Sunday, October 30, 2011

दो चार नहीं मुझको फक़त एक ही दिखा दो

दो चार नहीं मुझको फक़त एक ही दिखा दो
वो शक्स जो अंदर से भी बाहर की तरह हो

--जावेद अख्तर

Tuesday, October 25, 2011

मैंने सुकून के शौक में खोली थी दिल की खिड़कियाँ

मैंने सुकून के शौक में खोली थी दिल की खिड़कियाँ
तेरी यादों का सारा शोर भीतर आ गया

--शिल्पा अग्रवाल

तेरे इस पाकीज़ा आँचल पे दाग लग जाए

कुछ साजिशों में ये मेरे दिमाग लग जाए
मेरे हाथो में जो तेरा सुहाग लग जाए

तेरी और मेरी ये दुनिया जो कहानी सुनले
तेरे इस पाकीज़ा आँचल पे दाग लग जाए

सफ़ेद बर्फ सा वो जो बदन दिखता है
मैं उसे छू लूं किसी दिन तो आग लग जाए

--सतलज रहत

Saturday, October 22, 2011

हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह

ज़िंदगी जिस को तेरा प्यार मिला वो जाने...
हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह

--जान निसार अख्तर

तुम आये हो ना शब-ए-इंतज़ार गुजरी है

तुम आये हो ना शब-ए-इंतज़ार गुजरी है
तलाश में है सेहर बार बार गुजरी है

--फैज़ अहमद फैज़

वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था

वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है


--फैज़ अहमद फैज़

ना जाने कहाँ खो गया वो ज़माना

चमन की बहारों में था आशियाना
ना जाने कहाँ खो गया वो ज़माना

तुम्हें भूलने की मैं कोशिश करूँगा
ये वादा करो के ना तुम याद आना

मुझे मेरे मिटने का ग़म है तो ये है
तुम्हें बेवफ़ा कह रहा है ज़माना

ख़ुदारा मेरी क़ब्र पे तुम ना आना
तुम्हें देख कर शक़ करेगा ज़माना

--कमर जलालवी

Thursday, October 20, 2011

ये ज़िन्दगी रोज़ एक तमन्ना बढ़ा देती है !!

कुछ जीते हैं जन्नत की तमन्ना लेकर ,
कुछ तमन्नाये जीना सिखा देती हैं !
हम किस तमन्ना के सहारे जीये,
ये ज़िन्दगी रोज़ एक तमन्ना बढ़ा देती है !!

--अज्ञात

Tuesday, October 18, 2011

मेरा दुश्मन भी मेरे भाइयों में आता है

अब इसका ज़िक्र भी सच्चाइयों में आता है
मेरा दुश्मन भी मेरे भाइयों में आता है

लब पे नाम तो बरसों तलक नहीं आता
तेरा ख़याल पर तनहाइयों में आता है

हम शिखर भी दंगाइयों का होते हैं
हमारा नाम भी दंगाइयों में आता है

कभी मैं उसको रोने से रोकता ही नहीं
मुझे सुकून ही गहराइयों में आता है

तुम्हारे साथ जो तनहाइयों में रहता है
वो मेरे पास भी तनहाइयों में आता है

मेरा मौसम सा बचपन जो खो गया थ कहीं
अभी वो सुबह की अंगडाईयों में आता है

वो अब सुनाई भी खामोशियों में देता है
वो अब दिखाई भी परछाइयों में आता है

सुना है उसकी आँखें भी भीग जाती हैं
'सतलज' याद जब तनहाइयों में आता है

--सतलज राहत

Sunday, October 16, 2011

बहुत है उनकी हालत देखने वाले

उठे उठ कर चले चल कर रुके, रुक कर कहा होगा
मैं क्यूँ जाऊं? बहुत है उनकी हालत देखने वाले

--मुज़तर खैराबादी

किस दाम में बेचोगे, कितने का नया लोगे

इस शहर-ए-तिजारत में हर चीज़ मयस्सर है
कितने का नबी लोगे, कितने का खुदा लोगे

क्या दिल की धडकनों की आवाज़ सुनाते हो
किस दाम में बेचोगे, कितने का नया लोगे
--शहीद रिज़वी

जिन मनचलों ने जान लगा दी थी दाव पर

अब वो किसी बिसात की फेहरहिस्त में नहीं
जिन मनचलों ने जान लगा दी थी दाव पर

--अहसान दानिश

अजब नहीं कि अगर याद भी ना आऊँ उसे

करूँ ना याद अगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुन_गुनाऊँ उसे

वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिन्द
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे

[ख़ार=thorn, कांटे]

ये लोग तज़करे करते हैं अपने लोगों से
मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे

[तज़करे=narration/descrption]

मगर वो ज़ूद_फ़रामोश ज़ूद रन्ज भी है
के रूठ जाये अगर याद कुछ दिलाऊं उसे

वही जो दौलत-ए-दिल है वही जो राहत-ए-जाँ
तुम्हारी बात पे ऐ नासिहो गँवाऊँ उसे

जो हम_सफ़र सर-ए-मन्ज़िल बिछड़ रहा है 'फराज़'
अजब नहीं कि अगर याद भी ना आऊँ उसे

--अहमद फ़राज़

Source : http://urdupoetry.com/faraz29.html

बात अगर बात हो गयी होती

बात अगर बात हो गयी होती
एक करामात हो गयी होती,

हम अगर अपनी जिद पे अड़ जाते
आप को मात हो गयी होती

उम्र इस आरज़ू में बीत गयी
उन से इक बात हो गयी होती

--अब्दुल हमीद अदाम

मगर ए काश हम दोनों, हमीं दोनों पे मर जाते

कईं बदनामियां होतीं, कईं इलज़ाम सर जाते
मगर ए काश हम दोनों, हमीं दोनों पे मर जाते

