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Thursday, March 4, 2010

सब पे दीवाने की नज़र भी नहीं

सब पे दीवाने की नज़र भी नहीं
सब से दीवाना बेखबर भी नही

जीने वाले !! तो जितनी समझे हैं
ज़िंदगी उतनी मोतबर भी नही

मुन्तजिर का अजीब आलम है
अब उसे फ़िक्र-ए-मुन्तजिर भी नही

मुतमईन हो गए बहार में यू
जैसे एहसास-ए-बाल-ओ-पर भी नहीं

दास्ताँ-ए-गम-ए-हयात न पूछ
मुख़्तसर भी है, मुख़्तसर भी नहीं

मेरी दीवानगी वहाँ पहुंची
जिस जगह कोई हमसफ़र भी नही

जिस्म एक घर है रूह का 'बेकल'
देखिये उसका जैसे घर भी नहीं

--बेकल उत्साही

मोतबर=reliable;
मुन्तजिर=one who is waiting;
मुन्तज़र=one who is being waited for;
हयात=life