको आशियाने दिल में
वो अगर छोड़ दिया है तुमने तो कोई बात नहीं

किसकी मजाल कहे कोई मुझको दीवाना
अगर ये तुमने कहा है, तो कोई बात नहीं

--अज्ञात

तोड़ना टूटे हुये दिल का बुरा होता है

तोड़ना टूटे हुये दिल का बुरा होता है
जिस का कोई नहीं उस का तो ख़ुदा होता है

माँग कर तुम से ख़ुशी लूँ मुझे मंज़ूर नहीं
किस का माँगी हुई दौलत सेभला होता है

लोग नाहक किसी मजबूर को कहते हैं बुरा
आदमी अच्छे हैं पर वक़्त बुरा होता है

क्यों मुनीर अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा
जितना तक़दीर में लिखा है अदा होता है

--मुनीर नियाज़ी


Source : http://www.urdupoetry.com/mniazi12.html

Saturday, November 28, 2009

मैं टूट कर गिरा जहाँ सब वहां देखते हैं

मैं टूट कर गिरा जहाँ सब वहां देखते हैं
किस बुलन्दी से गिरा ये कोई नहीं सोचता

--अज्ञात

बहुत कच्चे थे तेरी दुनिया के रिश्ते ए दोस्त

बहुत कच्चे थे तेरी दुनिया के रिश्ते ए दोस्त
और हमसे अक्सर आज़माइश की भूल हो गयी

--अज्ञात

रखे हैं खुदा ने दो रास्ते मुझे आज़माने के लिये

रखे हैं खुदा ने दो रास्ते मुझे आज़माने के लिये
वो छोड़ दे मुझे, या मैं छोड़ दूं उसे ज़माने के लिये

के मांग लूँ उसे रब से उसे भूल जाने की दुआ
हाथ उठते नहीं दुआ में उसे भूल जाने के लिये

नहीं की मैने ज़माने में कोई भी नेकी
पर पढ़ी है चुप चाप कुछ नमाज़ें उसे पाने के लिये

नहीं है तो ना सही वो मेरी किस्मत में
पर एक मौका तो दे, उसे ये आंसू दिखाने के लिये

--अज्ञात

Thursday, November 26, 2009

बस एक सादा सा कागज़, ना कोई लव्ज़ ना कोई फूल

बस एक सादा सा कागज़, ना कोई लव्ज़ ना कोई फूल
अज़ब ज़ुबान में इस बार खत लिखा उसने
--राजेश रेड्डी

Monday, November 23, 2009

आहट न कोई कर, के देख लूं जी भर के मैं तुझे

आहट न कोई कर, के देख लूं जी भर के मैं तुझे
ऐसा ना हो के टूट जाये, ये दीवार ख्वाब की
--अज्ञात

Sunday, November 22, 2009

रहा फ़िर देर तक मैं साथ उसके

रहा फ़िर देर तक मैं साथ उसके
भले वो देर तक ठहरा नहीं था
--हसती मल हसती

कुछ इस अदा से आज वो पहलू नशीं रहे

कुछ इस अदा से आज वो पहलू नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
--अज्ञात

Saturday, November 21, 2009

मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर

मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
मैंने काग़ज़ पर भी देखी हैं बना कर आँखें
--सागर

अकल वालों के मुकद्दर में कहाँ ज़ूक-ए-जुनून है फ़राज़

अकल वालों के मुकद्दर में कहाँ ज़ूक-ए-जुनून है फ़राज़
इश्क़ वाले हैं जो हर चीज़ लुटा देते हैं
--अहमद फराज़

अपनी नाकामी का इक यह भी सबब है फ़राज़

अपनी नाकामी का इक यह भी सबब है फ़राज़
चीज़ जो मांगते है सबसे जुदा मांगते हैं
--अहमद फराज़

तड़पूंगा उम्र भर दिल-ए-महरूम के लिये

तड़पूंगा उम्र भर दिल-ए-महरूम के लिये
कम्बख्त नामुराद लड़खपन का यार था
--अज्ञात

Friday, November 20, 2009

तेरे किरदार से है तेरा परेशान होना

तेरे किरदार से है तेरा परेशान होना
वरना मुश्किल नहीं, मुश्किल तेरी आसान होना

--अज्ञात

Thursday, November 19, 2009

बहुत से नामों का हजूम सही दिल के आस पास

बहुत से नामों का हजूम सही दिल के आस पास
दिल फिर भी एक ही नाम पे धड़कता ज़रूर है

--अज्ञात

वो कितना मेहरबान था के हज़ारों ग़म दे गया

वो कितना मेहरबान था के हज़ारों ग़म दे गया
हम कितने खुद गर्ज़ कुछ न दे सके प्यार के सिवा

--अज्ञात

देखा तुझे, सोचा तुझे, चाहा तुझे, पूजा तुझे

देखा तुझे, सोचा तुझे, चाहा तुझे, पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफा, तेरी खता कुछ भी नहीं

--बशीर बद्र


Source : http://www.urdupoetry.com/singers/JC059.html

Complete gazal : http://yogi-collection.blogspot.com/2010/01/blog-post_9512.html

Tuesday, November 17, 2009

ठहरी ठहरी सी तबीयत में रवानी आई

ठहरी-ठहरी सी तबीयत में रवानी आई,
आज फिर याद मुहब्बत की कहानी आई।

आज फिर नींद को आंखों से बिछड़ते देखा,
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई।

मुद्दतों बाद पशेमां हुआ दरिया हमसे,
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई।

मुद्दतों बाद चला उनपे हमारा जादू
मुद्दतों बाद हमें बात बनानी आई।

--अज्ञात

Tuesday, November 10, 2009

वो कह के चले इतनी मुलाकात बहुत है

वो कह के चले इतनी मुलाकात बहुत है
मैने कहा रुक जाओ अभी रात बहुत है
ये बहते हुये आंसू रुक जाये तो जाना
ऐसे में कहाँ जाओगे बरसात बहुत है

--अज्ञात

ਇਕ ਨਿੱਕੀ ਜਿਹੀ ਲਕੀਰ ਰੱਬਾ, ਕ੍ਯੋਂ ਬਦਲ ਦੇਵੇ ਤਕਦੀਰ ਰੱਬਾ.

ਇਕ ਨਿੱਕੀ ਜਿਹੀ ਲਕੀਰ ਰੱਬਾ, ਕ੍ਯੋਂ ਬਦਲ ਦੇਵੇ ਤਕਦੀਰ ਰੱਬਾ
ਹੁਣ ਆਪ ਲਕੀਰਾਂ ਖਿਚ ਦੇਵਾਂ ਏਡਾ ਮੈਂ ਕੋਈ ਫਕੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ.

ਜੇ ਓ ਮੇਰੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ, ਮੈਨੂ ਓਹਦੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਯਾ ਕ੍ਯੋਂ.
ਦਿਲ ਵਿਚ ਭਰ ਕੇ ਪ੍ਯਾਰ ਓਹਦਾ, ਦਿਲ ਓਸੇ ਤੋਂ ਤੁਡਵਾਯਾ ਕ੍ਯੋਂ.
ਟੁੱਟੇ ਹੋਏ ਦਿਲ ਬਡੇ ਦੁਖਦੇ ਨੇ, ਤੈਨੂ ਤਾਂ ਹੁੰਦੀ ਪੀੜ ਨਹੀਂ
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ.

ਓਹਦੇ ਵਾਲ ਕਦੀ ਕੋਈ ਨਾ ਵੇਖੇ, ਮੇਰੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਏਹੋ ਰੇਹੰਦੀ ਹੈ.
ਮੈਂ ਓਹਦੇ ਕਰਕੇ ਲੜਦਾ ਹਾਂ, ਓ ਮੈਨੂ ਗੁੰਡਾ ਕਿਹੰਦੀ ਹੈ.
ਸਾਰਾ ਕਾਲੇਜ ਵੈਰੀ ਬਣ ਗਯਾ ਹੈ, ਐਥੇ ਕੋਈ ਮੇਰਾ ਵੀਰ ਨਹੀਂ.
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ.

ਓਹਨੂ ਹਾਸਿਲ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਵਿਚ, ਮੈਂ ਸਾਰਾ ਕੁਝ ਗਵਾ ਬੈਠਾ.
ਉਹਦੀ ਨਾ ਤੋਂ ਆਕੇ ਤੰਗ ਕਾਲਾ, ਨਾਸ਼ੇਯਾਁ ਦੀ ਆਦਤ ਪਾ ਬੈਠਾ.
ਓਹਦੇ ਪਿਛੇ ਰੋਲ ਲਵਾਂ ਜਿੰਦਗੀ, ਏਡੀ ਵੀ ਓ ਕੋਈ ਹੀਰ ਨਹੀਂ
ਓਹਨੂ ਭੁਲ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਮੇਰੇ ਹਾਥ ਵਿਚ ਉਹਦੀ ਲਕੀਰ ਨਹੀਂ

--ਕੁਲਵੀਰ ਸਿਂਘ ( ਕਾਲਾ )


Read in Hindi

Sunday, November 8, 2009

उसकी ऐडी परबत चोटी लगती है

उसकी ऐडी परबत चोटी लगती है
माँ के आगे ज़न्नत छोटी लगती है
फाकों ने तस्वीर बना दी आँखों मे
गोल हो कोई चीज तो रोटी लगती है

--अज्ञात


फाकों=भूख

Saturday, November 7, 2009

सभी जज़्बात,ख्यालात बदल जाते हैं

सभी जज़्बात, ख्यालात बदल जाते हैं
यूँ मुहब्बत में ये दिन रात बदल जाते हैं

प्यार उनको भी हैं हमसे पर जाने क्यूँ
हम बात करें तो वो बात बदल जाते हैं

आरज़ू तो है के इज़हार-ए-मुहब्बत कर दूँ
लफ्ज़ चुनते हैं तो लम्हात बदल जाते हैं

कितने नफ़रत थी कभी अहल-ए-मुहब्बत से हमें
हो मुहब्बत तो ख़यालात बदल जाते हैं

एक सा वक़्त मोहब्बत में कहाँ रहता है
गर्दिश-ए-वक़्त से हालात बदल जाते हैं

--अज्ञात


अहल-ए-मोहब्बत=मोहब्बत में रहने वाले

ज़रा उदास भी हूँ, लेकिन मसरूर भी हूँ

ज़रा उदास भी हूँ, लेकिन मसरूर भी हूँ
उसके पास हूँ, शायद दूर भी हूँ

यूँ पथरीले रास्ते पे चलना शौक नहीं मेरा
कुछ मामला चाहत का है, कुछ मजबूर भी हूँ

मोहब्बत हो गयी उस से, बस यही खता रही मेरी
माना के मुजरिम हूं, मगर बेकसूर भी हूँ

--अज्ञात


मसरूर=Cheerful, Glad, Jolly, Jovial, Laugh, Lightsome

दीवाने की कब्र खुदी तो

लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले

बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले

याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले

पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले

आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले

दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने निकले

सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने निकले

'श्या्म’ उमंगें लेकर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले

--श्याम सखा श्याम


Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2009/11/blog-post.html

Thursday, November 5, 2009

तुम भी परेशां हम भी परेशान दिल्ली में

तुम भी परेशां हम भी परेशान दिल्ली में
हम दो ही तो दुखी है इन्सान दिल्ली में

किसी भूके को यहाँ कोई रोटी नहीं देता
दिल छोटे और बड़े है मकान दिल्ली में

रिश्ता बनता नहीं की टूट जाता है पहले
इश्क हो या दोस्ती कुछ नहीं आसान दिल्ली में

आते आते आया ख्याल ये भी तोबा की
मौत है महँगी सस्ती है जान दिल्ली में

यु तो हादसे हर रात होते है बेदिल मगर
बचते नहीं सुबह उनके निशान दिल्ली में

--दीपक बेदिल

नाखुदा मान के बैठे है जिनकी कश्ती में

नाखुदा मान के बैठे है जिनकी कश्ती में,
वो हमें मौजों में ले आये है डुबाने के लिये,
वो हवाओं की तरह रूख बदल लेते है,
हम नसीबों से लड़तें थे जिन्हे पाने के लिये

सांवरिया फिल्म का शेर है

मोहब्बत मुकद्दर है, कोई ख्वाब नहीं

मोहब्बत मुकद्दर है, कोई ख्वाब नहीं
वो अदा है जिसमें सब कामयाब नहीं
जिन्हें इश्क़ की पनाह मिली वे चन्द ही हैं
जो पागल हुए उनका कोई हिसाब नहीं
--अज्ञात

Tuesday, November 3, 2009

मैं खुदा की नज़रों में भी गुनाहगार होता हूँ फ़राज़

मैं खुदा की नज़रों में भी गुनाहगार होता हूँ फ़राज़
के जब सजदों में भी वो शक्स मुझे याद आता है
--अहमद फराज़

Monday, November 2, 2009

नशा किसी के प्यार का है

नदी का शोर नहीं है ये आब शार का है
यहाँ से जो भी सफ़र है वो अब उतार का है

तमाम जिस्म को आँखे बना के राह तको,
तमाम खेल मोहब्बत में इंतज़ार का है

अभी शराब न देना मज़ा न आयेगा ,
अभी तो आंखों में नशा किसी के प्यार का है...

--मुनव्वर राणा


आबशार = Waterfall

Source : http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=5107&Itemid=34

ये ज़रूरी तो नही

आँख में कोई सितारा हो, ये ज़रूरी तो नही
प्यार में कोई खासारा हो, ये ज़रूरी तो नही

ये हक़ीक़त है, के मुझे तुझ से मुहब्बत है
पर तेरे साथ गुज़ारा हो, ये ज़रूरी तो नही

ये दरीचे से जो फ़ूलों की महक आती है
तेरी आने का इशारा हो, ये ज़रूरी तो नही

डूबते वक़्त नज़र उस पे भी तो पड़ सकती है
सामने मेरे किनारा हो, ये ज़रूरी तो नही

कूम नही ये भी के शहर है हुमारा लेकिन,
शहर में कोई हमारा हो, ये ज़रूरी तो नहीं

हो सकता है, खता उस का, निशाना ए खुशी!
तीर उस ने मुझे मारा हो, यह ज़रूरी तो नही

--अज्ञात

खुदा है कठघरे में

आज इक कत्ल करके खुदा है कठघरे में
क्या मुक़र्रर हो सजा , ज़माना मशवरे में

--कुल्दीप अंजुम

हर बार मुझे ज़ख़्म-ए-जुदाई ना दिया कर

हर बार मुझे ज़ख़्म-ए-जुदाई ना दिया कर
अगर तू मेरा नही तो दिखाई ना दिया कर

सच झूठ तेरी आँख से हो जाता है ज़ाहिर
क़समें ना उठा, इतनी सफाई ना दिया कर

मालूम है रहता है तू मुझ से गुरेज़ान
पास आ के मुहाबत की दुहाई ना दिया कर

डोर जैन तो लौट के आते नही वापिस
हर बार परिंदों को रिहाई ना दिया कर

--अज्ञात


Urdu: Gurezaan
English: Fleeing, Perverse Mood, To Run Away From, To Escape From

Sunday, November 1, 2009

ढूँढने जिस में ज़िन्दगी निकली

ढूँढने जिस में ज़िन्दगी निकली
वो उस शख्स की गली निकली

तेरे लहज़े में क्या नहीं था
सिर्फ़ सच की ज़रा सी कमी निकली

उस हवेली में शाम ढलने पर
हर दरीचे से रौशनी निकली

वो हवा तो नही थी लड़की थी
किस लिए इतनी सिरफिरी निकली

वो तेरे आसमान का क्या करती
जिस की मिट्टी से दोस्ती निकली

--अज्ञात

कुछ खुशी के साए में और कुछ ग़मों के साथ

कुछ खुशी के साए में और कुछ ग़मों के साथ
ज़िंदगी कट गयी है उलझनों के साथ

आज तक उस थकान से दुख रहा है बदन
एक सफ़र मैंने किया था ख़्वाहिशों क साथ

किस तरह खाया है धोखा क्या बताऊँ तुम्हें
दोस्तों के मशवरे थे साज़िशों क साथ

इस दफ़ा सावन में तेरी याद के बादल रहे
इस दफ़ा मैं खूब रोया बारिशों के साथ

शहर में कुछ लोग मेरे चाहने वाले भी थे
फूल भी लग रहे थे पत्थरों के साथ

--अज्ञात

अगर वो पूछ ले हमसे, तुम्हें किस बात का ग़म है

अगर वो पूछ ले हमसे, तुम्हें किस बात का ग़म है
तो फिर किस बात का ग़म है, अगर वो पूछ ले हमसे
--अज्ञात

