अश्क आँखों में तो होंटों में फ़ुगाँ होती है
ज़िन्दगी इश्क़ में जल—जल के धुआँ होती है
[फ़ुगाँ=आह]
मय से बढ़ कर तो कोई चीज़ नहीं राहते—जाँ
कौन कहता है कि ये दुश्मने—जाँ होती है
[राहते—जाँ=सुखदायक]
चन्द लोगों को ही मिलती है मताए—ग़मे—इश्क़
सब की तक़दीर में ये बात कहाँ होती है
[मताए—ग़मे—इश्क़=इश्क़ में मिलने वाले ग़म की पूंजी]
बात चुप रह के भी कह देते हैं कहने वाले
बाज़—औक़ात ख़मोशी भी ज़बाँ होती है
[बाज़—औक़ात=कभी—कभी]
दिल की जो बात ज़बाँ पर नहीं आती ऐ ‘शौक़’
वो महब्बत में निगाहों से बयाँ होती है.
--सुरेश चन्द्र 'शौक'
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