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Saturday, January 14, 2012

मकानों के थे, या ज़मानो के थे

मकानों के थे, या ज़मानो के थे
अजब फासले दरमियानों के थे

सफर यूं तो सब आसमानों थे
करीने मगर कैदखानों के थे

खुली आँख तो सामने कुछ न था
वो मंज़र तो सारे उड़ानों के थे

पकड़ना उन्हें कुछ ज़रूरी न था
परिंदे सभी आशियानो के थे

मुसाफिर की नज़रें बलंदी पे थीं
मगर रास्ते सब ढलानों के थे

उन्हें लूटने तुम कहाँ चल दिए
वो किरदार तो दास्तानो के थे

--शीन काफ नाजमी