Monday, June 25, 2012

मगर वो शख्स ऐसा है के फिर भी याद आता है

हज़ारों काम है मुझे मसरूफ रखते हैं
मगर वो शख्स ऐसा है के फिर भी याद आता है

--अज्ञात

किसी को छोड़ना हो तो मुलाकातें बड़ी करना

दियो का कद घटाने के लिए रातें बड़ी करना ,
बड़े शेहरो में रहना हो तो बातें बड़ी करना
मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सबको नहीं आता ,
किसी को छोड़ना हो तो फिर मुलाकातें बड़ी करना

--वसीम बरेलवी

प्यास दरिया की निगाहों से छिपा रखी है

प्यास दरिया की निगाहों से छिपा रखी है
इक बादल से बड़ी आस लगा रखी है

तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊं
इन चिरागों ने मेरी नींद उड़ा रखी है

तेरी बातों को छिपाना नहीं आता मुझको
तूने खुश्बू मेरे लहज़े में बसा रखी है

खुद को तन्हा ना समझो ए नये दीवानो
खाक हमने भी कई सहराओं की उड़ा रखी है

--इकबाल अशार

कोशिश है ये अफसाना किसी अंजाम तक पहुंचे

देखना है ये नफरत और किस मकाम तक पहुंचे
गोधरा से चले थे हम अक्षरधाम तक पहुंचे

तुझको भूल जाऊ या तुझे अपना लूं मैं
कोशिश है ये अफसाना किसी अंजाम तक पहुंचे

--सतलज राहत

Sunday, June 17, 2012

कहने को हम एक हैं, मगर दुःख अपना अपना

तुझसे छुप छुप के रोये तो ये बात खुली
कहने को हम एक हैं, मगर दुःख अपना अपना

--अज्ञात

Saturday, June 16, 2012

कोई करे तो करे याद कहाँ तक

कोई करे तो करे याद कहाँ तक
आखिर सितम की हो फ़रियाद कहाँ तक

उम्र-ए-आरज़ू बहुत छोटी है मियाँ
करोगे इन बस्तियों को आबाद कहाँ तक

समंदर से गहरी थी हादसे की नीव
हम मकान की रखते बुनियाद कहाँ तक

वक्त की बंदिशें कुछ दुनिया के दायरे
कर सकोगे दिल को आज़ाद कहाँ तक

एक रोज तो दिल को भी भरना ही था
बेमजा ज़िंदगी देती हमको स्वाद कहाँ तक

अब मंजिलों की तलब नहीं है अनुज
देखना है चल सकेंगे उसके बाद कहाँ तक

--अनुज गुरुवंशी

Thursday, June 14, 2012

हो तालुक तो रूह से हो

हो ताल्लुक तो रूह से हो,
दिल तो अक्सर भर भी सकता है

--जावेद अख्तर

मुस्कराहट जवाब में रखना

मुस्कराहट जवाब में रखना
आंसुओं को नकाब में रखना

ज़िंदगी सिर्फ एक तेरी खातिर
रूह कब तक अज़ाब में रखना

मैंने ये तय नहीं किया अब तक
ज़िंदगी किस हिसाब में रखना

ठोकरें ज़ुल्मते सितम आंसू
सारी बातें हिसाब में रखना

मैंने अहमद फ़राज़ से सीखा
फूल ले कर किताब में रखना

जाम दुःख का हो चाहे सुख का हो
गर्क मुझको शराब में रखना

तुमको पहचानता नहीं कोई
फिर भी चेहरा नकाब में रखना

--अज्ञात

Tuesday, June 12, 2012

दुनिया को बता देते की मोहब्बत क्या है

पहले तमन्ना तहसीन पाने की थी
सबसे अलग भीड़ में नज़र आने की थी
[तहसीन=praise/applause]

नए इन्कलाबों के नए कायदे थे
होड़ लगी उंगलियां उठाने की थी
[इन्कलाबी=revolutionary]

रौशनी का सबब तो बनना था हर किसी को
पर किसकी औकात सूरज सा जल पाने की थी
[सबब=cause/source]

यहाँ से तालीम पाने के बाद औरों की तरह
उसकी तमन्ना भी मुल्क छोड़ जाने की थी

जब हम अलग हैं तो औरों से मुकाबला क्यूं
शर्त खुद ही से आगे निकल जाने की थी

'मिश्रा' दुनिया को बता देते की मोहब्बत क्या है
गर तोड़ पाते जो बंदिश ज़माने की थी

