Saturday, September 26, 2009

बाज़ी-ए-इश्क़ कुछ इस तरह से हारे यारो

बाज़ी-ए-इश्क़ कुछ इस तरह से हारे यारो
ज़ख्म पर ज़ख्म लगे दिल पे हमारे यारो

कोई तो ऐसा हो जो घाव पर मरहम रखे
यूँ तो दुश्मन न बनो सारे के सारे यारो

बज़्म में सर को झुकाये हुए जो बैठे हैं
इनको मत छेड़ो ये हैं इश्क़ के मारे यारो

जिन में होते थे कभी मेहर-ओ-वफा के मोती
इन हीं आंखों में सितम के हैं शरारे यारो

दोस्त ही अपने जो करने लगे नज़र-ए-तूफान
काम नहीं आते फिर कोई सहारे यारो

संग ग़ैरों ने मारे तो कोई दुख ना हुआ
मर गये तुमने मगर फूल जो मारे यारो

वो जो रहा दिलगीर तुम्हारी खातिर
तुमने क्या क्या नहीं ताने उसे मारे यारो

--अज्ञात

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