Sunday, December 26, 2010

विधाता ने मुझको बनाया था जिस दिन

विधाता ने मुझको बनाया था जिस दिन
धरती पे भूंचाल आया था उस दिन
मुझे देख सूरज को गश आ गया था
मेरे रूप पर चाँद चकरा गया था
मैं तारीफ़ अपनी करूँ या खुदा की

पहली दफा हमेशा इनकार हुआ करती है

बिसात-ए-इश्क में हर दाव दिल से चला जाता है
ज़रा भी चूके कहीं, तो हार हुआ करती है

इजहार-ए-इश्क का सबक आप हम से लीजिए
पहली दफा हमेशा इनकार हुआ करती है

न हो इनकार तो होता इकरार भी नहीं
इस तरह की कशमकश कई बार हुआ करती है

अगर न बने बात तो बढ़कर हाथ ही थाम लो
जंग-ए-इश्क आर या पार हुआ करती है

गर न माने दिल ज़लालत से गिरने को
तो लिख कर बयाँ कर दो, फिर कलम ही आखिरी हथियार हुआ करती है :)

एक था और एक थी,

एक था और एक थी,
था ने थी से मोहब्बत की
अफसाना हो गया
दुश्मन सारा ज़माना हो गया
गली गली उन दो नामो के चर्चे
और दीवार दीवार पर उन्ही दो नामो के पर्चे
थी बेचारी क्या करे
जिए के मरे
कह न सकी, रह न सकी

Saturday, December 25, 2010

कोई शाम फिर, घर भी जाना था लेकिन ...

कोई शाम फिर, घर भी जाना था लेकिन ...
ये आवारगी तो, बहाना था लेकिन ...

महब्बत में माना, कि गम तो बहुत थे ...
महब्बत में कैसा.. ज़माना था लेकिन ...

उसे सब्र कि.. इंतिहा देखनी थी ...
मुझे ज़ुल्म को.. आज़्माना था लेकिन ...

मैं खामोश फिर, महफिलों में हुआ था ...
मेरा दर्द फिर, शायराना था लेकिन ...

मेरे बारिशों से, न थे राब्ते पर ...
शबो-रोज़ का.. आना जाना था लेकिन ...

[राब्ते=relations]

पुरानी दवा तो ज़हर की तरह है ...
मेरा मर्ज़ भी तो पुराना था लेकिन ...

दुआ, चंद सिक्के, दो रोटी से खुश थे ...
फकीरों को हासिल खज़ाना था लेकिन ...

मुक़द्दर कि चालों से वाकिफ था हर दम ...
मुक़द्दर को "शाहिक", हराना था लेकिन ...

--शाहिक अहमद
Shahiq Ahmed on Facebook

Wednesday, December 22, 2010

अनमोल शब्द

अनमोल शब्द

1) रिश्तों की असल खूबसूरती एक दूसरे की बात बर्दाश करने में है
२) बे-ऐब इंसान को तलाश मत करो वरना अकेले रह जाओगे
३) जब किसी काम का इरादा करो तो उसका अंजाम सोच लो, अगर अंजाम अच्छा हो तो कर लो, और अगर अंजाम बुरा हो तो उस से रुक जाओ
४) किसी से नाराजगी का वक़्त इतना तवील न रखो के वो तुम्हारे बगैर ही जीना सीख जाए
५) गुनाह में लज़्ज़त होती है, सुकून नहीं
६) बात अलफ़ाज़ की नहीं लहजे की होती है, किसी के बारे में बुरा मत सोचो, हो सकता है वो खुदा की नज़र में तुम से बेहतर हो
७) कोई गुनाह लज़्ज़त के लिए मत करना, क्योंके लज़्ज़त खत्म हो जायेगी और गुनाह बाक़ी रहेगा, और कोई नेखी तकलीफ की वजेह से मत छोडो, क्यों के तकलीफ खत्म हो जायेगी और नेकी बाकी रहेगी.