चंद उलझे हुए बे-रब्त सवालों की तरह

चंद उलझे हुए बे-रब्त सवालों की तरह
ज़िंदगी आज परेशान है ख़यालों की तरह
--अज्ञात

Saturday, October 31, 2009

बदनाम हुए हम शहर में जिसकी वजह से

बदनाम हुए हम शहर में जिसकी वजह से
उस शक़्स को कभी हुए जी भर के देखा भी नही
--अज्ञात

ਮੇਰੇ ਗਮ ਦੀ ਭਨਕ ਨਾ ਤੈਨੂ ਪੈ ਜਾਵੇ

ਮੇਰੇ ਗਮ ਦੀ ਭਨਕ ਨਾ ਤੈਨੂ ਪੈ ਜਾਵੇ
ਪੀੜ ਦਿਲ ਦੀ ਹਾਸੇ ਓਹਲੇ ਲਕੋਈ ਹੋਈ ਹੈ
--ਅਗਯਾਤ

मेरे ग़म दी भनक ना तैनू पै जावे
पीड़ दिल दी हासे ओहले लकोई होई है
--अज्ञात

कोशिश तो की थी बहुत मैने पर मुलाकात ना हुई

कोशिश तो की थी बहुत मैने पर मुलाकात ना हुई
अफ़सोस है की उन से कभी बात ना हुई

दुनिया तो खूब सो रही है होके बे खबर
मेरी बहुत दिनों से मगर रात ना हुई

चुप हो गये अश्कों को मेरे देख कर वो लोग
जो कह रहे थे इस बरस बरसात ना हुई

लिक्खी है कितनी गज़ले मेने उनकी याद में
मगर अफ़सोस तुझसे दिल की बात ना हुई

--अज्ञात

Friday, October 30, 2009

सलीक़ा हो अगर भीगी हुई आंखों को पढ़ने का फ़राज़

सलीक़ा हो अगर भीगी हुई आंखों को पढ़ने का फ़राज़
तो बहते हुए आंसू भी अकसर बात करते हैं
--अहमद फराज़

Monday, October 26, 2009

मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो

मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो
मुझे तुम कभी भी भुला ना सकोगे
ना जाने मुझे क्यूँ यक़ीं हो चला है
मेरी याद को तुम मिटा ना सकोगे

मेरी याद होगी जिधर जाओगे तुम
कभी नग़्मा बन के, कभी बन के आँसू
तड़पता मुझे हर तरफ़ पाओगे तुम
शमा जो जलायी मेरी वफ़ा ने
बुझाना भी चाहो बुझा ना सकोगे

कभी नाम बातों में आया जो मेरा
तो बेचैन हो होके दिल थाम लोगे
निगाहों पे छायेगा ग़म का अंधेरा
किसी ने जो पूछा सबब आँसुओं का
बताना भी चाहो बता ना सकोगे

--मसूर अनवर


Source : http://www.urdupoetry.com/masroor02.html

Sung by Mehendi Hasan

तेरे ख़याल से दामन बचा के देखा है

तेरे ख़याल से दामन बचा के देखा है
दिल को बहुत आज़मा के देखा है
अजब लगता है हर दिन तेरी याद के बग़ैर
हमने कुछ दिन तुम्हें भुला के देखा है

--अज्ञात

आज अश्कों का तार टूट गया

Source : http://www.urdupoetry.com/saif06.html

आज अश्कों का तार टूट गया
रिश्ता-ए-इन्तज़ार टूट गया

यूँ वो ठुकरा के चल दिये गोया
इक खिलौना था प्यार टूट गया

रोये रह-रह कर हिच_कियाँ लेकर
साज़-ए-ग़म बार बार टूट गया

आप की बेरुख़ी का शिकवा क्या
दिल था नापाइदार टूट गया

देख ली दिल ने बेसबाती-ए-गुल
फिर तिलिस्म-ए-बहार टूट गया

'सैफ़' क्या चार दिन की रन्जिश से
इतनी मुद्दत का प्यार टूट गया

--सैफ़ुद्दीन सैफ़


naapaa_idaar = weak/delicate
[besabaatii-e-gul = mortality/short life span of a flower]
[tilism-e-bahaar = (magic)spell of spring]

Sunday, October 25, 2009

हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे

हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे.

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे

साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे

चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे

मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
फड़फड़ा के 'पर' ख़ुशी ख़ुद को ज़रा देते रहे

--श्रद्धा जैन

2122, 2122, 21222, 212



Source : http://bheegigazal.blogspot.com/2009/10/blog-post_25.html

Friday, October 23, 2009

मैं शायर-ए-दर्द मुझे क्यों बुलायें लोग...?

क्यों पराई आग में खुद को जलायें लोग..?
क्यों मेरे ज़ख़्मों पर मरहम लगायें लोग..?


खुद ही मैं उकता गया हूँ ज़िंदगी से अब
फिर किस मूँह से दे.न मुझको दुआयें लोग...?


डूबे हुए हैं दरिया-ए-तम्माना में सब
मुझको थामे.न या खुद को बचायें लोग..?


मैं क्या के एक आग में झुलसा हुआ गुलाब
क्यों मुझको अपने घरों में सजायें लोग..?


गुलशन में काँटों का कदरदान है कौन..?
कैसे मुझको अपने सीने से लगायें लोग...?


सज़ा करती हैं महफिलें खुशी के नगमों से
मैं शायर-ए-दर्द मुझे क्यों बुलायें लोग...?

-अज्ञात

Thursday, October 22, 2009

ਕੋਈ ਪੇਹਲੇ ਪੇਹਲੇ ਪਯਾਰ ਦਿਯਾਂ ਗਲਾਂ, ਕਿਂਝ ਸਕਦਾ ਭੁਲ ਸਜਣਾ

ਕੋਈ ਪੇਹਲੇ ਪੇਹਲੇ ਪਯਾਰ ਦਿਯਾਂ ਗਲਾਂ, ਕਿਂਝ ਸਕਦਾ ਭੁਲ ਸਜਣਾ
ਮੈਨੁ ਅਜ ਵੀ ਮਿਲਣ ਕਿਤਾਬਾਂ ਚੋਂ, ਤੇਰੇ ਵਲੋਂ ਭੇਜੇ ਫੁਲ ਸਜਣਾ

ਬੇਸ਼ਕ ਇਕ ਫੁਲ ਮੁਰਝਾਯੇ ਨੇ, ਪਰ ਮੇਹਕ ਏ ਔਨਦੀ ਯਾਦਾਂ ਚੋਂ
ਜਿਨਦਗੀ ਚੋਂ ਜਾਣ ਵਾਲੇਯੋ, ਹਾਯੇ ਤੁਸੀ ਕਯੋਂ ਨਹੀਂ ਜਾਨਦੇ ਖਵਾਬਾਂ ਚੋਂ

ਨਾ ਜੀ ਹੁਨਦਾ ਨਾ ਮਰ੍ ਹੁਨਦਾ, ਨਾ ਹੁਨਦਾ ਸਾਤੋ ਭੁਲ ਸਜਣਾ.
ਮੈਨੁ ਅਜ ਵੀ ਮਿਲਣ ਕਿਤਾਬਾਂ ਚੋਂ, ਤੇਰੇ ਵਲੋਂ ਭੇਜੇ ਫੁਲ ਸਜਣਾ

--अज्ञात


पहले पहले प्यार दियां गल्लां, किंज सकदा भुल्ल सजणा
मैनूं अज वी मिलण किताबां चों, तेरे वल्लों भेजे फुल्ल सजणा

बेशक इक फुल्ल मुरझाये ने, पर मेहक ए औंदी यादां चों
ज़िन्दगी चों जाण वालयो, हाये तुसी क्यों नहीं जान्दे ख्वाबां चों

ना जी हुन्दा ना मर हुन्दा, ना हुन्दा साथों भुल्ल सजणा
मैं आज वी मिलण किताबां चों, तेरे वल्लों भेजे फुल्ल सजणा

--अज्ञात

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं

बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी
एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं

रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने
आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं

सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने
वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं

तुम तो शायर हो 'कतील' और वो इक आम सा शख़्स
उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं

--क़तील शिफाई

क्या करें

दिल गया,तुम ने लिया हम क्या करें
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें

पुरे होंगे अपने अरमान किस तरह
शौक़ बेहद, वक़्त है कम, क्या करें

बक्ष दें प्यार की गुस्ताखियाँ
दिल ही क़ाबू में नहीं, हम क्या करें

एक सागर परे है अपनी ज़िंदगी
रफ़्ता रफ़्ता इस से भी कम क्या करें

कर चुके सब अपनी-अपनी हिकमतें
दम निकलता है आई मेरे हमदम क्या करें

मामला है आज हुस्न-ओ-इश्क़ का
देखिए वो क्या करें, हम क्या करें

--अज्ञात

मासूमियत का ये अंदाज़ भी मेरे सनम का है मोहसिन

मासूमियत का ये अंदाज़ भी मेरे सनम का है मोहसिन
उसको तसवीर में भी देखूं तो पलकें झुका लेता है
--मोहसिन

हम से तस्खीर मुक़द्दर के सितारे ना हुये

कुछ शब्दों के अर्थ मालूम नहीं कर सका, अगर आपको पता हों तो बताइयेगा ज़रूर

हम से तस्खीर मुक़द्दर के सितारे ना हुये
ज़िंदगी आप थे, और आप हमारे ना हुये

फिर बताओ के भला किस पे सितम ढाओगे
शहर-ए-उलफत में अगर दर्द के मारे ना हुये

ज़र्द आँखों से मेरी हिज्र के मोती बरसे
ये भी क्या कम है मुहब्बत में ख़ासारे ना हुये

सच तो यह है के बिना उस के गुज़ारा जीवन!
ये भी सच है के बिना उस के गुज़ारे ना हुये

इस लिए अपना मिलन हो भी नही सकता था
एक दरिया के कभी दोनो किनारे ना हुये

टूट जाते हैं सभी प्यार के रिश्ते अमजद
कच्चे धागे तो किसी के भी सहारे ना हुये

--अमजद


ज़र्द=Yellow
तस्खीर=किसी को वश में करना

Wednesday, October 21, 2009

खुद को अपनी ही बुलंदी से गिरा कर देखो

खुद को अपनी ही बुलंदी से गिरा कर देखो
तुम ज़रा उसको ये आईना दिखा कर देखो

क्या दिया है तुम्हे इस शहर ने फूलों के एवज़
अब ज़रा संग भी हाथों में उठा कर देखो

शायद आ जाए कोई लौट के जाने वाला
इक दिया आस की चौखट पे जला कर देखो

बंद आँखों में थे खुश रंग से मौसम कितने
अब जो मंज़र है निगाहों को उठा कर देखो

राह के मोड़ में लगता है अकेला कोई
कोई तुम सा ना हो नज़दीक तो जा कर देखो

रुख़ हवाओं क्या समझना है तो एक बार अमीर
फिर कोई शम्मा सर-ए-राह जला कर देखो

--अमीर कज़लबाश

तेरी महफ़िल से उठकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री

तेरी महफ़िल से उठकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री
मुख़ालिफ़ इक जहाँ था जाने बेचारों पे क्या गुज़री

सहर को रुख़्सत-ए-बीमार-ए-फ़ुर्क़त देखने वालो
किसी ने ये भी देखा रात भर तारों पे क्या गुज़री

सुना है ज़िन्दगी वीरानियों ने लूट् ली मिलकर्
न जाने ज़िन्दगी के नाज़बरदारों पे क्या गुज़री

हँसी आई तो है बेकैफ़ सी लेकिन ख़ुदा जाने
मुझे मसरूर पाकर मेरे ग़मख़्वारों पे क्या गुज़री

असीर-ए-ग़म तो जाँ देकर रिहाई पा गया लेकिन
किसी को क्या ख़बर ज़िन्दाँ की दिवारों पे क्या गुज़री

--शकील बँदायूनी

Monday, October 12, 2009

यूं तो फूल से रंगत न गयी, बू न गयी

यूं तो किस फूल से रंगत न गयी, बू न गयी
ए मोहब्बत मेरे पहलू से मगर तू न गयी
--अख्तर शिरानी


इसी गज़ल का दूसरा शेर

Sunday, October 11, 2009

ਆਜ ਦਿਨ ਹਸ਼ਰ ਦਾ, ਕਲ ਮੈਂ ਨਹੀਂ ਰੈਣਾ

ਆਜ ਦਿਨ ਹਸ਼ਰ ਦਾ, ਕਲ ਮੈਂ ਨਹੀਂ ਰੈਣਾ
ਜੇ ਲਾਈ ਯਾਰੀ ਮੁਲ ਮੋੜਨਾ ਪੈਣਾ
ਤੂ ਅਗ੍ਗੇ ਵਧਯਾ ਤੈਨੂਂ ਫਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਣਾ,
ਮੈਂ ਪਿਛੇ ਹਟ ਗਯਾ ਮੇਰਾ ਕਖ ਨਹੀਂ ਰੈਣਾ

ਆਜ ਦਿਨ ਹਸ਼ਰ ਦਾ, ਕਲ ਮੈਂ ਨਹੀਂ ਰੈਣਾ
ਜੇ ਲਾਈ ਯਾਰੀ ਮੁਲ ਮੋੜਨਾ ਪੈਣਾ


--Babbu maan

Full song available http://www.youtube.com/watch?v=ptDEztK4MIU&feature=related

ਯਾਢਾਂ ਨੂਂ ਤੇਰਿਯਾਂ ਅਸੀ ਪਯਾਰ ਕਰਢੇ ਹਾਂ

ਯਾਢਾਂ ਨੂਂ ਤੇਰਿਯਾਂ ਅਸੀ ਪਯਾਰ ਕਰਢੇ ਹਾਂ
ਸੌ ਜਨਮ ਵੀ ਤੇਰੇ ਤੇ ਨਿਸਾਰ ਕਰਢੇ ਹਾਂ
ਵੇਹਲ ਮਿਲੇ ਤਾਂ ਕੁਝ ਲਿਖ ਭੇਜੀਂ
ਸਿਰਫ ਇਕ ਤੇਰੇ ਹੀ ਸੁਨੇਹੇਂ ਦਾ ਇਂਤਜ਼ਾਰ ਕਰਢੇ ਹਾਂ
--ਅਗਯਾਤ


यादां नूं तेरीयां असी प्यार करदे हां
सौ जनम वी तेरे ते निसार करदे हां
वेहल मिले तां कुझ लिख भेजीं
सिर्फ़ इक तेरे ही सुनेहे दा इंतज़ार हां
--अज्ञात

