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Sunday, June 12, 2011

मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे

मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मुझे ग़म देने वाले तू खुशी को तरसे

तू फूल बने पतझड़ का, तुझ पे बहार न आए कभी
मेरी ही तरह तू तड़पे तुझको क़रार न आए कभी
जिये तू इस तरह के ज़िंदगी को तरसे

इतना तो असर कर जाएं मेरी वफ़ाएं ओ बेवफ़ा
जब तुझे याद आएं अपनी जफ़ाएं ओ बेवफ़ा
पशेमां होके रोए, तू हंसी को तरसे

तेरे गुलशन से ज़्यादा, वीरान कोई वीराना न हो
इस दुनिया में कोई तेरा, अपना तो क्या, बेगाना न हो
किसी का प्यार क्या तू, बेरुख़ी को तरसे

--आनंद बख्शी