हश्र औरों का समझ कर जो संभल जाते हैं

हश्र औरों का समझ कर जो संभल जाते हैं
वो ही तूफ़ानों से बचते हैं, निकल जाते हैं

मैं जो हँसती हूँ तो ये सोचने लगते हैं सभी
ख़्वाब किस-किस के हक़ीक़त में बदल जाते हैं

आदत अब हो गई तन्हाई में जीने की मुझे
उनके आने की ख़बर से भी दहल जाते हैं

हमको ज़ख़्मों की नुमाइश का कोई शौक नहीं
मेरी ग़ज़लों में मगर आप ही ढल जाते हैं

--श्रद्धा जैन

किसी से प्यार अगर हो तो बेपनाह न हो

मोहब्बतों में अगर कोई रस्म-ओ-राह न हो 
सुकूं तबाह न हो, ज़िन्दगी गुनाह न हो 

कुछ ऐतबार भी लाजिम है दिल्लगी के लिए 
किसी से प्यार अगर हो तो बेपनाह न हो 

इस एहतियात से मैं तेरे साथ चलता हूँ 
तेरी निगाह से आगे मेरी निगाह न हो 

मेरा वजूद है सच्चाइयों का आइना 
ये और बात के मेरा कोई गवाह न हो 

--अज्ञात 

Sunday, December 12, 2010

मुझ से मिल कर उसका उदास होना, मुझे अच्छा नहीं लगता

वो मुझसे दूर रह कर खुश है, तो उसे खुश रहने दो
मुझ से मिल कर उसका उदास होना, मुझे अच्छा नहीं लगता
--अज्ञात

होती है बड़ी ज़ालिम एक तरफ़ा मोहब्बत

होती है बड़ी ज़ालिम एक तरफ़ा मोहब्बत
वो याद तो आते हैं मगर याद नहीं करते ...

--अज्ञात

हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं

हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं,
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नही

--जिगर मोरादाबादी

कितनी उल्फत है हमें तुझसे

भूल जाना भी क्या ज़रूरी है
याद आना भी क्या ज़रूरी है ?

तू जो कहता है, सच ही कहता है
कसमें खाना भी क्या ज़रूरी है ?

रूठ जाना तुम्हारी आदत है
फिर बहाना बनाना भी क्या ज़रूरी है ?

तेरी महफ़िल में घायल बैठे हैं
मेरा आना भी क्या ज़रूरी है ?

सब ही कहते हैं इश्क है आतिश
आजमाना भी क्या ज़रूरी है ?

कितनी उल्फत है हमें तुझसे
ये बताना भी क्या ज़रूरी है ?

--अज्ञात

Saturday, December 11, 2010

मौत तो मुफ्त में ही बदनाम है

मौत तो मुफ्त में ही बदनाम है,
जान तो कमबख्त जिंदगी लेती है

--अज्ञात 
 From the movie : Jaan

Friday, December 10, 2010

खबर होती अगर मुझको नहीं है तू मुकद्दर में

कहाँ मुमकिन था मैं दिल से तेरी यादें मिटा देता
भला कैसे मैं जीता फिर अगर तुझको भुला देता

तेरी रुसवाई के डर से लबों को सी लिया वरना,
तेरे शहर-ए-मुनाफिक की मैं बुनियादें हिला देता

किया तर्क-ए-वफ़ा उसने तो होगी उसकी मजबूरी,
जिसने बरसों दुआ दी थी, उसे क्या बद्दुआ देता

खबर होती अगर मुझको नहीं है तू मुकद्दर में,
उसी लम्हें में हाथों की लकीरों को मिटा देता

--अज्ञात

उफ़ तक न कहा दिल ने इश्क में हारने के बाद

उफ़ तक न कहा दिल ने इश्क में हारने के बाद
आँखें तो बे-वफ़ा हैं, यूं ही रो दिया करती हैं
--अज्ञात