ਕੁਝ ਢੂਰ ਤੂਂ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਚਲ





कुझ दूर तूं मेरे नाल चल
मैं दिल दी कहाणी कह देवांगां
समझ सकी न तू जे मेरे अखां चों
ओह गल ज़ुबानी कह देवांगां

--Sonu Rakhra Patti

Saturday, October 10, 2009

बहा के ले गया सैलाब वक़्त का उनको

बहा के ले गया सैलाब वक़्त का उनको
जो बैठे सोच रहे कि क्या किया जाये
--अज्ञात

मोहब्बत भी एक पेशा है आज कल के आशिकों का

मोहब्बत भी एक पेशा है आज कल के आशिकों का
जो दिल से करता है उसे झूठ मान लेते हैं
--अज्ञात

Wednesday, October 7, 2009

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ए ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
--फ़िराक़ गोरखपुरी

Monday, October 5, 2009

दुख ये है के तू सच सुनने का आदि नहीं वरना

दुख ये है के तू सच सुनने का आदि नहीं वरना
ये उम्र तुझे ख्वाब दिखाने की नहीं है
--अज्ञात

दामन पे कोई छींट, न खंजर पे कोई दाग

दिन एक सितम एक सितम रात करो हो
क्या दोस्त हो दुश्मन को भी तुम मात करो हो
दामन पे कोई छींट, न खंजर पे कोई दाग़
तुम कत्ल करो हो, के करामात करो हो
--कलीम आजिज़

जब भी मांगा, वही मांगा जो मुकद्दर में ना था

जब भी मांगा, वही मांगा जो मुकद्दर में ना था
अपनी हर एक तमन्ना से शिकायत है मुझे
--अज्ञात

आते जाते हर राही से पूछ रहा हूँ बरसों से

आते जाते हर राही से पूछ रहा हूँ बरसों से

नाम हमारा ले कर तुमसे हाल किसने पूछा है

--अज्ञात

ये सोच के मैं उम्र की ऊचाईयाँ चढ़ा

ये सोच के मैं उम्र की ऊचाईयाँ चढ़ा
शायद यहाँ, शायद यहाँ, शायद यहाँ है तू

--कुंअर बेचैन

Sunday, October 4, 2009

गुज़रे दिनो की भूली हुई रात की तरह

गुज़रे दिनो की भूली हुई बात की तरह
आंखों में जगता है कोई रात की तरह
तुमसे उम्मीद थी के निभाओगे रिश्ता
तुम भी बदल गये मेरे हालात की तरह
--अज्ञात

कुछ सवाल जवाब हवाओं से…

हमने हवाओं से कहा, जा देखकर आ
मेरा यार मेरी याद में रोता होगा
वो बोली वो तेरी तरह नहीं
जो अश्कों से दामन भिगोता होगा

हमने कहा आंसू न सही,
पर होंठों पर मेरा नाम है
वो बोली तेरा यार बड़ा मसरूफ है
और उसके लिये ये फिज़ूल का काम है

हमने कहा बातों में न सही मगर
दिल में तो वो हमें याद करता होगा
वो बोली कि हर कोई दीवाना नहीं
कि तेरी तरह वक्त बर्बाद करता होगा

हमने कहा, तुम झूठे हो
ऐसी बातों से हमें बहला न पाओगे
वो बोली कि मैं एक ज़रूरत हूँ
मेरे बिना जी न पाओगे

हम बोले कि ऐसी सांसों का हम क्या करें
जिसमें प्यार का मेरे सहारा नहीं
तू न भी मिले मुझे ग़म नहीं
मगर यार के बिना जीना गवारा नहीं

--अज्ञात

अजनबी ख्वाहिशें हैं, मैं दबा भी न सकूँ

अजनबी ख्वाहिशें हैं, मैं दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी है परिन्दे कि उड़ा भी न सकूँ

फूंक डालूँगा किसी रोज़ ये दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं, के जला भी न सकूँ

मेरी ग़ैरत भी कोई शै है, के महफिल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है के जा भी न सकूँ

एक न एक रोज़ तो मैं ढूँढ ही लूँग तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं है, कि मैं खा भी न सकूँ

फल तो सब मेरे दरख्तों पर पके हैं लेकिन
इतनी कमज़ोर है शाखें के हिला भी न सकूँ

एक न एक रोज़ तो मैं ढूँढ ही लूँग तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं है, कि मैं खा भी न सकूँ

--अज्ञात

प्रीत किये दुख होय

अगर कहीं मैं जानती, प्रीत किये दुख होय
नगर ढिंढोरा पीटती, प्रीत न करयो कोय
--मीरा बाई

सोमवार को आंख लड़ी थी

सोमवार को आंख लड़ी थी
मंगल को बीमार हो गया
बुधवार को दिल दे बैठा
ब्रहस्पति को दीदार हो गया
शुक्रवार को वो भी हस दी
शनिवार को प्यार हो गया
पर SUNDAY की छुट्टी पड़ गयी
सब कुछ बंटा धार हो गया

--गिरिधर व्यास


गिरिधर व्यास, हास्य व्यंग के महान कवि

Saturday, October 3, 2009

तेरी महफिल से निकले

तेरी महफिल से निकले, किसी को खबर तक न हुई फराज़
तेरा मुड़ मुड़ के देखना, हमें बदनाम कर गया
--अहमद फराज़

चाहते हैं वो हर बार एक नया चाहने वाला

चाहते हैं वो हर बार एक नया चाहने वाला,
ए खुदा मुझे रोज़ इक नई सूरत दे दे
--अज्ञात

Thursday, October 1, 2009

उसके वास्ते अपना घर जला न सका

लबों पर झूठ के मोती सजाये मगर
नज़र में तैरती सच्चाईयाँ छुपा न सका
बस इतनी सी बात पर नाराज़ हो गया मुझसे
मैं जो उसके वास्ते अपना घर जला न सका !!
--अज्ञात

Tuesday, September 29, 2009

रोज़ किसी का इंतज़ार होता है

रोज़ किसी का इंतज़ार होता है
रोज़ ये दिल बेकरार होता है
कैसे समझायें इन दुनिया वालों को
कि चुप रहने वालों को भी प्यार होता है
--अज्ञात

Monday, September 28, 2009

सातो दिन भगवान के, क्या मंगल क्या वीर

सातो दिन भगवान के, क्या मंगल क्या वीर
जिस दिन सोया देर तक, भूखा रहा फ़कीर



--निदा फ़ाज़ली

Another version of this is here

Source : http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment
/story/2006/09/060915_nida_column6.shtml

Saturday, September 26, 2009

बाज़ी-ए-इश्क़ कुछ इस तरह से हारे यारो

बाज़ी-ए-इश्क़ कुछ इस तरह से हारे यारो
ज़ख्म पर ज़ख्म लगे दिल पे हमारे यारो

कोई तो ऐसा हो जो घाव पर मरहम रखे
यूँ तो दुश्मन न बनो सारे के सारे यारो

बज़्म में सर को झुकाये हुए जो बैठे हैं
इनको मत छेड़ो ये हैं इश्क़ के मारे यारो

जिन में होते थे कभी मेहर-ओ-वफा के मोती
इन हीं आंखों में सितम के हैं शरारे यारो

दोस्त ही अपने जो करने लगे नज़र-ए-तूफान
काम नहीं आते फिर कोई सहारे यारो

संग ग़ैरों ने मारे तो कोई दुख ना हुआ
मर गये तुमने मगर फूल जो मारे यारो

वो जो रहा दिलगीर तुम्हारी खातिर
तुमने क्या क्या नहीं ताने उसे मारे यारो

--अज्ञात

ज़िन्दगी जब भी किसी शै को तलब करती है

ज़िन्दगी जब भी किसी शै को तलब करती है
मेरे होंटों से तेरा नाम मचल जाता है
--अज्ञात

Friday, September 25, 2009

भ्रम तेरी वफाओं का मिटा देते तो क्या होता

भ्रम तेरी वफाओं का मिटा देते तो क्या होता
तेरे चेहरे से हम परदा उठा देते तो क्या होता

मोहब्बत भी तिजारत हो गयी है इस ज़माने में
अगर ये राज़ दुनिया को बता देते तो क्या होता

तेरी उम्मीद पर जीने से हासिल कुछ नहीं लेकिन
अगर यूँ ही न दिल को आसरा देते तो क्या होता

--उमेमा

Thursday, September 24, 2009

कागज़ की कश्ती थी, पानी का किनारा था

कागज़ की कश्ती थी, पानी का किनारा था
खेलने की मस्ती थी, दिल अपना आवारा था
कहां आ गये इस समझदारी के दलदल में
वो नादान बचपन ही कितना प्यारा था
--सन्नी

जीने के सिर्फ एक बहाने मे मर गये

जीने के सिर्फ एक बहाने मे मर गये
हम ज़िन्दगी का बोझ उठाने मे मर गये

अच्छा था घर की आग बुझाने में मरते हम
अफ़सोस अपनी जान बचाने मे मर गये

--अज्ञात

फ़ैज़ रंग भी अशार में आ सकता था

इसी गज़ल का दूसरा शेर

फ़ैज़ रंग भी अशार में आ सकता था
उंगलियाँ साथ तो दें खून में तर होने तक
--दिलावर फिगार

हमारे दिल की मत पूछो बड़ी मुश्किल में रहता है

हमारे दिल की मत पूछो बड़ी मुश्किल में रहता है
हमारी जान का दुश्मन हमारे दिल में रहता है
--सतपाल ख़याल

अगर कुछ मुंह से कहता हूँ

अगर कुछ मुंह से कहता हूँ, मज़ा नज़रों का जाता है
अगर खामोश रहता हूँ,कलेजा मुंह को आता है
--अज्ञात

Wednesday, September 23, 2009

खेल मुहब्बत का है जारी

कैसे बीती रात न पूछो
बिगड़े क्यों हालात न पूछो

दिल की दिल में ही रहने दो
दिल से दिल की बात न पूछो

ज्ञान ध्यान की सुन लो बातें
जोगी की तुम जात न पूछो

देखा तुमको दिल बौराया
भड़के क्यों जज़बात न पूछो

खेल मुहब्बत का है जारी
किस की होगी मात, न पूछो

प्रेम-नगर में 'श्याम सखा’ जी
क्या पायी सौगात, न पूछो

--श्याम सखा


Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2009/09/blog-post.html

थोड़ी है

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
सदाक़त=Authenticity, Truth

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
मसनद=Throne

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

--राहत इंदोरी


Source : http://www.fundoozone.com/forums/showthread.php?t=20695

Sunday, September 20, 2009

दुआ नहीं तो गिला देता कोई

दुआ नहीं तो गिला देता कोई
मेरी वफ़ओं का क्या सिला देता कोई
जुब मुक़द्दर ही नहीं था अपना
देता भी तो भला क्या देता कोई

हासिल-ए-इश्क़ फ़क़त दर्द है
ए काश पहले ही बता देता कोई.
तक़दीर नहीं थी गर आसमान छूना
खाक़ में ही मिला देता कोई

बेवफा भी हुमें बेवफा कह गया
इससे ज़्यादा क्या दगा देता कोई.
गुमान ही हो जाता किसी अपने का
दामन ही पकड़ कर हिला देता कोई

अरसे से अटका है हिचकियों पे दम
अच्छा होता जो भुला देता कोई
ये तो रो रो के कट गयी 'अहसान'
क्या होता अगरचे हंसा देता कोई

--अज्ञात

तखुल्लुस देख कर लगता है कि शायर का नाम अहसान रहा होगा, अगर आप में से किसी को इस गज़ल के शायर का पूरा नाम पता तो कृपा कर के बताने का कष्ट करें

Saturday, September 19, 2009

मंदर च फुल्ल चढ़ौण गये तां एहसास होया

मंदर च फुल्ल चढ़ौण गये तां एहसास होया
पत्थरां दी खुशी लई फुल्लां दा कत्ल कर आये
--अज्ञात

कितने गालिब थे जो पैदा हुए और मर भी गए

कितने गालिब थे जो पैदा हुए और मर भी गए..
कदरदान को तखल्लुस की खबर होने तक !!
--दिलावर फिगार


इसी गज़ल का दूसरा शेर

तुमको देखा तो मोहब्बत की समझ आई फ़राज़

तुमको देखा तो मोहब्बत की समझ आई फ़राज़
वरना इस लव्ज़ की तारीफ सुना करते थे
--अहमद फराज़

कब तक रहोगे आखिर यूँ दूर दूर हमसे

कब तक रहोगे आखिर यूँ दूर दूर हमसे
मिलना पड़ेगा आखिर एक दिन ज़रूर हम से

दामन बचाने वाले ये बेरुखी है कैसी
कह दो अगर हुआ है कोई कसूर हम से

हम छीन लेंगे तुमसे ये शान-ए-बेनियाज़ी
तुम मांगते फिरोगे अपना गुरूर हमसे
[बेनियाज़ी=आज़ादी]
--अज्ञात

Thursday, September 17, 2009

कीमत क्या है प्यार की?

मैने पूछा खुदा से कीमत क्या है प्यार की

खुदा हस कर बोले --

आंसू भरी आंखें, उमर इंतज़ार की

--अज्ञात

हम इन्तज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक

हम इन्तज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक
ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए

यह इन्तज़ार भी एक इम्तेहान होता है
इसी से इश्क का शोला जवान होता है
यह इन्तज़ार सलामत हो और तू आए

बिछाए शौक़ के सजदे वफ़ा की राहों में
खड़े हैं दीद की हसरत लिए निगाहों में
कुबूल दिल की इबादत हो और तू आए

वो ख़ुशनसीब हो जिसको तू इन्तख़ाब करे
ख़ुदा हमारी मोहब्बत को कामयाब करे
जवाँ सितार-ए-क़िस्मत हो और तू आए

ख़ुदा करे कि क़यामत हो और तू आए

--साहिर लुधियानवी


Wednesday, September 16, 2009

ये दर्द कम तो नहीं है के तू हमें न मिला

ये दर्द कम तो नहीं है के तू हमें न मिला
ये और बात है, हम भी न हो सके तेरे
--अज्ञात

Tuesday, September 15, 2009

ठहरे हुए कदमों से सफ़र सर नही होता

ठहरे हुए कदमों से सफ़र नही होता
हाथों की लकीरों में मुक़द्दर नही होता

देखा है बिछड़कर के बिछड़ने का असर भी
मुझ पर तो बहुत होता है उस पर नही होता

अगर औरों के आँसू मेरी आँख में ना होते
कुछ और ही मैं होता सुखनवर नहीं होता

--अज्ञात

फूल खिलना चाहता है, कली खिलने नहीं देती

फूल खिलना चाहता है, कली खिलने नहीं देती
दिल मिलना चाहता है, किस्मत मिलने नहीं देती
--अज्ञात

हां ये सच है, तुम मिल नहीं पाये लेकिन

हां ये सच है, तुम मिल नहीं पाये लेकिन
ये तो बताओ मोहब्बत में मिला कौन है
--अज्ञात

Sunday, September 13, 2009

अभी आये हैं, बैठे हैं, अभी दामन सम्भाला है

अभी आये हैं, बैठे हैं, अभी दामन सम्भाला है
आपकी जाऊँ जाऊँ ने हमारा दम निकाला है
--अज्ञात


फिल्म मुकद्दर का सिकन्दर का शेर है

इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन

इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन
अरे हम ही चले गये तो मोहब्बत करेगा कौन
इस घर की देख भाल को वीरानियां तो हों
इस घर की देख भाल को वीरानियां तो हों
जाले हटा दिये तो हिफ़ाज़त करेगा कौन
--अज्ञात


Hindi Song Title: TUM TOH THEHRE PARDESI
Hindi Movie/Album Name: TUM TOH THEHRE PARDESI
Singer(s): ALTAF RAJA

