हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे.
धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे
जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे
साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे
चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे
मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे
पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
फड़फड़ा के 'पर' ख़ुशी ख़ुद को ज़रा देते रहे
--श्रद्धा जैन
2122, 2122, 21222, 212
Source : http://bheegigazal.blogspot.com/2009/10/blog-post_25.html
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