दिल में और तो क्या रखा है
तेरा दर्द छुपा रखा है।
इतने दुखों की तेज़ हवा में
दिल का दीप जला रखा है।
इस नगरी के कुछ लोगों ने
दुख का नाम दवा रखा है।
वादा-ए-यार की बात न छेड़ो
ये धोखा भी खा रखा है।
भूल भी जाओ बीती बातें
इन बातों में क्या रखा है।
चुप चुप क्यों रहते हो ‘नासिर’
ये क्या रोग लगा रखा है
--नासिर काज़मी
दिल में और तो क्या रखा है
ReplyDeleteतेरा दर्द छुपा रखा है।
इतने दुखों की तेज़ हवा में
दिल का दीप जला रखा है।
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....