Source : http://forum.hindilyrics.net/showthread.php?t=1099

मेरे काम का है, न दुनिया के काम का

मेरे काम का है, न दुनिया के काम का
अरे दिल ही तुम्हें खुदा ने दिया दस ग्राम का
--अज्ञात


Hindi Song Title: Donon Hi Mohabbat Ke
Hindi Movie/Album Name: TUM TOH THEHRE PARDESI
Singer(s): ALTAF RAJA

ज़िन्दगी है और दिल-ए-नादान है

ज़िन्दगी है और दिल-ए-नादान है
क्या सफर है, और क्या सामान है
मेरे ग़मों को भी समझ कर देखिये
मुस्कुरा देना बहुत आसान है
--अज्ञात


Hindi Song Title: Donon Hi Mohabbat Ke
Hindi Movie/Album Name: TUM TOH THEHRE PARDESI
Singer(s): ALTAF RAJA

न पीने का शौक था, न पिलाने का शौक था

न पीने का शौक था, न पिलाने का शौक था
हमें तो बस नज़रें मिलाने का शौक था
पर क्या करें यारो, हम नज़रें ही उन से मिला बैठे
जिन्हें नज़रों से पिलाने का शौक था
--अज्ञात

अपना हिस्सा शुमार करता था

अपना हिस्सा शुमार करता था
मुझसे इतना वो प्यार करता था

वो बनाता था मेरी तस्वीरें
उनसे बातें हज़ार करता था

मेरा दुख भी खुलूस-ए-नीयत से
अपना दुख शुमार करता था

पहले रखता था फूल रासते में
फिर मेरा इंतज़ार करता था

आज पहलू में वो नहीं फराज़
जो मुझ पे जान निसार करता था

--अहमद फराज़

मैं तेरे ज़र्फ को पहचान कर जवाब दूँगा

मैं तेरे ज़र्फ को पहचान कर जवाब दूँगा
तू मुझे मेरे कद के बराबर सवाल दे
--अज्ञात


ज़र्फ=Capability, capacity

हम न भी रहे तो हमारी यादें वफा करेंगी तुमसे

हम न भी रहे तो हमारी यादें वफा करेंगी तुमसे
ये न समझना के तुम्हें चाहा था बस जीने के लिये
--अज्ञात

मुझे लिख लिख कर महफूज़ कर लो

मुझे लिख लिख कर महफूज़ कर लो
मैं तुम्हारी बातों से निकलता जा रहा हूँ
--अज्ञात

अश्क आँखों में तो होंटों में फ़ुगाँ होती है

अश्क आँखों में तो होंटों में फ़ुगाँ होती है
ज़िन्दगी इश्क़ में जल—जल के धुआँ होती है
[फ़ुगाँ=आह]

मय से बढ़ कर तो कोई चीज़ नहीं राहते—जाँ
कौन कहता है कि ये दुश्मने—जाँ होती है
[राहते—जाँ=सुखदायक]

चन्द लोगों को ही मिलती है मताए—ग़मे—इश्क़
सब की तक़दीर में ये बात कहाँ होती है
[मताए—ग़मे—इश्क़=इश्क़ में मिलने वाले ग़म की पूंजी]

बात चुप रह के भी कह देते हैं कहने वाले
बाज़—औक़ात ख़मोशी भी ज़बाँ होती है
[बाज़—औक़ात=कभी—कभी]

दिल की जो बात ज़बाँ पर नहीं आती ऐ ‘शौक़’
वो महब्बत में निगाहों से बयाँ होती है.

--सुरेश चन्द्र 'शौक'

किसी सूरत न होगी इल्तिजा हमसे

किसी सूरत न होगी इल्तिजा हमसे
वो होता है तो हो जाए ख़फ़ा हमसे

जो हो हक़ बात कह देते हैं महफ़िल में
कि हो जाती है अक्सर ये ख़ता हमसे

कुछ ऐसा अपनापन इक अजनबी में है
वो सदियों से हो जैसे आशना हमसे...
[आशना=परिचित]

नज़र से दूर लेकिन दिल में रहता है
जुदा हो कर भी कब है वो जुदा हमसे

लबों को ज़हमते—जुम्बिश न दे प्यारे....
तिरी आँखों ने सब कुछ कह दिया हमसे
[ज़हमते—जुम्बिश=होंठ हिलाने का कष्ट]

तही-दस्ती का आलम ‘शौक़’ क्या कहिये
चुराते हैं नज़र अब आशना हमसे.
[तही-दस्ती=निर्धनता]

--सुरेश चन्द्र 'शौक'

Wednesday, September 9, 2009

भरी दुनिया में ग़मज़दा रहो या शाद रहो

भरी दुनिया में ग़मज़दा रहो या शाद रहो,
कुछ ऐसा करके चलो यहां कि बहुत याद रहो
--अज्ञात


शाद=खुश

कहाँ कहाँ होंठों के निशान छोड गये तुम

कहाँ कहाँ होंठों के निशान छोड गये तुम
बेजान एक जिस्म में जान छोड गये तुम
खुद से पूछती रही थी ये कि मैं कौन हूं?
आज मुझ में मेरी पहचान छोड गये तुम
--अनिल पराशर

तेरी गली से मैं निकलूँगा गधे लेकर

तेरी गली से मैं निकलूँगा गधे लेकर
तेरे नखरों का बोझ अब मुझ से उठाया नहीं जाता
--अज्ञात

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या
--डॉ कुमार विश्वास

तुम से करूँ मुहब्बत उसूल की बात है

तुम से करूँ मुहब्बत उसूल की बात है
तुम मेरे लिए सोचो फ़िज़ूल की बात है

रिश्ता नही है तुमसे गीतों का कोई मेरे
ख़ुश्बुओं के हक़ में इक फूल की बात है

सच की ही जीत होगी जानता था मैं भी
अब की नही मगर ये इस्कूल की बात है

मेरे नही हो लेकिन मिलता हूं मैं तुमसे
ये दुआ सलाम भी तो उसूल की बात है

किसी बेवफ़ा की बात नही मेरी शायरी में
आँखों में जो थी झोंकी धूल की बात है

पढ़ते भी हैं मुझको कहते भी हैं मुझसे
मासूम जी शायरी तो फ़िज़ूल की बात है

--अनिल पराशर

Tuesday, September 8, 2009

दामन किसी का हाथ से जब छूटता रहा

दामन किसी का हाथ से जब छूटता रहा
शीशा तो यह नहीं था मगर टूटता रहा
बदकिस्मती तो देखिये हिंदोस्तां की
जो आया इस चमन को वही लूटता रहा
--सुहेल उस्मानी


Source : http://in.jagran.yahoo.com/sahitya/article/index.php?category=7&articleid=69&start=1

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में
--बशीर बद्र

मैं तेरा कोई नहीं मगर इतना तो बता

मैं तेरा कोई नहीं मगर इतना तो बता
ज़िक्र से मेरे, तेरे दिल में आता क्या है?
--अज्ञात

Sunday, September 6, 2009

जाने मुझसे क्या ज़माना चाहता है

जाने मुझसे क्या ज़माना चाहता है
मेरा दिल तोड़ कर मुझे हसाना चाहता है
जाने क्या बात झलकती है मेरे चेहरे से
जो हर शक्स मुझे आज़माना चाहता है
--अज्ञात

Saturday, September 5, 2009

मैं उस शक्स को कैसे मनाऊँगा फ़राज़

मैं उस शक्स को कैसे मनाऊँगा फ़राज़
जो मुझ से रूठा है मेरी मोहब्बत के सबब
--अहमद फराज़

चांद के साथ कईं दर्द पुराने निकले

चांद के साथ कईं दर्द पुराने निकले
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म बहाने निकले
--अमजद इस्लाम अमजद


Source : http://www.urdupoetry.com/amjad02.html

किसने कहा तुझे कि अनजान बन के आया कर

किसने कहा तुझे कि अनजान बन के आया कर
मेरे दिल के आइने में महमान बन के आया कर
एक तुझे ही तो बख़शी है दिल की हुकूमत
यही तेरी सलतनत है, सुलतान बन के आया कर
--अज्ञात

कौन था अपना जिस पे इनायत करते

कौन था अपना जिस पे इनायत करते
हमारी तो हसरत थी, हम भी मोहब्बत करते
उसने समझा ही नहीं मुझे किसी काबिल
वरना उसे प्यार नहीं उसकी इबादत करते
--अज्ञात

भूल जाता हूँ

ज़रूरी काम है लेकिन रोज़ाना भूल जाता हूँ
मुझे तुम से मोहब्बत है बताना भूल जाता हूँ

तेरी गलियों में फिरना इतना अच्छा लगता है
मैं रास्ता याद रखता हूँ, ठिकाना भूल जाता हूँ

बस इतनी बात पर मैं लोगों को अच्छा नहीं लगता
मैं नेकी कर तो देता हूँ, जताना भूल जाता हूँ

शरारत ले के आखों में वो तेरा देखना तौबा
मैं नज़रों पे जमी नज़रें झुकाना भूल जाता हूँ

मोहब्बत कब हुई कैसे हुई सब याद है मुझको
मैं कर के मोहब्बत को भुलाना भूल जाता हूँ

--अज्ञात

वो कर रहे थे अपनी वफाओं का तज़किरा

वो कर रहे थे अपनी वफाओं का तज़किरा
हम पे निगाह पड़ी तो ख़ामोश हो गये
--अज्ञात

Friday, September 4, 2009

कागज़ पे रख कर रोटियां खायें भी तो कैसे

कागज़ पे रख कर रोटियां खायें भी तो कैसे
खून से लथपथ आता है अखबार आज कल

--पंकज पलाश

Wednesday, September 2, 2009

अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है

अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है
लैला मजनूँ के मिसालों पे हँसी आती है

जब भी तक़मील-ए-मोहब्बत का ख़याल आता है
मुझको अपने ख़यालों पे हँसी आती है
[तक़मील=completion]

लोग अपने लिये औरों में वफ़ा ढूँढते हैं
उन वफ़ा ढूँढने वालों पे हँसी आती है

देखनेवालों तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हे तो देखने वालों पे हँसी आती है
[तबस्सुम=smile]

चाँदनी रात मोहब्बत में हसीन थी ‘फ़ाकिर’
अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है

--सुदर्शन फाकिर


Source : http://www.urdupoetry.com/faakir23.html

ख़ुशी ने मुझ को ठुकराया है रन्ज-ओ-ग़म ने पाला है

ख़ुशी ने मुझ को ठुकराया है रन्ज-ओ-ग़म ने पाला है
गुलों ने बेरुख़ी की है तो कांटों ने सम्भाला है

मुहब्बत मे ख़याल-ए-साहिल-ओ-मन्ज़िल है नादानी
जो इन राहो मे लुट जाये वही तक़दीर वाला है

चराग़ां कर के दिल बहला रहे हो क्या जहां वालों
अन्धेरा लाख रौशन हो उजाला फिर उजाला है

किनारो से मुझे ऐ नाख़ुदा दूर ही रखना
वहाँ लेकर चलो तूफ़ाँ जहाँ से उठने वाला है

नशेमन ही के लुट जाने का ग़म होता तो क्या ग़म था
यहाँ तो बेचने वालों ने गुलशन बेच डाला है

--अली अहमद जलीली

Monday, August 31, 2009

हमें तो अब भी वो गुज़रा ज़माना याद आता है

हमें तो अब भी वो गुज़रा ज़माना याद आता है
तुम्हें भी क्या कभी कोई दीवाना याद आता है

हवायें तेज़ थी, बारिश भी थी, तूफान भी था लेकिन
ऐसे में तेरा वादा निभाना याद आता है

गुज़र चुकी थी बहुत रात बातों बातों में
फिर उठ के तेरा वो शम्मा बुझाना याद आता है

घटायें कितनी देखी हैं पर मुझे 'असरार'
किसी का रुख पे ज़ुल्फें गिराना याद आता है

--असरार अनसारी

Sunday, August 30, 2009

न दिल, न मोहब्बत, न अफसाना देखा

न दिल, न मोहब्बत, न अफसाना देखा
जिस भी हाथ में देखा खाली पैमाना देखा
कपड़े बदलने से दिल नहीं बदलते ए-दोस्त
तेरे दामन में हमने वो ही दाग पुराना देखा
--अज्ञात

यादों की जड़ें

यादों की जड़ें फूट ही पड़ती हैं कहीं से फराज़
दिल अगर सूख भी जाये, तो बंजर नही होता
--अहमद फ़राज़

उसने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुखन कहे

उसने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुखन कहे
मैं ने तो उसके पांव में सारा कलाम रख दिया
--अहमद फराज़


सुखन=शेर/गज़ल/poem

मेरे ही हाथों पे लिखी है तक़दीर मेरी फ़राज़

मेरे ही हाथों पे लिखी है तक़दीर मेरी फ़राज़
और मेरी ही तक़दीर पे मेरा बस नही चलता
--अहमद फराज़

अबकी बार तुम मिले तो पलकें बन्द ही रखेंगें

अबकी बार तुम मिले तो पलकें बन्द ही रखेंगें
ये बातूनी आंखें मुंह को कुछ बोलने नहीं देती
--द्वारिका (DVM13)

Saturday, August 29, 2009

ग़ज़ल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी

ग़ज़ल का इतिहास - / - Gazal's History
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1. फ़ारसी से ग़ज़ल उर्दू में आई। उर्दू का पहला शायर जिसका काव्य संकलन(दीवान)प्रकाशित हुआ है, वह हैं मोहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह। आप दकन के बादशाह थे और आपकी शायरी में फ़ारसी के अलावा उर्दू और उस वक्त की दकनी बोली शामिल थी।

पिया बाज प्याला पिया जाये ना।
पिया बाज इक तिल जिया जाये ना।।

क़ुली क़ुतुबशाह के बाद के शायर हैं ग़व्वासी, वज़ही,बह्‌री और कई अन्य। इस दौर से गुज़रती हुई ग़ज़ल वली दकनी तक आ पहुंची और उस समय तक ग़ज़ल पर छाई हुई दकनी(शब्दों की) छाप काफी कम हो गई। वली ने सर्वप्रथम ग़ज़ल को अच्छी शायरी का दर्जा दिया और फ़ारसी के बराबर ला खड़ा किया। दकन के लगभग तमाम शायरों की ग़ज़लें बिल्कुल सीधी साधी और सुगम शब्दों के माध्यम से हुआ करती थीं।

2. वली के साथ साथ उर्दू शायरी दकन से उत्तर की ओर आई। यहां से उर्दू शायरी का पहला दौर शुरू होता है। उस वक्त के शायर आबरू, नाजी, मज्‍़नून, हातिम, इत्यादि थे। इन सब में वली की शायरी सबसे अच्छी थी। इस दौर में उर्दू शायरी में दकनी शब्द काफी़ हद तक हो गये थे। इसी दौर के आख़िर में आने वाले शायरों के नाम हैं-मज़हर जाने-जानाँ, सादुल्ला ‘गुलशन’ ,ख़ान’आरजू’ इत्यादि। यक़ीनन इन सब ने मिलकर उर्दू शायरी को अच्छी तरक्क़ी दी। मिसाल के तौर पर उनके कुछ शेर :-

ये हसरत रह गई कि किस किस मजे़ से ज़िंदगी करते।
अगर होता चमन अपना, गुल अपना,बागबाँ अपना।।-मज़हर जाने-जानाँ

