Thursday, October 22, 2009

क्या करें

दिल गया,तुम ने लिया हम क्या करें
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें

पुरे होंगे अपने अरमान किस तरह
शौक़ बेहद, वक़्त है कम, क्या करें

बक्ष दें प्यार की गुस्ताखियाँ
दिल ही क़ाबू में नहीं, हम क्या करें

एक सागर परे है अपनी ज़िंदगी
रफ़्ता रफ़्ता इस से भी कम क्या करें

कर चुके सब अपनी-अपनी हिकमतें
दम निकलता है आई मेरे हमदम क्या करें

मामला है आज हुस्न-ओ-इश्क़ का
देखिए वो क्या करें, हम क्या करें

--अज्ञात

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