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Sunday, April 28, 2019

जिन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं

जिन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं

इतने हिस्सों मे बंट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से मे कुछ बचा ही नहीं

जिन्दगी मौत तेरी मंज़िल है
और तो कोई रास्ता ही नहीं

जिसके कारण फसाद होते हैं
उसका कोई अता पता ही नहीं

ज़िन्दगी, अब बता कहाँ जाये
बाज़ार मे ज़हर मिला ही नहीं

सच घटे या बढ़े, तो सच ना रहे
झूठ की कोई इन्तिहां ही नहीं

धन के हाथों बिके हैं सब कानून
अब किसी जुर्म की सज़ा ही नहीं

चाहे सोने के फ्रेम मे जड़ दो
आइना झूठ बोलता ही नहीं

-कृष्ण बिहारी नूर

Sunday, April 8, 2012

किसी की चाह न थी दिल में तेरी चाह के बाद

नज़र मिला न सके उससे उस निगाह के बाद
वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद
मैं कैसे और किसी सिम्त मोड़ता हूँ खुद को
किसी की चाह न थी दिल में तेरी चाह के बाद

--कृष्ण बिहारी नूर





Sunday, July 24, 2011

एक गज़ल तुझ पे कहूँ दिल का तकाजा है बहुत

एक गज़ल तुझ पे कहूँ दिल का तकाजा है बहुत
इन दिनों खुद से बिछड जाने का इरादा है बहुत

--कृष्ण बिहारी नूर

Tuesday, August 31, 2010

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
--कृष्ण बिहारी नूर