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Friday, March 27, 2009

कभी फराज़ से आ कर मिलो जो वक्त मिले

कभी फराज़ से आ कर मिलो जो वक्त मिले
ये शक्स खूब है अशार के इलावा भी
--अहमद फराज़

अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़

अब उसे रोज़ न सोचूँ तो बदन टूटता है फ़राज़
इक उम्र हो गयी उसकी याद क नशा करते करते
--अहमद फराज़

Saturday, March 21, 2009

खुद को चुनते हुए दिन सारा गुज़र जाता है फ़राज़

खुद को चुनते हुए दिन सारा गुज़र जाता है फ़राज़
फ़िर हवा शाम की चलती है तो बिखर जाते हैं
--अहमद फराज़

अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था

अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था
साथ रह कर भी इख्तिलाफ रखता था

मैं क्यों न दाद दूँ उसके फन की
मेरे हर सवाल का पहले से जवाब रखता था

वो तो रौशनियों का बसी था मगर
मेरी अँधेरी नगरी का बड़ा ख्याल रखता था

मोहब्बत तो थी उसे किसी और से शायद
हमसे तो यूँ ही हसी मज़ाक रखता था

--अहमद फराज़

मोहब्बत तो वो पहली ही मोहब्बत थी फराज़

मोहब्बत तो वो पहली ही मोहब्बत थी फराज़
इसके बाद तो हर शक्स में ढूँढा उस को
--अहमद फराज़

Friday, March 20, 2009

सूखी शाखों पर तो हमने लहू छिड़का था फ़राज़

सूखी शाखों पर तो हमने लहू छिड़का था फ़राज़
कलियां अब भी न खिलती तो कयामत होती
--अहमद फराज़

मोहब्बत की परस्तिश के लिये एक रात ही काफी है फराज़

मोहब्बत की परस्तिश के लिये एक रात ही काफी है फराज़
सुबह तक जो ज़िन्दा रह जाये वो परवाना नहीं होता
--अहमद फराज़

उसका मिलना ही मुक्कद्दर में न था फ़राज़

उसका मिलना ही मुक्कद्दर में न था फ़राज़
वरना क्या कुछ नहीं खोया हमने उसे पाने के लिये
--अहमद फराज़

कुछ इसलिये भी तुम से मोहब्बत है फ़राज़

कुछ इसलिये भी तुम से मोहब्बत है फ़राज़
मेरा तो कोई नहीं है तुम्हारा तो कोई हो
--अहमद फराज़

डूबने वाला था, और साहिल पे चेहरों का हुजूम

डूबने वाला था, और साहिल पे चेहरों का हुजूम
पल की मोहलत थी, मैं किसको आंख भर के देखता
--अहमद फराज़

अजब लुत्फ आ रहा था दीदार-ए-दिल्लगी का फराज़

अजब लुत्फ आ रहा था दीदार-ए-दिल्लगी का फराज़
के नज़रें भी मुझ पर थीं और परदा भी मुझ से था
--अहमद फराज़

Thursday, March 19, 2009

मेरे जज़्बात से वाकिफ है मेरा कलाम फराज़

मेरे जज़्बात से वाकिफ है मेरा कलाम फराज़
मैं प्यार लिखूं तो नाम तेरा लिखा जाता है
--अहमद फराज़

तखलीक आसमान पे वो मेरे लिये हुआ है फराज़


तखलीक=creation
तखलीक आसमान पे वो मेरे लिये हुआ है फराज़
माना के इस ज़मीन पे वो मेरा नहीं है
--अहमद फराज़

Saturday, March 14, 2009

jab kabhii chaahe andhero me ujaale usne

जब कभी चाहे अंधेरों में उजाले उसने
कर दिया घर मेरा शोलों के हवाले उसने

उस पे खुल जाती मेरे शौक की शिद्दत सारी
देखे होते जो मेरे पांव के छाले उसने

जिसका हर ऐब ज़माने से छुपाया मैने
मेरे किस्से सर-ए-बाज़ार उछाले उसने

जब उसे मेरी मोहब्बत पर भरोसा ही ना था
क्यों दिये मेरी वफाओं के हवाले उसने

एक मेरा हाथ ही ना थामा उसने फराज़
वरना गिरते हुए तो कितने ही संभाले उसने

--अहमद फराज़

Wednesday, March 11, 2009

baad marne ke bhii usne chhoRa na

बाद मरने के भी उसने छोड़ा न दिल जलाना फ़राज़

रोज़ फ़ेंक जाती है फूल साथ वाली कब्र पर

--अहमद फराज़

bejaan to main ab bhi nahi

बेजान तो मैं अब भी नहीं फ़राज़

मगर जिसे जान कहते थे वो छोड़ गया

--अहमद फराज़

jo bhii bichhRe hain kab mile hain...

जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं फ़राज़

फ़िर भी तू इंतज़ार कर शायद

--अहमद फराज़

vo jiske paas rahta tha

वो जिसके पास रहता था दोस्तों का हुजूम

सुना है फ़राज़ कल रात एहसास-ए-तनहाई से मर गया

--अहमद फराज़

vo apne faayde kii khaatir

वो अपने फायदे की खातिर फिर आ मिले थे हम से फ़राज़

हम नादां समझे के हमारी दुआओं में असर है

--अहमद फराज़

mujhe tum rooh me basaa lo

मुझे तुम रूह में बसा लो तो अच्छा है फ़राज़

दिल-ओ-जान के रिश्ते अक्सर टूट जाया करते हैं

--अहमद फराज़