उठ रहा कैसा दिल से धुआं देखिये
हो गया इश्क शायद जवां देखिये
आप ही आप बस आ रहे हैं नजर
शौक से अब तो चाहे जहां देखिये
बात अपनी भले ही पुरानी सही
आप बस मेरा तर्जे-बयां देखिये
रहबरों रहजनों में हुई दोस्ती
अब जो लुटने लगे कारवां देखिये
आपकी तो ये ठहरी अदा ही मगर
लुट गया अपना तो कुल जहां देखिये
शोर कैसा खुदाया !ये बस्ती में है
उठ रहा है ये कैसा धुआं?देखिये
खत्म होने को ही है ये दौरे-खिजां
अब आप रौनके-गुलिस्तां देखिये
गर ये ऐसी ही रफ्तार कायम रही
कुछ दिनों बाद हिन्दोस्तां देखिये
दुल्हने सुब्ह अब सो के उठने को है
अब जरा सूरते आसमां देखिये
जाने वाला तो कब का चला भी गया
पांव के सिर्फ बाकी निशां देखिये
गोपियां मुझसे गोकुल की हैं पूछतीं
श्याम’को अपने ढूंढे कहां देखिये
--श्याम सखा श्याम
Source : http://kavita.hindyugm.com/2009/08/blog-post_20.html
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