--अभिषेक मिश्रा

Saturday, June 9, 2012

हम से भुलाया ही नहीं जाता एक मुखलिस का प्यार

हम से भुलाया ही नहीं जाता एक मुखलिस का प्यार
लोग जिगर वाले हैं जो रोज नया महबूब बना लेते हैं
--अज्ञात

http://www.freesms4.com/2010/07/27/log-jigar-walay-hain-jo/

मेरे टूटे हुए दिल में वो बसा है अब भी

मेरे टूटे हुए दिल में वो बसा है अब भी
लौट आओ के मेरे दिल में जगह है अब भी

उसको अपनी जफ़ाओ से शिकायत हो न हो
हमें तो अपनी वफाओं से गिला है अब भी
--अज्ञात

http://www.freesms4.com/2010/09/16/mere-toote-hue-dil-me-wo-basa-he-ab-bhi/

हमने पाया था जिसे बरसो में इबादत कर के

कभी जज्बों कभी ख़्वाबों की तिजारत कर के
दिल ने दुःख दर्द कमाए हैं मोहब्बत कर के

तुम जब आओगे तो महफूज़ मिलेंगे तुमको
हमने दफनाए हैं कुछ ख़्वाब अमानत कर के

इक ज़रा सी भूल हुई और उसे खो बैठे
हमने पाया था जिसे बरसो में इबादत कर के

--अज्ञात

Source : http://www.freesms4.com/2010/09/20/paya-tha-jisay-barson-me-ibadat-kar-k/

रोज खाता हूँ उसको याद न करने की क़सम

रेज़ा-ए-कांच की सूरत मैं बिखर जाता हूँ
मैं उसकी याद में जब हद से गुज़र जाता हूँ

अब गुरेज़ाँ है वो मिलने से जो कहता था कभी
तुमसे मिलते ही मैं कुछ और निखर जाता हूँ

रोज खाता हूँ उसको याद न करने की क़सम
रोज वादों से अपने ही मुकर जाता हूँ

मुझको तमाशा बना दिया है मोहब्बत ने उसकी
लोग कसते हैं ताने मैं जिधर जाता हूँ

हर मोड़ पे खाया है मोहब्बत में धोखा अर्श
अब कोई प्यार से पुकारे तो डर जाता हूँ

--अर्श

Source : http://www.freesms4.com/2010/09/25/main-us-ki-yad-mai-jb-had-se-guzar-jata-hun/

वो मिन्नतों से कहें चुप रहो खुदा के लिए

बड़ा मज़ा हो के महशर में हम करें शिकवा
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो खुदा के लिए
[mahshar=The last day]

--अज्ञात

मेरे लिए वो कबीले को छोड़ कर आता

हजूम में था वो खुल कर न रो सका होगा
मगर यकीन है के सब भर न सो सका होगा

वो शक्स जिस को समझने में मुझको उम्र लगी
बिछड के मुझसे किसी का न हो सका होगा

लरजते हाथ, शिकस्त सी डोर आंसू की
वो खुश्क फूल कहाँ तक पिरो सका होगा

बहुत उजाड थे पाताल उसकी आँखों के
वो आंसूं से न दामन भिगो सका होगा

मेरे लिए वो कबीले को छोड़ कर आता
मुझे यकीन है ये उस से न हो सका होगा

--अज्ञात

Source : http://www.freesms4.com/2011/04/02/mujhe-yakeen-hai-yeh-us-se-na-ho-saka-hoga/

गलत फ़हमी में मत रहना

मोहब्बत का असर होगा, गलत फ़हमी में मत रहना
वो बदलेगा चलन अपना, गलत फ़हमी में मत रहना

तसल्ली भी उसे देना, ये मुमकिन है मैं लौट आऊं
मगर ये भी उसे कहना, गलत फ़हमी में मत रहना

तुम्हारा था, तुम्हारा हूं, तुम्हारा ही रहूंगा मैं
मेरे बारे में इस दरजा गलत फ़हमी में मत रहना

मोहब्बत का भरम टूटा है अब छुप छुप के रोते हो
तुम्हें मैंने कहा था ना गलत फ़हमी में मत रहना

बचा लेगा तुझे सेहरा की तपती धूप से तैमूर
किसी की याद का साया, गलत फ़हमी में मत रहना

तैमूर हसन

क्या ये अच्छा है के आदत ही बना ली जाए ?

पेशतर इसके के कोई बात उछाली जाए
शहर से रस्म-ए-मोहब्बत ही निकाली जाए ?

एक दो दिन की जुदाई हो तो खामोश रहूँ
क्या ये अच्छा है के आदत ही बना ली जाए ?

एक दिन अमन का गहवाराह बनाएगी दुनिया
काश दिल से मेरे ये खाम खयाली जाए
[Khaam khayaali=Apprehension, Whim]

अब तो कब्रें भी मेरी जान नहीं हैं महफूज़
ये भी मुमकिन है के मय्यत ही उठा ली जाए

माल असबाब तो क्या बचेगा फरहात
इतना काफी है के इज्ज़त ही बचा ली जाए
[Maal asbaab : Load]

--फरहात अब्बास

Friday, June 8, 2012

महफ़िल लगी थी बद्दुआओं की, हमने भी दिल से कहा

महफ़िल लगी थी बद्दुआओं की, हमने भी दिल से कहा

उसे इश्क हो !! उसे इश्क हो !! उसे इश्क हो !! किसी बेवफा से

--अज्ञात

एक आरज़ू है पूरी परवरदिगार करे

एक आरज़ू है पूरी परवरदिगार करे
मैं देर से जाऊं, वो मेरा इंतज़ार करे

--अज्ञात