इस दौर के नौजवानों में ये चलन खास है
दुशवार है जिंदगी उस पर मोहब्बत की तलाश है
ये हुस्न-ओ-जमाल के खजाने नहीं मुफलिसों के लिये
हसीनाएं है परछाई उस शक़्स की दौलत जिसके पास है
तौहीन न करना कभी कह कर "कड़वा" शराब को
किसी ग़मजदा से पूछियेगा इसमें कितनी मिठास है
मौत इस निजाम में मर्ज़ क इलाज बन चुकी है
सहमे परिन्दोन को इस हक़ीक़त क एहसास है
ठोकर लगे खाली पैमाने सी जिन्दगी अपनी "कुरील"
सागर नहीं नसीब में और लबों पर प्यास है
-मनोज कुरील
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