Wednesday, June 30, 2010

न जी भर के देखा, न कुछ बात की

न जी भर के देखा, न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

--बशीर बद्र

Sunday, June 27, 2010

वो तीर छोड़ा हुआ उसी कमान का था

वो तीर छोड़ा हुआ उसी कमान का था
अगरचे हाथ किसी और मेहरबान का था

गुज़र रहा था वो लम्हा जो दरमियान का था
मगर ये वक़्त बड़े सख्त इम्तेहान का था

पता नहीं की जुदा हो के कैसे जिंदा रहे
हमारा उसका ताल्लुक तो जिस्म-ओ-जान का था

हवा तो चलती ही रहती थी इस समंदर में
कसूर कोई अगर था तो बादवान का था

वही कहानी कभी झूठ थी, कभी सच्ची थी
ज़रा सा फर्क अगर था, तो बस बयान का था

क़दम क़दम पे नये मंज़रों की हैरत थी
तेरी गली का सफर था, कि इक जहान का था

हम अपने नाम के हिस्से को ढूँढ़ते भी कहाँ
ज़मीन के पास तो जो कुछ था, आसमान का था

कहीं ज़मीन पे सानी नहीं मिला उसका
वो शक्स जैसे किसी और आसमान का था

--मंज़ूर हाशमी

Saturday, June 12, 2010

अपना क्या है सारे शहर का, इक जैसा नुकसान हुआ

जब से उसने शहर को छोड़ा , हर रास्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का, इक जैसा नुकसान हुआ

--मोहसिन नकवी

किस तरह पाया तुझे, किस तरह खोया तुझे

किस तरह पाया तुझे, किस तरह खोया तुझे
मुझ सा मुनकिर भी कायल हो गया तकदीर का

--अहमद फ़राज़

[munkir=atheist; qaa_il honaa=to be a fan/follower]

सारे नूर की रौशनी उस चेहरे मे सिमट आई है

सारे नूर की रौशनी उस चेहरे मे सिमट आई है
देखने के बाद उसको चाँदनी भी शरमाई है

रोक दिया धड़कनो को उसने जलवानुमा होकर
क़ातिल निगाहों ने दिल पर बिजली गिराई है

इस मासूमियत पर उसका भी लगता है दिल आ गया
शरारती ये लट रुखसार चूमने को चली आई है

वक़्त भी रुक जाता है देखने को ये अंदाज़ उसका
किस नज़ाकत से वो लट गालों से हटाई है

दिल दीवाना हुआ है उसकी ऐसी ही अदाओं का
जैसे हया से, मुस्का के उसने अपनी चूड़ी घुमाई है

उसका रह रह कर मुस्कुराना खुद ही ये बताता है
जिस हुस्न के सब हैं दीवाने, वो भी किसी का तमन्नाई है

--रेहान खान

यूं इश्क़ का असर होगा सोचा ना था

यूं इश्क़ का असर होगा सोचा ना था
उसका दिल मेरा घर होगा सोचा ना था

मासूम निगाहों से उलझ बैठे क्या पता था
निशाना हम और तीर-ए-नज़र होगा सोचा ना था

इतनी मासूमियत से जान लेगा वो हमारी
इल्ज़ाम-ए-क़त्ल हम पर होगा सोचा ना था

इश्क़ की बाज़ी जीतने का जुनूं इस हद तक
की दाव पर दिल जिगर होगा सोचा ना था

जादू ऐसा चला देगा कोई दिल पर
ये सब से बेख़बर होगा सोचा ना था

नाज़ो अदा की बिजलियों के तमन्नाई थे हम भी मगर
इतना हसीन सितमगर होगा सोचा ना था

--रेहान खान

एहसास मोहब्बत का दिल में ही रखना है मुझे

एहसास मोहब्बत का दिल में ही रखना है मुझे
महबूब से मुझे मगरूरियत का खतरा है

--अर्घ्वान रब्भी

हालत थक गए हैं, कहानी के बोझ से

अफसाना ख्वाँ !! सुखन को नतीजे की सिम्त ला
हालात थक गए हैं, कहानी के बोझ से !!

--अब्दुल हमीद अदम

afsaanaa-khwaan=story-teller;
sukhan ko=baat ko
simt=taraf/nazdeek

उलटी चाल चलते हैं ये इश्क करने वाले

वो इनकार करते हैं इकरार के लिए
नफरत भी करते हैं तो प्यार के लिए
उलटी चाल चलते हैं ये इश्क करने वाले
आँखें बंद करते हैं तो दीदार के लिए

--अज्ञात

Friday, June 11, 2010

उसने तोड़ा वो तालुक जो मेरी ज़ात से था

उसने तोड़ा वो तालुक जो मेरी ज़ात से था
उसको रंज न जाने मेरी किस बात से था
ला-ताल्लुक रहा लोगों की तरह वो मुझसे
जो अच्छी तरह वाकिफ मेरे हालात से था

--अज्ञात

ज़ात=आत्मा
रंज=दुःख, गम

Thursday, June 10, 2010

हसरत भरी निगाहों को आराम तक नही

हसरत भरी निगाहों को आराम तक नही
पलटा वो ज़िंदगानी की फिर शाम तक नही

जिसकी तलब मैने ज़िंदगी अपनी गुज़ार दी
उस बेवफा के लब पे मेरा नाम तक नही

जो कह गए थे शाम को बैठेंगे आज फिर
कुछ साल हो गए, कोई पैगाम तक नही

मैं दफ़न हूँ तेरे हिजर की एक ऐसी क़ब्र मे
पत्थर पे जिस के आज कोई नाम तक नही

बे-इख्तियार उठते हैं मेरे क़दम उधर
हालांके उस गली में मुझे काम तक नही

उसने पूरे शहर मे चर्चा बहुत किया
मेरे लबों पे एक भी इल्ज़ाम तक नही

--अज्ञात

Monday, June 7, 2010

बात कम कीजे ज़हनात को छुपाते रहिये

बात कम कीजे ज़हनात को छुपाते रहिये
ये नया शहर है कुछ दोस्त बनाते रहिये
दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजिये रिश्ता
दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये

--निदा फाजली
ज़हनात=intellect

Saturday, June 5, 2010

कभी-कभी दुआओं का जवाब आता है

कभी-कभी दुआओं का जवाब आता है
और कुछ इस तरह कि बेहिसाब आता है


ढूँढते रहते हैं रात-दिन जो फुरसत के रात-दिन
हो जाते हैं पस्त जब पर्चा रंग-ए-गुलाब आता है
(पर्चा रंग-ए-गुलाब = pink slip, नौकरी खत्म का आदेश )


यूँ तो तेल निकालो तो तेल निकलता नहीं है
और अब निकला है तो ऐसे जैसे सैलाब आता है
(सैलाब = बाढ़, flood)


चश्मा बदल-बदल कर कई बार देखा
हर बार नज़रों से दूर नज़र सराब आता है
(सराब = मरीचिका, mirage)


पराए भी अपनों की तरह पेश आते हैं 'राहुल'
वक़्त कभी-कभी ऐसा भी खराब आता है

--राहुल उपाध्याय

सिएटल | 425-898-9325
4 जून 2010


Source : http://mere--words.blogspot.com/2010/06/blog-post_04.html