मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मुझे ग़म देने वाले तू खुशी को तरसे
तू फूल बने पतझड़ का, तुझ पे बहार न आए कभी
मेरी ही तरह तू तड़पे तुझको क़रार न आए कभी
जिये तू इस तरह के ज़िंदगी को तरसे
इतना तो असर कर जाएं मेरी वफ़ाएं ओ बेवफ़ा
जब तुझे याद आएं अपनी जफ़ाएं ओ बेवफ़ा
पशेमां होके रोए, तू हंसी को तरसे
तेरे गुलशन से ज़्यादा, वीरान कोई वीराना न हो
इस दुनिया में कोई तेरा, अपना तो क्या, बेगाना न हो
किसी का प्यार क्या तू, बेरुख़ी को तरसे
--आनंद बख्शी
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Sunday, June 12, 2011
मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
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