खुदा के वास्ते इसको न टोको।
यही एक शहर में क़ातिल रहा है।।-मज़हर जाने-जानाँ

जान,तुझपर कुछ एतबार नहीं ।
कि जिंदगानी का क्या भरोसा है।।-खान आरजू

ग़ज़ल का दूसरा दोर - / - gazal ka dusra dor

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दूसरा दौर-

इस दौर के सब से मशहूर शायर हैं’'गालिब़' , मीर’ और ‘सौदा’। इस दौर को उर्दू शायरी का ‘सुवर्णकाल’ कहा जाता है। इस दौर के अन्य शायरों में मीर’दर्द’ और मीर ग़ुलाम हसन का नाम भी काफी़ मशहूर था। इस जमाने में उच्च कोटि की ग़ज़लें लिखीं गईं जिसमें ग़ज़ल की भाषा, ग़ज़ल का उद्देश्य और उसकी नाजुकी को एक हद तक संवारा गया। मीर की शायरी में दर्द कुछ इस तरह उभरा कि उसे दिल और दिल्ली का मर्सिया कहा जाने लगा।

देखे तो दिल कि जाँ से उठता है।
ये धुँआ सा कहाँ से उठता है।।

दर्द के साथ साथ मीर की शायरी में नज़ाकत भी तारीफ़ के काबिल थी।

नाजु़की उसके लब की क्या कहिये।
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है।।

‘मीर’ इन नीमबाज़ आखों में।
सारी मस्ती शराब की सी है।।

इस दौर की शायरी में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इस ज़माने के अधिकांश शायर सूफी पंथ के थे। इसलिये इस दौर की ग़ज़लों में सूफी पंथ के पवित्र विचारों का विवरण भी मिलता है।

वक्‍़त ने करवट बदली और दिल्ली की सल्तनत का चिराग़ टिमटिमाने लगा। फैज़ाबाद और लखनऊ में ,जहां दौलत की भरमार थी, शायर दिल्ली और दूसरी जगहों को छोड़कर, इकट्ठा होने लगे। इसी समय ‘मुसहफ़ी’ और ‘इंशा’ की आपसी नोकझोंक के कारण उर्दू शायरी की गंभीरता कम हुई। ‘जुर्रअत’ ने बिल्कुल हलकी-फुलकी और कभी-कभी सस्ती और अश्लील शायरी की। इस ज़माने की शायरी का अंदाज़ा आप इन अशआर से लगा सकते हैं।

किसी के मरहमे आबे रवाँ की याद आई।
हुबाब के जो बराबर कभी हुबाब आया।।

टुपट्टे को आगे से दुहरा न ओढ़ो।
नुमुदार चीजें छुपाने से हासिल।।

लेकिन यह तो हुई ‘इंशा’, ‘मुसहफ़ी’ और ‘जुर्रअत’ की बात। जहां तक लखनवी अंदाज़ का सवाल है ,उसकी बुनियाद ‘नासिख़’ और ‘आतिश’ ने डाली। दुर्भाग्यवश इन दोनों की शायरी में हृदय और मन की कोमल तरल भावनाओं का बयान कम है और शारीरिक उतार-चढ़ाव,बनाव-सिंगार और लिबास का वर्णन ज्‍़यादा है।

Urdu Shayari ke Do Andaaj
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1 . उर्दू शायरी अब दो अंदाज़ों में बंट गयी। ‘लखनवी’ और’देहलवी’। दिल्ली वाले जहां आशिक़ और माशूक़ के हृदय की गहराइयों में झांक रहे थे ,वहां लखनऊ वाले महबूब के जिस्म,उसकी खूबसूरती,बनाव-सिंगार और नाज़ो-अदा पर फ़िदा हो रहे थे। दिल्ली और लखनऊ की शायरी जब इस मोड़ पर थी .उसी समय दिल्ली में ‘जौ़क़’, ‘ग़ालिब’ और ‘मोमिन’ उर्दू ग़ज़ल की परंपरा को आगे बढ़ाने में जुटे हुये थे। यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘गा़लिब’ ने ग़ज़ल में दार्शनिकता भरी ,’मोमिन’ ने कोमलता पैदा की और ‘जौ़क़’ ने भाषा को साफ़-सुथरा,सुगम और आसान बनाया। लीजिये इन शायरों के कुछ शेर पढ़िये-

ग़मे हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज।
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक।।-गालिब़

तुम मेरे पास हो गोया।
जब कोई दूसरा नहीं होता।।- मोमिन

लाई हयात आये,कज़ा ले चली,चले।
अपनी खु़शी न आये, न अपनी खुशी चले।।-जौ़क़

इन तीनों महान शायरों के साथ एक बदनसीब शायर भी था जिसनें जिंदगी के अंतिम क्षणों में वतन से दूर किसी जेल की अंधेरी कोठरी में लड़खड़ाती ज़बान से कहा था-

कितना बदनसीन ‘ज़फ़र’ दफ्‍़न के लिये।
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में।।-बहादुरशाहज़फ़र

1857 में दिल्ली उजड़ी,लखनऊ बर्बाद हुआ। ऐशो-आराम और शांति के दिन ख़त्म हुये। शायर अब दिल्ली और लखनऊ छोड़कर रामपुर,भोपाल, मटियाब्रिज और हैदराबाद पहुंच वहांके दरबारों की शोभा बढ़ाने लगे। अब उर्दू शायरी में दिल्ली और लखनऊ का मिला जुला अंदाज़ नज़र आने लगा। इस दौर के दो मशहूर शायर’दा़ग’ और ‘अमीर मीनाई’ हैं।

यह वक्‍़त अंग्रेजी हुकूमत की गिरफ्‍़त का होते हुये भी भारतीय इंसान आजा़दी के लिये छटपटा रहा था और कभी कभी बगा़वत भी कर बैठता था। जन-जीवन जागृत हो रहा था। आजा़दी के सपने देखे जा रहे थे और लेखनी तलवार बन रही थी। अब ग़ज़लों में चारित्य और तत्वज्ञान की बातें उभरने लगीं। राष्ट्रीयता यानी कौ़मी भावनाओं पर कवितायें लिखीं गईं और अंग्रेजी हुकूमत एवं उसकी संस्कृति पर ढके छुपे लेकिन तीखे व्यंग्यात्मक शेर भी लिखे जाने लगे।

Gazal Me Desh- Bhakti or Uska Dagmagana
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अब ग़ज़ल में इश्क़ का केंद्र ख़ुदा या माशूक़ न होकर राष्ट्र और मातृभूमि हुई। इसका मुख्य उद्देश्य अब आजा़दी हो गया। ‘हाली’,'अकबर इलाहाबादी’ ,’चकबिस्त’, और ‘इक़बाल’ इस युग के ज्वलंत शायर हैं।

सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुले हैं इसकी ,ये गुलिस्ताँ हमारा।।

‘इक़बाल’ की यह नज्‍़म हर भारतीय की ज़बान पर थी और आज भी है। ‘अकबर’ के व्यंग्य भी इतने ही मशहूर हैं।लेकिन एक बात का उल्लेख यहाँ पर करना यहां जरूरी है कि इन शायरों ने ग़ज़लें कम और नज्‍़में अथवा कवियायें ज्यादा लिखीं।और यथार्थ में ग़ज़ल को पहला धक्का यहीं लगा। कुछ लोगों ने तो समझा कि ग़ज़ल ख़त्म की जा रही है।

लेकिन ग़ज़ल की खु़शक़िस्मती कहिये कि उसकी डगमगाती नाव को ‘हसरत’,जिगर’ ‘फा़नी’,'असग़र गोंडवी’ जैसे महान शायरों ने संभाला ,उसे नयी और अच्छी दिशा दिखलाई ,दुबारा जिंदा किया और उसे फिर से मक़बूल किया।’जिगर’ और ‘हसरत’ ने महबूब को काल्पनिक दुनिया से उतार निकालकर चलती-फिरती दुनिया में ला खड़ा किया। पुरानी शायरी में महबूब सिर्फ़ महबूब था,कभी आशिक़ न बना था। ‘हसरत’ और ‘जिगर’ ने महबूब को महबूब तो माना ही साथ ही उसे एक सर्वांग संपूर्ण इंसान भी बना दिया जिसने दूसरों को चाहा ,प्यार किया और दूसरों से भी यही अपेक्षा की।

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये।
वो तेरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है।।

-- हसरत --

ग़ज़ल का यह रूप लोगों को बहुत भाया। ग़ज़ल अब सही अर्थ में जवान हुई। इन शायरों के बाद नई नस्ल के शायरों में फ़िराक़, नुशूर, जज्‍़बी,जाँनिशार अख्‍़तर, शकील, मजरूह,साहिर,हफ़ीज़ होशियारपुरी,क़तील शिफ़ाई,इब्ने इंशा, फ़ैज़ अहमद’फ़ैज़’,और सेवकों का जिक्र किया जा सकता है। ‘हफ़ीज जालंधरी’ और ‘जोश मलीहाबादी’ के उल्लेख के बगैर उर्दू शायरी का इतिहास अधूरा रहेगा। यह सच है कि इन दोनों शायरों ने कवितायें(नज्‍़में) ज्‍़यादा लिखीं और ग़ज़लें कम। लेकिन इनका लिखा हुआ काव्य संग्रह उच्च कोटि का है। ‘जोश’ की एक नज्‍़म, जो दूसरे महायुद्द के वक्त लिखी गई थी और जिसमें हिटलर की तारीफ़ की गई थी,अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा उनको जेल भिजवाने का कारण बनी।


फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ की शायरी का जिक्र अलग से करना अनिवार्य है।यह पहले शायर हैं जिन्होंने ग़ज़ल में रा जनीति लाई और साथ साथ जिंदगी की सर्वसाधारण उलझनों और हकी़क़तों को बड़ी खू़बी और सफा़ई से पेश किया।

मता-ए- लौहो क़लम छिन गई तो क्या ग़म है।
कि खू़ने दिल में डुबो ली हैं उंगलियाँ मैंने।।

जेल की सीखचों के पीछे क़ैद ‘फ़ैज़’ के आजा़द क़लम का नमूना ऊपर लिखी बात को पूर्णत: सिद्ध करता है


Aazaad Gazal
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ग़ज़ल लेखन में एक और नया प्रयोग शुरू किया गया है जिसका उल्लेख यहाँ करना अनुचित न होगा। इन प्रायोगिक ग़ज़लों में शेर की दोनों पंक्तियों से मीटर की पाबंदी हटा दी गई है,लेकिन रदीफ़ और क़ाफिये की पाबंदी रखी गई है। इन ग़ज़लों को "‘- आजा़द ग़ज़ल -’" कहा जाता है।

ग़ज़ल का इतिहास रोज़ लिखा जा रहा है। नये शायर ग़ज़ल के क्षितिज पर रोज़ उभर रहे हैं ,और उभरते रहेंगे। अपने फ़न से और अपनी शायरी से ये कलाकार ग़ज़ल की दुनिया को रोशन कर रहे हैं।

कुछ शायरों ने ग़ज़ल को एक नया मोड़ दिया है। इन ग़ज़लों में अलामती रुझान यानी सांकेतिक प्रवृत्ति प्रमुख रूप से होता है। उदाहरण के लिये निम्न अशआर पढ़िये-

वो तो बता रहा था बहोत दूर का सफ़र।
जंजीर खींचकर जो मुशाफ़िर उतर गया।।
साहिल की सारी रेत इमारत में लग गई।
अब लोग कैसे अपने घरौंदे बनायेंगे।।

इन शायरों में कुछ शायरों के नाम हैं- कुंवर महिंदर सिंह बेदी, ज़िया फ़तेहबादी, प्रेम वारबरटनी,मज़हर इमाम, अहमद फ़राज़,निदा फ़ाज़ली,सुदर्शन फ़ाकिर, नासिर काज़मी, परवीन शाकिर, अब्दुल हमीद अदम,सूफी़ तबस्सुम, ज़रीना सानी, मिद्‌हतुल अख्‍़तर, अब्दुल रहीम नश्तर, प्रो.युनुस, ख़लिश क़ादरी, ज़फ़र कलीम,शाहिद कबीर, प्रो. मंशा, जलील साज़, शहरयार, बशीर बद्र, शाज तम्कनत, वहीद अख्‍़तर, महबूब राही, इफ्‍़ितख़ार इमाम सिद्धीकी़,शबाब ललित, कृष्ण मोहन, याद देहलवी,ज़हीर गा़ज़ीपुरी, यूसुफ़ जमाल, राज नारायण राज़,गोपाल मित्तल,उमर अंशारी,करामत अली करामत, उनवान चिश्ती, मलिक़ जा़दा मंज़ूर,ग़ुलाम रब्बानी,ताबाँ,जज्‍़बी इत्यादि।

इन ग़ज़लों को ‘आजा़द ग़ज़ल’ कहा जाता है।

फूल हो ,ज़हर में डूबा हुआ पत्थर न सही।
दोस्तों मेरा भी कुछ हक़ तो है,
छुपकर सहीम खुलकर न सही।
यूं भी जीवन जी लेते हैं जीने वाले।
कोई तस्वीर सही,आपका पैकर न सही।

-मज़हर इमाम

शक्‍ल धुंधली सी है,शीशे में निखर जायेगी।
मेरे एहसास की गर्मी से संवर जायेगी।।

आज वो काली घटाओं पे हैं नाजाँ लेकिन।
चांद सी रोशनी बालों में उतर जायेगी।।

-ज़रीना सानी

फ़िलहाल यह ग़ज़लें प्रारंभिक अवस्था में हैं। ग़ज़ल के रसिया और ग़ज़ल गायक इन ग़ज़लों को पसंद करते हैं या नहीं यह भविष्य ही बतायेगा।निम्नलिखित शायर’ आजाद़ ग़ज़ल’के समर्थक हैं।ज़हीर ग़ाजीपुरी, मज़हर इमाम, युसुफ़ जमाल, डा.ज़रीना सानी,अलीम सबा नवीदी,मनाज़िर आशिक़ इत्यादि।

संगीत को त्रिवेणी संगम कहा जाता है। इस संगम में तीन बातें अनिवार्य हैं,शब्द,तर्ज़ और आवाज़। ग़ज़ल की लोकप्रियता इस बात की पुष्टि करती है कि अच्छे शब्द के साथ अच्छी तर्ज़ और मधुर आवाज़ अत्यंत अनिवार्य है। इसीलिये यह निसंकोच कहा जा सकता है कि ग़ज़ल को दिलकश संगीत में ढालने वाले संगीतकार और उसे बेहतरीन ढंग से रसिकों के आगे पेश करने वाले कलाकार गायक अगर नहीं होते तो ग़ज़ल यकीनन किताबों में ही बंद रह कर घुट जाती,सिमट जाती।

Aazaad Gazal ..