--यसीन शाही

Monday, October 10, 2011

के वो ख़्वाबों में भी लगती है, ख्यालों जैसी

ढूँढता फिरता हूँ यूं लोगों में सोहबत उसकी
के वो ख़्वाबों में भी लगती है, ख्यालों जैसी

--अहमद फराज़

Sunday, October 9, 2011

आज लिखते लिखते शाम न हो जाए

कोई गज़ल तेरे नाम न हो जाये
आज लिखते लिखते शाम न हो जाए

कर रहा हूँ इंतज़ार, तेरे इज़हार-ए-मोहब्बत का
इस इंतज़ार में जिंदगी तमाम न हो जाए

नहीं लेता तेरा नाम सर-ए-आम इस डर से
तेरा नाम कहीं बदनाम न हो जाये

मांगता हूँ जब भी दुआ, तू याद आती है
कही जुदाई मेरे प्यार का अंजाम न हो जाये

सोचता हूँ डरता हूँ अक्सर तन्हाई में
उसके दिल में किसी और का मक़ाम न हो जाए

--अज्ञात

खुलते हैं मुझ पे राज़ कईं इस जहां के

खुलते हैं मुझ पे राज़ कईं इस जहां के
उसकी आसीन आँखों में जब झांकता हूँ मैं

--सलमान सईद

थोड़ा सा दर्द दिल में खटकने को रह गया

गम ने तेरे निचोड़ लिया कतरा कतरा खून
थोड़ा सा दर्द दिल में खटकने को रह गया

--दाग देहेलवी

Saturday, October 8, 2011

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हम_ज़ुबाँ नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता

तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार ना हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता

--शहरयार

Source : http://www.urdupoetry.com/shahryar10.html

Friday, October 7, 2011

जिंदगी कहते थे, ना गुजरेगी ऐसे

तेरी याद में गुज़र ही गयी तनहा
जिंदगी कहते थे, ना गुजरेगी ऐसे

--आलोक मेहता

किस की कैसी, कब की बात कहता हूँ

किस की कैसी, कब की बात कहता हूँ
मैं शायर हूँ, सब की बात कहता हूँ


--आलोक मेहता

Thursday, October 6, 2011

वो जुगनू है लेकिन गुरूर करता है

सादा लफ्ज़ कहाँ इतना सुरूर करता है
ये शायर कोई नशा तो ज़रूर करता है

मैं सूरज हूँ पर नज़र झुका के चलता हूँ
वो जुगनू है लेकिन गुरूर करता है

--सतलज राहत

वादा हैं..मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...

माना वक़्त नहीं.. और.. बाकी कई काम सही...
राह भी हैं.. लम्बी.. और.. ढलती ये शाम सही...
अंजाम से पहले ..खुद को.. ना ..नकारुंगा..
वादा हैं..मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...

जीत के बनेंगी पायदान..चट्टानें मुश्किलों की ..
हिम्मतो से बदलूँगा..लकीरे इन हथेलियों की...
कि हस्ती.. अब अपनी..हर कीमत सवारूँगा
वादा हैं.. मेरा.. कि .. मैं नहीं हारूँगा...

चाहए कितनी ही स्याह.. मायूसी नजर आती हो...
हौसलों कि चांदनी चाहे.. मद्धम हुई जाती हो...
कर मजबूत खुद को.. वक़्त-ऐ-मुफलिसी गुजारूँगा...
वादा हैं .. मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...

आफताब नहीं तो क्या..ऑंखें उम्मीद से रोशन हैं..
ज़माने को नहीं.. तो क्या.. मुझे भरोसा हरदम हैं...
पाउँगा मंजिल ख्वाबो की.. चाँद जमी उतारूंगा...
वादा हैं .. मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...

हार हो या जीत..मेरी हस्ती कोई फर्क ना आ जायेगा
कि 'आलोक' हर हाल यार.. शख्स वही रह जाएगा...
इन फिजूल पैमाइशो पर अब.. खुद को ना उतारूंगा...
वादा हैं .. मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...

आलोक मेहता..

Wednesday, October 5, 2011

कुछ इस तरह मैं अपनी ज़िंदगी तमाम कर दूं

कुछ इस तरह मैं अपनी ज़िंदगी तमाम कर दूं
वक्त-ए-सफर तुमको देखूं और शाम कर दूं

ख़्वाब में भी कोई तेरे सिवा दिखाई न दे
उम्र भर के लिए आँखों को तेरा गुलाम कर दूं

तेरे पहलू की खुशबू से मेहकें मेरी सांसें
और जितनी हैं मेरी सांसें सब तेरे नाम कर दूं

--अज्ञात

Sunday, October 2, 2011

वही कारवां, वही रास्ते, वही जिंदगी, वही मरहले

वही कारवां, वही रास्ते, वही जिंदगी, वही मरहले
मगर अपने अपने मकाम पर कभी तुम नहीं, कभी हम नहीं

--शकील बदायूनी

ये किस मक़ाम पे सूझी तुझे बिछड़ने की

ये किस मक़ाम पे सूझी तुझे बिछड़ने की
अभी तो जा के कहीं दिन संवारने वाले थे

--अज्ञात