Source : http://www.orkut.co.in/Main#CommMsgs.aspx?cmm=92841259&tid=5375208883168993532&na=4

समझ जाता हूँ देर से ही सही, दांव पेच उसके

कुछ देर से सही, मगर समझ लेता हूँ सब दांव पेच उसके
वो बाज़ी जीत लेता है मेरे चालाक होने तक
--अज्ञात

Friday, August 28, 2009

तुझे खबर है तुझे सोचने की खातिर हम

तुझे खबर है तुझे सोचने की खातिर हम
बहुत से काम मुकद्दर पे टाल रखते हैं

कोई भी फ़ैसला हम सोच कर नहीं करते
तुम्हारे नाम का सिक्का उछाल रखते हैं

तुम्हारे बाद ये आदत सी हो गयी अपनी
बिखरते सूखते पत्ते सम्भाल रखते हैं

खुशी सी मिल जाती है खुद को अज़ीयतें देकर
सो जान बूझ के दिल को निढाल रखते हैं

कभी कभी वो मुझे हंस के देख लेते हैं
कभी कभी मेरा बेहद खयाल रखते हैं

तुम्हारे हिज्र में ये हाल हो गया है अपना
किसी का खत हो उसे भी सम्भाल रखते हैं

खुशी मिले तो तेरे बाद खुश नहीं होते
हम अपनी आंख में हर दम मलाल रखते हैं

ज़माने भर से बचा कर वो अपने आंचल में
मेरे वजूद के टुकड़े सम्भाल रखते हैं

कुछ इस लिये भी तो बे-हाल हो गये हम लोग
तुम्हारी याद का बेहद खयाल रखते हैं

--अज्ञात

काश के उसे चाहने का अरमान न होता

काश के उसे चाहने का अरमान न होता
मैं होश में होते हुए अनजान न होता
ये प्यार ना होता किसी पत्थर दिल से हमें
या कोई पत्थर दिल इन्सान ना होता
--अज्ञात

Thursday, August 27, 2009

खाली खाली न यूँ दिल का मकां रह जाये

खाली खाली न यूँ दिल का मकां रह जाये
तुम गम-ए-यार से कह दो, कि यहां रह जाये

रूह भटकेगी तो बस तेरे लिये भटकेगी
जिस्म का क्या भरोसा ये कहां रह जाये

एक मुद्दत से मेरे दिल में वो यूँ रहता है
जैसे कमरे में चरागों का धुआं रह जाये

इस लिये ज़ख्मों को मरहम से नहीं मिलवाया
कुछ ना कुछ आपकी कुरबत का निशां रह जाये

--मुनव्वर राणा

Sunday, August 23, 2009

लभदे लभदे थक जांगे नहीं मां लभणी

धरती उत्ते स्वर्ग नहीं थां लभणी,
लभदे लभदे थक जांगे नहीं मां लभणी
रिश्ते नाते होर बथेरे दुनिया विच
इस रिश्ते विच ही साडी दुनिया लभणी

मां है रब दा रूप सयाणे कह गये ने
पर उस रब नूं पूजन वाले थोड़े रह गये ने
धुर दरगाहे उसनूं नहीं जे थां लभणी
लभदे लभदे थक जांगे नहीं मां लभणी

जीवन धुप ते मां परछावां हुंदी ए
हर सुख दुख दा ए सिरनावां हुंदी ए
मा दी हिक दी निघ वी किधरे ना लभणी
लभदे लभदे थक जांगे नहीं मां लभणी

कर्ज़ा इस दा ज़िन्दगी भर नहीं ला सकदे
पा लो जिन्ना प्यार एस तो पा सकदे
गलती कर के जिस तो सदा खिमां लभणी
लभदे लभदे थक जांगे नहीं मां लभणी

जद तू अपणे सीने धस लवौंदी सें
मिठियां लोरियां गा के जद सवौंदी सें
माख्यों मिठी किधरे होर ज़ुबां लभणी
लभदे लभदे थक जांगे नहीं मां लभणी

तेरी पक्की जद वी खाण नूँ जी करदा
नस के तेरे कोल औण नूं जी करदा
ना मूंगी, ना मसर, ते ना हो माह लभणी
लभदे लभदे थक जांगे नहीं मां लभणी

भुखी रह के साडा ढिढ जो भरदी रही
सुख लयी साडे नित दुआवां करदी रही
ना कूचे गलियां शहर-गिरां लभणी
लभदे लभदे थक जांगे नहीं मां लभणी

प्यार दा सोमा तू ममता दी मूरत है
छोटे वड्डे सब नूं तेरी ज़रूरत है
बिन तेरे पास पतझड़ अते खिज़ां लभणी
धन दौलत ते मिल जाणी नहीं मां लभणी
लभदे लभदे थक जांगे नहीं मां लभणी

--'नूर' रवि नूर सिंह

यहाँ के बाशिंदे बिगाड़ने चले है, तासीर मेरी

यहाँ के बाशिंदे बिगाड़ने चले है, तासीर मेरी
तुझे क्या मालूम ये महफ़िल है दोमनगीर मेरी

दिलो-दिमाग चीर के बनी है कलम तीर मेरी
ना समझो को क्या समझ आएगी तहरीर मेरी

चंद दिनों में इन दरख्तों से पत्ते टूटने वाले है
इस महफ़िल में कैसे बन पाएगी तकदीर मेरी

मै उसको छोड़कर इस बज्म में आया करता हूँ
कितना तड़पती है एजाज-ए-बेदिल हीर मेरी

वो कुछ बोलते तो क्या बोलते, कुछ ना बोलते
उन्होंने चुप रह कर ही करदी है तहकीर मेरी

मेरी लियाक़त अभी, खुदा को भी नहीं मालूम
आसमान मेरी छत और जमीन है जागीर मेरी

जबान का नहीं कलम इस्तेमाल करू हूँ अत्फाल
नजर ऊची कर बेदिल अब होनी है ताबीर मेरी


१. तहकीर - insult
२. लियाक़त - ability
३. अत्फाल - baby
४. ताबीर - interpretation
५. दोमनगीर - dependent

Deepak "bedil"...

तुम्हें बख्शी है दिल पे हुकमरानी, और क्या देते

तुम्हें बख्शी है दिल पे हुकमरानी, और क्या देते
ये ही थी बस अपनी राजधानी, और क्या देते

सितारों से किसी की मांग भरना इक फसाना है
तुम्हारे नाम लिख दी ज़िन्दगानी, और क्या देते

वो हम से मांगता था उम्र का इक दिल नशीं हिस्सा
न देते उसको हम अपनी जवानी, और क्या देते

बिछड़ते वक्त उसको इक ना इक तोहफा तो देना था
हमारे पास था आंखों में पानी, और क्या देते

--अज्ञात

मज़ा आ जायेगा महफिल में सुनने सुनाने का

मज़ा आ जायेगा महफिल में सुनने सुनाने का
वो मेरे दिल में होंगे, और दुनिया ढूँढती होगी
--अज्ञात

ना है सारे शहर में दीवाना मुझसा

ना है सारे शहर में दीवाना मुझसा
जल्द ही हो जायेगा जमाना मुझसा

तुम ख़ुशी, ख़ुशी की दवा लिखते हो
तब भी ना आएगा मुस्कुराना मुझसा

शेर-शायरी में हाथ-पैर मारने वालो
कभी तो सुनाया करो फ़साना मुझसा

मै नही एक पंहुचा हुआ रिंद तो क्या
तू कुछ हो तो सजा मयखाना मुझसा

नए ख़याल नए विचार ला दे दे मुझे
दुनिया याद करेगी, अफसाना मुझसा

उन आशिको का इश्क बयान करता हूँ
जो चाहते है ख़ुशी और याराना मुझसा

बेदिल राजा है सारे दिल्ली शहर का
हर महफ़िल में करो आना-जाना मुझसा

--दीपक बेदिल

मुद्‍दआ वयान हो गया

मुद्‍दआ वयान हो गया
सर लहू-लुहान हो गया।

कै़द से रिहाई क्या मिली
तंग आसमान हो गया।

तेरे सिर्फ़ इक वयान से
कोई बेजुबान हो गया।

छिन गया लो कागज़े-हयात
ख़त्म इम्तिहान हो गया।

रख गया गुलाब क़ब्र पर
कौन कद्रदान हो गया।

--दिक्षीत दनकौरी


Source : http://aajkeeghazal.blogspot.com/2009/08/blog-post_22.html

कभी अपने हाथों में मेरा हाथ नही रखता

कभी अपने हाथों में मेरा हाथ नही रखता
वो साथ तो रहता है मुझे साथ नही रखता

या तो मुझसे कभी मेरे वो सपने ना चुरता
या मेरी आँखों में लंबी सी रात नही रखता

उसने तो दिल से मेरा ये प्यार भी निकाला
सच कहा था दिल में कोई बात नही रखता

फैला के दामन भी उस से प्‍यार ना मिलेगा
फकीरों के हाथों मे कभी खैरात नही रखता

हर बार नयी ठोकर उस मासूम को मिली है
अपने साथ गुजिश्ता तज़रबात नही रखता

--अनिल पराशर

तुम्हारा आईना जो बनाना पड़ेगा

तुम्हारा आईना जो बनाना पड़ेगा
चाँद को ही ज़मीन पे लाना पड़ेगा
--अनिल पराशर

Saturday, August 22, 2009

हम अपने बचने कि कोई सबील क्या करते

हम अपने बचने की कोई सबील क्या करते
गवाह टूट गए थे, अपील क्या करते

अदालतों ही में जब लेन देन होने लगे,
तुम्ही बताओ बेचारे वकील क्या करते

जब अपने जिस्म के हिस्से ही अपने दुश्मन हो,
फिर अपने जिस्म कि सरहद को सील क्या करते

तमाम लोग खुशामद कि शाल ओढे थे,
तो हम भी अपनी अना को जलील क्या करते

--अज्ञात

उठ रहा कैसा दिल से धुआं देखिये

उठ रहा कैसा दिल से धुआं देखिये
हो गया इश्क शायद जवां देखिये

आप ही आप बस आ रहे हैं नजर
शौक से अब तो चाहे जहां देखिये

बात अपनी भले ही पुरानी सही
आप बस मेरा तर्जे-बयां देखिये

रहबरों रहजनों में हुई दोस्ती
अब जो लुटने लगे कारवां देखिये

आपकी तो ये ठहरी अदा ही मगर
लुट गया अपना तो कुल जहां देखिये

शोर कैसा खुदाया !ये बस्ती में है
उठ रहा है ये कैसा धुआं?देखिये

खत्म होने को ही है ये दौरे-खिजां
अब आप रौनके-गुलिस्तां देखिये

गर ये ऐसी ही रफ्तार कायम रही
कुछ दिनों बाद हिन्दोस्तां देखिये

दुल्हने सुब्‌ह अब सो के उठने को है
अब जरा सूरते आसमां देखिये

जाने वाला तो कब का चला भी गया
पांव के सिर्फ बाकी निशां देखिये

गोपियां मुझसे गोकुल की हैं पूछतीं
श्याम’को अपने ढूंढे कहां देखिये

--श्याम सखा श्याम


Source : http://kavita.hindyugm.com/2009/08/blog-post_20.html

Friday, August 21, 2009

दस्तूर किसी मजहब का ऐसा भी निराला हो

दस्तूर किसी मजहब का ऐसा भी निराला हो
एक हाथ में हो इल्म ,दूजे में निवाला हो
--अज्ञात


Source : http://anuragarya.blogspot.com/2009/01/blog-post.html

Wednesday, August 19, 2009

हर करम नागवार गुज़रे

तेरे बिना वक्त के हर करम नागवार गुज़रे,
सूखे सूखे से फिर ये मौसम-ए-बहार गुज़रे ।
--आदित्य उपाध्याय

दवा की तरह खाते जाईयें गाली बुजुर्गों की

दवा की तरह खाते जाईयें गाली बुजुर्गों की,
जो अच्छे फल है उनका ज़ायका अच्छा नहीं होता
--मुनव्वर राणा

Sunday, August 16, 2009

हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हरसाल कटता है

हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है
दिखाते हैं पड़ौसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है?
--मुनव्वर राणा

कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है

कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
--शकील बदायूनी

शाम को जिस वक़्त

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
--राजेश रेड्डी


Source : http://aajkeeghazal.blogspot.com/2009/08/blog-post_14.html

रोज़ सवेरे दिन का निकलना

रोज़ सवेरे दिन का निकलना, शाम में ढलना जारी है
जाने कब से रूहों का ये ज़िस्म बदलना जारी है

तपती रेत पे दौड़ रहा है दरिया की उम्मीद लिए
सदियों से इन्सान का अपने आपको छलना जारी है

जाने कितनी बार ये टूटा जाने कितनी बार लुटा
फिर भी सीने में इस पागल दिल का मचलना जारी है

बरसों से जिस बात का होना बिल्कुल तय सा लगता था
एक न एक बहाने से उस बात का टलना जारी है

तरस रहे हैं एक सहर को जाने कितनी सदियों से
वैसे तो हर रोज़ यहाँ सूरज का निकलना जारी है

--राजेश रेड्डी


Source : http://aajkeeghazal.blogspot.com/2009/08/blog-post_14.html

शायर का पता-


राजेश रेड्डी
ए-403, सिल्वर मिस्ट, अमरनाथ टॉवर के पास,
सात बंगला, अंधेरी (प.) मुबंई - 61

Saturday, August 15, 2009

आईना देख के अपना सा मुँह ले के रह गया

आईना देख के अपना सा मुँह ले के रह गया
साहिब को दिल न देने का बड़ा गुरूर था
--अज्ञात

Friday, August 14, 2009

सौ बार मरना चाहा निगाहों में डूब कर

सौ बार मरना चाहा निगाहों में डूब कर
वो निगाहें झुका लेती है, हमें मरने नहीं देती
--अहमद फराज़

Tuesday, August 11, 2009

मैं जब भी उसके खयालों में खो सा जाता हूँ

मैं जब भी उसके खयालों में खो सा जाता हूँ
वो खुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे
--जान निसार अख्तर

Sunday, August 9, 2009

कत्ल जो मेरा करना चाहो

कत्ल जो मेरा करना चाहो, तो ना खंजर से वार करना
मेरे मरने के लिये तो काफी है, तुम्हारा ग़ैरों से प्यार करना
--अज्ञात

फिर उस के बाद ज़माने ने मुझे रौंद दिया

फिर उस के बाद ज़माने ने मुझे रौंद दिया
मैं गिर पड़ा था किसी और को उठाते हुए
--अज्ञात

Tuesday, August 4, 2009

किसी का हमसफ़र नहीं , इसका नहीं गिला मुझे

किसी का हमसफ़र नहीं , इसका नहीं गिला मुझे
पास गया तो जल जाऊंगा, भा गया है फासला मुझे
--कुलदीप अंजुम

दिल में आता है तुझे टूट कर चाहूँ जाना

दिल में आता है तुझे टूट कर चाहूँ जाना
छोड़ दूँ फिर तुझे प्यार में पागल कर के
--अज्ञात

Sunday, August 2, 2009

अशार मेरे यूँ तो ज़माने के लिये हैं

अशार मेरे यूँ तो ज़माने के लिये हैं
कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिये हैं

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिये हैं

आँखों में जो भर लोगे तो कांटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिये हैं

देखूँ तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ
मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिये हैं

सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझाने के लिये हैं

ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिये हैं

--जान निसार अख्तर


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रहते हमारे पास तो ये टूटते ज़रूर

रहते हमारे पास तो ये टूटते ज़रूर
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिये
--कुंवर बेचैन

ना तार्रूफ ना ताल्लुक है

ना तार्रूफ ना ताल्लुक है, मगर दिल अक्सर
नाम सुनता है तुम्हारा उछल पड़ता है

--राहत इंदोरी

ये वर्क वर्क तेरी दास्तां

ये वर्क वर्क तेरी दास्तां, ये सबक सबक तेरे तज़किरे
मैं करूँ तो कैसे करूँ अलग, तुझे ज़िन्दगी की किताब से
--अज्ञात

Saturday, August 1, 2009

एक पानी में भीगी हुई किताब

एक पानी में भीगी हुई किताब
जाने किसने?
सूखने के लिए रख दी है धूप में
--विनय प्रजापति


मुझे नहीं पता कि इसका भावार्थ क्या है, परन्तु ये चन्द पंक्तिया पसन्द आई तो, पोस्ट कर रहा हूँ
आप अपनी समझ के हिसाब से कमेन्ट करें कि क्या भावार्थ निकलता है इसका !!!

Tuesday, July 28, 2009

समन्दर मैं तुझसे वाकिफ हूँ मगर इतना बताता हूँ

समन्दर मैं तुझसे वाकिफ हूँ मगर इतना बताता हूँ
वो आंखें ज़्यादा गहरी हैं जिनमें मैं डूब जाता हूँ
--अज्ञात

Monday, July 27, 2009

हम तो मौजूद थे, अंधेरों में उजालों की तरह

हम तो मौजूद थे, अंधेरों में उजालों की तरह
तुमने चाहा ही नहीं चाहने वालों की तरह
--अज्ञात

इस दौर के नौजवानों में ये चलन खास है

इस दौर के नौजवानों में ये चलन खास है
दुशवार है जिंदगी उस पर मोहब्बत की तलाश है

ये हुस्न-ओ-जमाल के खजाने नहीं मुफलिसों के लिये
हसीनाएं है परछाई उस शक़्स की दौलत जिसके पास है

तौहीन न करना कभी कह कर "कड़वा" शराब को
किसी ग़मजदा से पूछियेगा इसमें कितनी मिठास है

मौत इस निजाम में मर्ज़ क इलाज बन चुकी है
सहमे परिन्दोन को इस हक़ीक़त क एहसास है

ठोकर लगे खाली पैमाने सी जिन्दगी अपनी "कुरील"
सागर नहीं नसीब में और लबों पर प्यास है

-मनोज कुरील

Sunday, July 26, 2009

मेहरबां कभी ना-आशनाओं जैसा है

मेहरबां कभी ना-आशनाओं जैसा है
मिजाज़ उसका भी अजीब धूप छांव जैसा है
मैं उसे किस दिल से बेवफा कह दूँ
वो बेवफा तो नहीं बेवफाओं जैसा है
--अज्ञात

आपणे हथां च हाथ फड़ लैंदा मेरा

आपणे हथां च हाथ फड़ लैंदा मेरा
ता मैं एदा परायी हुन्दी ना

बण जान्दा जे दिल दा मरहम
मैं अपणी दुनिया लुटाई हुन्दी ना

तेरियां बाहां दा सहारा जे मिल जान्दा
ता मेरे को तनहाई हुन्दी ना

तु बण जान्दा जे ताकत मेरी
एह दुनिया विचकार आई हुन्दी ना

चाहे ला देन्दा कोई झूठा लारा
मैं आस ता मुकाई हुन्दी ना

लोकां दी थां मेरी परवाह कर लेन्दा
मेरे तो बेपरवाही हुन्दी ना

जे मना लेन्दा मैनूं आ के
ता फिर कोई रुसवाई हुन्दी ना

जे लुका लेन्दा दिल विच किते
ता मैं लोका दी सताई हुन्दी ना

जे वख ना मैनूँ होण देन्दा
फिर एह लम्बी जुदाई हुन्दी ना

इक वार कह देन्दा के तेरा ही है
ता मेरे तो बेवफाई हुन्दी ना

--अज्ञात

कहीं मैं कर न लूं यकीं

कहीं मैं कर न लूं यकीं
मेरे दिल से यूँ न खिताब कर
मुझे ज़िन्दगी की दुआ ना दे
मेरी आदतें ना खराब कर
--अज्ञात

मिजाज़ इतना भी न देखो सादा रहे

मिजाज़ इतना भी न देखो सादा रहे
कि दुश्मनों से ही दोस्ती का इरादा रहे
--आलोक मेहता


Source : http://deewan-e-alok.blogspot.com/2009/07/mijaj-itna-bhi-na-dekho-saada-rahe.html

Saturday, July 25, 2009

उसे मैं याद आता हूँ

उसे मैं याद आता हूँ मगर फुरसत के लम्हों में
मगर ये भी हकीकत है, उसे फुरसत नहीं मिलती
--अज्ञात

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाये मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं

हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारो
ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं

ये कभी अपनी जफ़ा पर न हुआ शर्मिन्दा
हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं

उम्र भर जिनकी वफ़ाओं पे भरोसा कीजे
वक़्त पड़ने पे वही लोग बदल जाते हैं

--बशीर बद्र


Source : http://www.urdupoetry.com/bashir05.html

टूट जाने तलक गिरा मुझको

टूट जाने तलक गिरा मुझको
कैसी मिट्टी का हूं बता मुझको

मेरी खुश्बू भी मर ना जाये कहीं
मेरी जद से ना कर जुदा मुझको

घर मेरे हाथ बाँध देता है
वरना मैदान में देखना मुझको

अक़्ल कोई सज़ा है या इनाम
बड़ा सोचना पड़ा मुझको

हुस्न क्या चन्द रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको

देख भगवे लिबास का जादू
सब समझते हैं पारसा मुझको

कोई मेरा मरज़ तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको

मेरी ताकत ना जिस जगह पहुँची
उस जगह प्यार ले गया मुझको

ज़िन्दगी से नहीं निभा पाया
बस यही एक ग़म रहा मुझको

--हस्ती मल हस्ती

Wednesday, July 22, 2009

मैं रोता हूँ, आंखों में पानी नहीं रखता

मैं रोता हूँ, आंखों में पानी नहीं रखता
मैं लव्ज़ों में अपनी झूठी कहानी नहीं रखता
वो आये और आ कर अपनी यादों को भी ले जाये
मैं भूल जाने वालों की कोई निशानी नहीं रखता
--अज्ञात

ज़रा सी ज़िन्दगी है अरमान बहुत हैं

ज़रा सी ज़िन्दगी है अरमान बहुत हैं
हमदर्द नहीं कोई इंसान बहुत हैं
दिल का दर्द सुनायें तो सुनायें किसको
जो दिल के करीब है, वो अनजान बहुत है
--अज्ञात

बिछड़ गया है तो उसका साथ क्या मांगूँ

बिछड़ गया है तो उसका साथ क्या मांगूँ
ज़रा सी उम्र है, ग़म से निजात क्या मांगूँ
वो साथ होता तो होती ज़रूरतें भी बहुत
अकेली ज़ात के लिये कायनात क्या मांगूँ
--अज्ञात

Sunday, July 19, 2009

करेंगे क्या, मोहब्बत में नाकामयाब हो जाने के बाद

करेंगे क्या, मोहब्बत में नाकामयाब हो जाने के बाद
दीवानों को तो और कोई काम भी नहीं आता
--अज्ञात

बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में

बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
कि तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में
[झिझक=hesitation; ज़िक्र=mention; फ़साना=tale]

बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में
वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में
[रुख़=face; नक़ाब=veil]

इसी में इश्क़ की क़िस्मत बदल भी सकती थी
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में

ये कह के टूट पड़ा शाख़-ए-गुल से आख़िरी फूल
अब और देर है कितनी बहार आने में

--कैफी आज़मी

जुदाई से ही कायम है, निज़ाम-ए-ज़िन्दगानी भी

जुदाई से ही कायम है, निज़ाम-ए-ज़िन्दगानी भी
बिछड़ जाता है, साहिल से टकरा कर पानी भी
--अज्ञात

यादों की मेज़…

यादों की मेज़ पर कोई तसवीर छोड़ दो
कब से मेरे ज़हन का कमरा उदास है
--अज्ञात

करिश्मे खूब मेरा जान-निसार करता था

करिश्मे खूब मेरा जान-निसार करता था
मिला के हाथ वो पीछे से वार करता था

वो जब भी ठोकता था कील मेरे सीने में
बड़ी अदा से उसे आर-पार करता था

सितारे तोड़ के लाया नहीं कोई अब तक
कि इस फ़रेब पे वो ऐतबार करता था

उसे पता था कि जीवन सफ़ेद चादर है
ना जाने क्यूं वो उसे दागदार करता था

कुछ इस लिये भी मुझे उसकी बात चुभती थी
कि वो ज़बान का ज़्यादा सिंगार करता था

पलट के आती नहीं है कभी नदी, यारो
मैं जानता था! मगर इंतज़ार करता था

--ज्ञान प्रकाश विवेक

Saturday, July 18, 2009

हमें कोई तुम सा मिल जाये ये नामुमकिन सही

हमें कोई तुम सा मिल जाये ये नामुमकिन सही
तुम्हें भी हम सा मिल जाये, बड़ा मुश्किल सा लगता है
--अज्ञात

तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी का ये आलम है के

तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी का ये आलम है के
सुबह के ग़म शाम को पुराने हो जाते है
--अज्ञात

कौन किसकी याद में रोता है उम्र भर

कौन किसकी याद में रोता है उम्र भर
फकत रीत है, जो शेरों में लिखी जाती है
--अज्ञात

याद करने के सिवा तुझे कर भी क्या सकते हैं

याद करने के सिवा तुझे कर भी क्या सकते हैं
भूल जाने में तुझे नाकाम हो जाने के बाद
--अज्ञात

Monday, July 13, 2009

बोलता है तो पता लगता है

बोलता है तो पता लगता है
ज़ख्म उसका भी नया लगता है

रास आ जाती है तन्हाई भी
एक दो रोज़ बुरा लगता है

कितने ज़ालिम हैं ये दुनिया वाले
घर से निकलो तो पता लगता है

आज भी वो नहीं आने वाला
आज का दिन भी गया लगता है

बोझ सीने पे बहुत है लेकिन
मुस्कुरा देने में क्या लगता है

दो कदम है अदालत, लेकिन
सोच लो! वक़्त बड़ा लगता है

--शक़ील जमाली

Sunday, July 12, 2009

वो कौन है जिन्हें तौबा की मिल गयी फुरसत
हमें गुनाह भी करने को ज़िन्दगी कम है
--आनन्द नारायण मुल्ला
कहूँ कुछ उनसे मगर ये खयाल होता है
शिकायतों का नतीजा अक्सर मलाल होता है
--परवीन शाकिर
मौत अंजाम-ए-जिंदगी है मगर ,
लोग मरते है जिंदगी के लिए ।
--साहिल मानिकपुरी

कौन कहता है मोहब्बत की ज़ुबाँ होती है

कौन कहता है मोहब्बत की ज़ुबाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है

वो ना आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को
वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है

रूह को शाद करे दिल को जो पुरनूर करे
हर नज़ारे में ये तंवीर कहाँ होती है

ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मोहब्बत को कहाँ तक रोके
दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है

ज़िन्दगी एक सुलगती सी चिता है "साहिर"
शोला बनती है ना ये भुज के धुआँ होती है

--साहिर होशियारपुरी


Source : http://www.urdupoetry.com/shoshiarpuri01.html

मेरा दिल चाहता है कि वीराना कह दूँ,

मेरा दिल चाहता है कि वीराना कह दूँ,
मैं इस एक पल को कैसे ज़माना कह दूँ,

सब लोग हँसते हैं पर दिल नही हँसता,
इस जमघट को कैसे दोस्ताना कह दूँ।

माना की तूने मुझे दिया है बहुत कुछ,
पर तू ही बता कैसे खैरात को नजराना कह दूँ।

जानता हूँ के कई लोग ख़ुद को शम्मा कहते हैं,
मेरा जिगर नही की मैं ख़ुद को परवाना कह दूँ।

तू चाहे की मेरे घर को मैं ताजमहल कहूँ,
मैं तो फकीर हूँ तू बता कैसे अमीराना कह दूँ।

मैं तो घर को घर ही कहता रहूँगा सदा,
मुमकिन नही बेकस कि शराबखाना कह दूँ।

--अज्ञात


Source : http://bsbekas.blogspot.com/2008/08/blog-post_4590.html

बहुत अजीब है बंदिशें मोहब्बत की

बहुत अजीब है बंदिशें मोहब्बत की फ़राज़
न उसने कैद में रखा न हम फ़रार हुए
--अहमद फराज़

अब मिलेंगें तो खूब रुलायेंगें

अब मिलेंगें तो खूब रुलायेंगें उस संगदिल को फ़राज़
सुना है रोते में उसे लिपट जाने कि आदत है
--अहमद फराज़

कहीं तनहा न कर दे तुझे मनफ़रीद रहने का शौक फ़राज़

कहीं तनहा न कर दे तुझे मनफ़रीद रहने का शौक फ़राज़
जब दिल ढले तो किसी से हाल-ए-दिल कह दिया कर
--अहमद फराज़

कौन तौलेगा अब हीरों में मेरे आंसू

कौन तौलेगा अब हीरों में मेरे आंसू फ़राज़
वो जो दर्द का ताजिर था दुकान छोड़ गया
--अहमद फराज़

मैं अकेला वारिस हूँ, उसकी तमाम नफरतों का

मैं अकेला वारिस हूँ, उसकी तमाम नफरतों का
जो शक्स सारे शहर में प्यार बांटता है
--अज्ञात

जे रब मिलदा जंगल जायां

जे रब मिलदा जंगल जायां
मिलदा चाम चड़खियां नूँ

जे रब मिलदा नहातयां धोतयां
मिलदा डडुआं मच्छियां नूँ

जे रब मिलदा टल वजायां
मिलदा गऊँआं वच्छियां नूँ

बुल्ले शाह इंज रब नहीं मिलदा
रब मिलदा ए नीतां अच्छियां नूँ

--बुल्ले शाह

Saturday, July 11, 2009

ज़िन्दगी का अजब दस्तूर देखा

ज़िन्दगी का अजब दस्तूर देखा
जिसे चाहा उसे मजबूर देखा

दिल के एक छोटे से ज़ख्म को
हमने बनते हुए नासूर देखा

वफ़ा करना ही मेरा कुसूर था
बेवफा को हमने बेकसूर देखा

गुमनामी में गुज़री ज़िन्दगी अपनी
उस पर शोहरत का सुरूर देखा

--अज्ञात

रोज़ तारों की नुमाईश में खलल पड़ता है

रोज़ तारों की नुमाईश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
उनकी याद आई है, सांसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है
--राहत इंदोरी

Friday, July 10, 2009

ख्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है

ख्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऎसी तनहाई की मार जाने को जी चाहता है

घर की वहशत से लरजता हूँ मगर जाने क्यों
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है

डूब जाऊं तो कोई मौज निशाँ तक ना बताये
ऎसी नदी में उतर जाने को जी चाहता है

कभी मिल जाए तो रस्ते की थकन जाग पड़े
ऎसी मंजिल से गुज़र जाने को जी चाहता है

वही पैमान जो कभी जी को खुश आया था बहुत
उसी पैमान से मुकर जाने को जी चाहता है

[paimaan = promise]

-जनाब इफ्तिखार आरिफ

Thursday, July 9, 2009

माना के मैं बुरा हूँ, मगर इतना भी नहीं

माना के मैं बुरा हूँ, मगर इतना भी नहीं
कुछ नज़रों से गिरा हूँ, मगर इतना भी नहीं
कोशिश तो करे कोई मुझे समेटने की मैं
टूट के बिखरा हूँ, मगर इतना भी नहीं

--अज्ञात

Wednesday, July 8, 2009

तुमको खबर हुई न ही ज़माना समझ सका

तुमको खबर हुई न ही ज़माना समझ सका
हम तुम पे चुपके चुपके कईं बार मर गये
--अज्ञात

दिल तेज़ धड़कने का कोई राज़ नहीं था

दिल तेज़ धड़कने का कोई राज़ नहीं था
इक ख्वाब ही टूटा था कोई ताज नहीं था
--अज्ञात

Tuesday, July 7, 2009

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा कहते हैं

ज़िन्दगी को भी सिला कहते हैं कहनेवाले
जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं

फ़ासले उम्र के कुछ और बड़ा देती है
जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं

चंद मासूम से पत्तों का लहू है "फ़ाकिर"
जिसको महबूब के हाथों की हिना कहते हैं

--सुदर्शन फ़ाकिर

चाँद निकला था मगर रात ना थी पहली सी

चाँद निकला था मगर रात ना थी पहली सी

ये मुलाक़ात, मुलाक़ात ना थी पहली सी

रंज कुछ कम तो हुआ आज तेरे मिलने से

ये अलग बात है के वो बात ना थी पहली सी

--अज्ञात

तुमसे मिलते ही बिछ़ड़ने के वसीले हो गए

तुमसे मिलते ही बिछ़ड़ने के वसीले हो गए
दिल मिले तो जान के दुशमन क़बीले हो गए

आज हम बिछ़ड़े हैं तो कितने रँगीले हो गए
मेरी आँखें सुर्ख तेरे हाथ पीले हो गए

अब तेरी यादों के नशतर भी हुए जाते हैं *कुंद
हमको कितने रोज़ अपने ज़ख़्म छीले हो गए

कब की पत्थर हो चुकीं थीं मुंतज़िर आँखें मगर
छू के जब देखा तो मेरे हाथ गीले हो गए

अब कोई उम्मीद है "शाहिद" न कोई आरजू
आसरे टूटे तो जीने के वसीले हो गए

--शाहिद कबीर


Source : http://aajkeeghazal.blogspot.com/2009/07/blog-post.html

Monday, July 6, 2009

वो भी शायद रो पड़े वीरान कागज़ देख कर

वो भी शायद रो पड़े वीरान कागज़ देख कर
मैं ने उन को आख़िरी ख़त में लिखा कुछ भी नहीं
--ज़हूर नज़र


Source : http://www.urdupoetry.com/znazar01.html

Sunday, July 5, 2009

जिस की खातिर हम हुए हैं बेखबर आराम से

जिस की खातिर हम हुए हैं बेखबर आराम से
हाये वो ज़ालिम पड़ा है सेज पर आराम से

भूल जाओ जो भी था अब तक हमारे दर्मियां
उस ने मुझ से कह दिया ये किस कदर आराम से

दिल के ज़ख्मों को भी भर देता है मरहम वक्त का
ज़ख्म भर जायेंगें अपने भी मगर आराम से

गिर के फिर उठना सम्भलना फिर सम्भलना कर दौड़ना
वक्त सिखलाता है ये सारे हुनर आराम से

अपने खून से अब यारी इस की करते जाइये
हां समर देगा उम्मीदों का शजर आराम से

काश मेरे हाथ में तु हाथ देता कभी
कट ही जाता ज़िन्दगी का ये सफर आराम से

शायरी में कह दिया देखा जो सफर-ए-ज़ीस्त में
कर दिया असीम ने किस्सा मुख्तसर आराम से

--असीम कौमी

मैं एक खिलौना हूँ, और वो उस बच्चे की मानिंद

मैं एक खिलौना हूँ, और वो उस बच्चे की मानिंद
जिसे प्यार तो है मुझसे, मगर सिर्फ़ खेलने की हद तक
--अज्ञात

बड़ी मुश्किल से कल रात मैने सुलाया खुद को

बड़ी मुश्किल से कल रात मैने सुलाया खुद को
इन आंखो को तेरे ख्वाब का लालच दे कर
--अहमद फराज़

Saturday, July 4, 2009

ज़िन्दगी तुझ को मनाने निकले

ज़िन्दगी तुझ को मनाने निकले
हम भी किस दर्जा दीवाने निकले
[दर्जा=type of, to what limit]


कुछ तो दुश्मन थे मुख़ालिफ़-सफ़ में
कुछ मेरे दोस्त पुराने निकले
[मुख़ालिफ़-सफ़=in the enemy camp]


नज़र_अन्दाज़ किया है उस ने
ख़ुद से मिलने के बहाने निकले

बे-बसारत है ये बस्ती यारो
आईना किस को दिखाने निकले
[बे-बसारत=blind]


इन अन्धेरों में जियोगे कब तक
कोई तो शमा जलाने निकले

--अमीर कज़लबाश


Source : http://www.urdupoetry.com/kazalbash02.html

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये
नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

--कैफी आज़मी


Source : http://www.urdupoetry.com/kaifi07.html

आंखें बयां कर देती हैं दिल के राज़ अक्सर

आंखें बयां कर देती हैं दिल के राज़ अक्सर
बहुत खामोश मोहब्बत की ज़ुबां होती है
--अज्ञात

Thursday, July 2, 2009

शोला-ए-ग़म में जल रहा है कोई

शोला-ए-ग़म में जल रहा है कोई
लम्हा-लम्हा पिघल रहा है कोई

शाम यूँ तीरगी में ढलती है
जैसे करवट बदल रहा है कोई

उसके वादे हैं जी लुभाने की शय
और झूठे बहल रहा है कोई

ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई

दिल की आवारगी के दिन आये
फिर से अरमाँ मचल रहा है कोई

मुझको क्योंकर हो एतबारे-वफ़ा
मेरी जाने-ग़ज़ल रहा है कोई

--मनु बेतखल्लुस


Source : http://kavita.hindyugm.com/2009/07/uske-vaade-jee-lubhane-ki-shai.html

तूने जो ना कहा, मैं वो सुनता रहा

तूने जो ना कहा, मैं वो सुनता रहा
खा मखां बेवजह, ख्वाब बुनता रहा

न्यू यार्क फिल्म का गीत

लौट आती है मेरी शब की इबादत खाली

लौट आती है मेरी शब की इबादत खाली
जाने किस अर्श पे रहता है, खुदा शाम के बाद
--अज्ञात

धुंध सी छाई हुई है आज घर के सामने

धुंध सी छाई हुई है आज घर के सामने
कुछ नज़र आता नहीं है अब नज़र के सामने

सर कटाओ या हमारे सामने सजदा करो
शर्त ये रख दी गयी है हर बशर के सामने

सोचता हूँ क्यूं अदालत ने बरी उसको किया
क़त्ल करके जो गया सारे नगर के सामने

देर तक देखा मुझे और फ़िर किसी ने ये कहा
आज तो मुझको पढ़ो मैं हूं नज़र के सामने

कल सड़क पर मर गये थे ठंड से कुछ आदमी
देश की उन्नति बताते पोस्टर के सामने

लौटना मत बीच से पूरा करो अपना सफ़र
हल करो वो मुश्किलें जो हैं डगर के सामने

--नित्यानंद तुशार

Wednesday, July 1, 2009

हम पर दुख का पर्वत टूटा, तब हमने दो चार कहे

हम पर दुख का पर्वत टूटा, तब हमने दो चार कहे
उस पर क्या बीती होगी, जिसने शेर हज़ार कहे
--बालस्वरूप राही

रासता है कि कटता जाता है

रासता है कि कटता जाता है
फासला है कि कम नहीं होता
--काबिल अजमेरी

Tuesday, June 30, 2009

बरसो बाद मिले जो चंद लफ़्ज़ गुफ़्तगू को ना निकले,

बरसो बाद मिले जो चंद लफ़्ज़ गुफ़्तगू को ना निकले,
वो यार जो पहलू में कभी घन्टों बिताते थे,

--आलोक मेहता

Sunday, June 28, 2009

घर आ के मां बाप बहुत रोये अकेले में

घर आ के मां बाप बहुत रोये अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते ना थे मेले में
--अज्ञात

कभी कभी हम यूँ भी दिल को बहलाया करते हैं

कभी कभी हमने अपने दिल को यूँ भी बहलाया है
जिन बातों को हम नहीं समझे, औरों को समझाया हैं
--निदा फ़ाज़ली

कदम रुक से गये हैं फूल बिकते देख कर मेरे

कदम रुक से गये हैं फूल बिकते देख कर मेरे
मैं अक्सर उस से कहता था, मोहब्बत फूल होती है
--अज्ञात

मुलाकातें ज़रूरी हैं अगर रिश्ते बचाने हैं

मुलाकातें ज़रूरी हैं अगर रिश्ते बचाने हैं
लगा कर भूल जाने से तो पौधे भी सूख जाते हैं
--अज्ञात

उसने कहा कौन सा तोहफा मैं तुम्हे दूँ

उसने कहा कौन सा तोहफा है मनपसंद
मैने कहा वही शाम जो अब तक उधार है
--अज्ञात

हमसे ना पूछ मोहब्बत के मायने ए दोस्त

हमसे ना पूछ मोहब्बत के मायने ए दोस्त
हमने बरसों एक बन्दे को खुदा माना है
--अज्ञात

Wednesday, June 24, 2009

जिनके आँगन में अमीरी का शजर लगता है,

जिनके आँगन में अमीरी का शजर लगता है,
उनका हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है
--अन्जुम रहबर



किसी और का ज़िक्र उसे गवारा नहीं आलोक

किसी और का ज़िक्र उसे गवारा नहीं आलोक
जब मिलती है, खुद में दुनिया समेट लेती है

--आलोक मेहता

Sunday, June 21, 2009

मेरी इन गज़लों को उठा कर संभाल कर फेकना

मेरी इन गज़लों को उठा कर संभाल कर फेकना
महफ़िल-ए-यार में ना दिल उछाल कर फेकना

इश्क-ओ- आबरू-ओ- शर्म-ओ- हया गजब है
नफरत को ए साहब दिल से निकाल कर फेकना

हस्ती जब तलक इस मैदान-ए-गुलसिता में मेरी
रहगी फ़ितरत यारो इश्क को बेहाल कर फेकना

ये हुआ की जाट साहब सिर्फ चंद बाते कह पाए
की यारो को मोहब्बत में माला-माल कर फेकना

"बेदिल" के कारनामे दिल्ली में मशहूर हो चले है
मुझे दिल से फेकना दोस्त मगर ख्याल कर फेकना

--दीपक 'बेदिल'

मेरी खुशियाँ,मेरा,गुरूर,मेरा आत्मसम्मान सब पीछे छूटा है,

मेरी खुशियाँ,मेरा,गुरूर,मेरा आत्मसम्मान सब पीछे छूटा है,
बोलो कौन सी कचहरी में जाऊं कि मेरा विश्वास टूटा है...

-स्वीट 'जज्बाती'

Saturday, June 20, 2009

अपने साये से भी अश्क़ों को छुपा कर रोना

अपने साये से भी अश्क़ों को छुपा कर रोना
जब भी रोना हो चराग़ों को बुझा कर रोना

हाथ भी जाते हुये वो तो मिला कर ना गया
मैने चाहा जिसे सीने से लगा कर रोना

तेरे दीवाने का क्या हाल किया है ग़म ने
मुस्कुराते हुये लोगों में भी जा कर रोना

लोग पढ़ लेते हैं चेहरे पे लिखीं तहरीरें
इतना दुशवार है लोगों से छुपा कर रोना

--निसार तरीन जाज़िब


Source : http://www.urdupoetry.com/jazib01.html

लाख बंद करें मैखाने ज़माने वाले

लाख बंद करें मैखाने ज़माने वाले
दुनिया में कम नहीं हैं आंखों से पिलाने वाले
--अज्ञात

मरेंगें और हमारे सिवा भी तुम पे बहुत

मरेंगें और हमारे सिवा भी तुम पे बहुत
ये जुर्म है तो फिर इस जुर्म की सज़ा रखना
--ज़फर

माना के साकी के पास जाम बहुत है

माना के साकी के पास जाम बहुत है
पर हमें भी दुनिया में काम बहुत है

आरज़ू, अरमान, इश्क़, तमन्ना, वफ़ा, मोहब्बत
चीज़ें तो अच्छी हैं पर दाम बहुत है

ऐसा भी है कोई जो ग़ालिब को ना जाने
शायर तो अच्छा है पर बदनाम बहुत है

--मिरज़ा ग़ालिब


मुझे ये गज़ल एक दोस्त ने भेजी थी, ग़ालिब के तखल्लुस से लगा कि मिरज़ा ग़ालिब की होनी चाहिये, इस लिये शायर का नाम मिरज़ा ग़ालिब लिख रहा हूँ। अगर ग़लत हो, तो बताईयेगा

वो कहां जाता किसे कोई सफ़ाई देता

वो कहां जाता किसे कोई सफ़ाई देता
अपने आगे जिसे कुछ भी ना दिखाई देता

वो कोई जज़्बा समझने ही को तैयार नहीं
मैं कहां तक उसे रिश्तों की दुहाई देता

एक अनदेखे सफ़र पर ही निकलना होगा
प्यार में रास्ता होता तो दिखाई देता

घर से निकला हूं कि दिन जीत के अब लौटूँगा
रात आती तो यही ख्वाब दिखाई देता

किस तरह घर के बडे शहर जलाने निकले
काश बच्चों को ये मंज़र ना दिखाई देता

तुझसे हट कर मैं किसे देखता तेरे जैसा
कोई अन्दाज़ किसी में तो दिखाई देता

रौशनी देगा मेरे घर को कहां ऐसा चिराग़
तेरे चेहरे की बदौलत जो दिखाई देता

वसीम बरेलवी

Friday, June 19, 2009

आंखों की ज़ुबां की एहमियत माना खूब है इसमें

आंखों की ज़ुबां की एहमियत माना खूब है इसमें
मगर उल्फत लव्ज़ों में बयां हो, तो बुरा क्या है
--आलोक मेहता

कुछ बातें कह दी जायें तो मुनासिब हैं

कुछ बातें कह दी जायें तो मुनासिब हैं
कि प्यार हो या नफरत ज़ाहिर हो जाये तो अच्छा
--आलोक मेहता

Thursday, June 18, 2009

अपनी तो दास्तान-ए-इश्क़ का ये पहलू रहा फराज़

अपनी तो दास्तान-ए-इश्क़ का ये पहलू रहा फराज़
नज़रें मिली थी जिस से मुकद्दर न मिल सका
--अहमद फराज़

Sunday, June 14, 2009

अब मेरे मरने वालो, खुदारा जवाब दो

अब मेरे मरने वालो, खुदारा जवाब दो
वो बार बार पूछते हैं कौन मर गया?
--अज्ञात

निगाहों पर निगाहों के पहरे होते हैं

निगाहों पर निगाहों के पहरे होते हैं
इन निगाहों के घाव भी गहरे होते हैं
न जाने क्यों कोसते हैं लोग बदसूरतों को
बरबाद करने वाले तो हसीन चेहरे होते हैं
--अज्ञात

दिल की बातें दिल में रह गयी , जुबाँ पे आया कुछ भी नहीं

दिल की बातें दिल में रह गयी , जुबाँ पे आया कुछ भी नहीं
सोचा बहुत था, पर आई जब तुम, हमने बताया कुछ भी नहीं

कभी ये मोती, कभी ये शबनम , तुम्हारा कतरा गंगाजल नम
गम तो यहाँ भी दबे बहुत थे, हमने बहाया कुछ भी नहीं

बादल, बिजली, सूरज , चंदा, तारें, मौसम सब तुम हो
जो कुछ था सब तुमपे लुटाया, हमने बचाया कुछ भी नहीं

दुःख सब मेरे, सुख सब तेरे, हम है तेरे गम के लुटेरे
दर्द की वैसे खेती की है, तुझे भिजवाया कुछ भी नहीं

चंचल आँखें, नाजुक बातें , चाँद सा चेहरा , जुल्फें रातें
एक झलक में इतना सब कुछ, अभी दिखाया कुछ भी नहीं

बदन धूप का, खिले रूप का, फूल-सी खुशबू , अल्ला हू
सारी नेमत तेरे हिस्से , हमने पाया कुछ भी नहीं

तेरा पसीना ओस की बूंदें , आसूं तेरे गौहर हैं
हम जो हँसें तो बने गुनाह, तूने जो रुलाया कुछ भी नहीं

पता हैं तूने पिया न पानी, चाँद जो तुझको दिखा नहीं
मैंने भी है साथ निभाया , सुबह से खाया कुछ भी नहीं

मेरी बरकत, मेरी शोहरत, सब तुझसे ही रोशन हैं
जो कुछ है सब तेरा है, मेरा कमाया कुछ भी नहीं

- अमित अरुण साहू , वर्धा