Wednesday, December 8, 2010

ये तो सोचो सवाल कैसा है

ये तो सोचो सवाल कैसा है
देश क़ा आज हाल कैसा है

जिससे मज़हब निकल नहीं पाते
साजिशों क़ा वो जाल कैसा है

आए दिन हादसे ही होते हैं
सोचता हूँ ये साल कैसा है

आपने आग को हवा दी थी
जल गए तो मलाल कैसा है

जान लेता है बेगुनाहों की
आपका ये कमाल कैसा है

दुश्मनी से `तुषार` क्या हासिल
दोस्ती क़ा ख़याल कैसा है

--नित्यानंद तुषार

Source : http://ntushar.blogspot.com/2010/12/blog-post.html

Tuesday, December 7, 2010

हर एक से कहते हैं क्या "दाग" बेवफ़ा निकला

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
ना था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था

वो क़त्ल कर के हर किसी से पूछते हैं
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था

वफ़ा करेंगे निभायेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

रहा ना दिल में वो बे-दर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था

ना पूछ-पाछ थी किसी की ना आव-भगत
तुम्हारी बज़्म में कल एहतमाम किस का था

हमारे ख़त के तो पुर्ज़े किये पढ़ा भी नहीं
सुन जो तुम ने बा-दिल वो पयाम किस का था

इंहीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर
जो लुत्फ़ आप ही करते तो नाम किस का था

गुज़र गया वो ज़माना कहें तो किस से कहें
ख़याल मेरे दिल को सुबह-ओ-शाम किस का था

हर एक से कहते हैं क्या "दाग" बेवफ़ा निकला
ये पूछे इन से कोई वो ग़ुलाम किस का था

--दाग देहलवी

Source : http://www.urdupoetry.com/daag01.html

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
याद आता है हमें हाय! ज़माना दिल का

तुम भी मुँह चूम लो बेसाख़ता प्यार आ जाए
मैं सुनाऊँ जो कभी दिल से फ़साना दिल का

पूरी मेंहदी भी लगानी नहीं आती अब तक
क्योंकर आया तुझे, ग़ैरों से लगाना दिल का

इन हसीनों का लड़कपन ही रहे, या अल्लाह
होश आता है, तो आता है सताना दिल का

निगाह-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऐसी
न ठिकाना है जिगर का, न ठिकाना दिल का

--दाग़ देहलवी

Similar post by Parveen Shakir : http://yogi-collection.blogspot.in/2013/01/blog-post_7.html

आदमी आदमी से मिलता है

आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है

भूल जाता हूँ मैं सितम उस के
वो कुछ इस सादगी से मिलता है

आज क्या बात है के फूलों का
रन्ग तेरी हँसी से मिलता है

मिल के भी जो कभी नहीं मिलता
टूट कर दिल उसी से मिलता है

कार-ओ-बार-ए-जहाँ सँवरते हैं
होश जब बेख़ुदी से मिलता है

--जिगर मोरादाबदी

Source : http://www.urdupoetry.com/jigar37.html

Sunday, November 28, 2010

खता मैंने कोई भारी नहीं की

खता मैंने कोई भारी नहीं की
अमीर-ए-शहर से यारी नहीं की
(अमीर-ए-शहर=powerful people of the city)

किसी मनसब किसी ओहदे की खातिर
कोई तदबीर बाजारी नहीं की
(मनसब : exalted position, ओहदे : position of influence, तदबीर : efforts)

बस इतनी बात पर दुनिया खफा है
के मैंने तुझ से गद्दारी नहीं की

मिरी बातों में क्या तासीर होती
कभी मैंने अदाकारी नहीं की
तासीर=effect

मिरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने
किसी ने मेरी गम-ख्वारी नहीं की

--ताबिश मेहंदी

Source : http://aligarians.com/2007/08/khataa-maine-koii-bhaarii-nahiin-kii/

गुलशन की फक़त फूलों से नहीं, काँटों से भी ज़ीनत होती है

गुलशन की फक़त फूलों से नहीं, काँटों से भी ज़ीनत होती है
जीने के लिए इस दुनिया में, गम की भी ज़रूरत होती है

ए वाइज़-ए-नादाँ करता है तू एक क़यामत का चर्चा
यहां रोज़ निगाहें मिलती हैं, यहां रोज़ क़यामत होती है

वो पुरसिश-ए-गम को आये हैं, कुछ कह ना सकूं, चुप रह ना सकूं
खामोश रहूँ तो मुश्किल है, कह दूं तो शिकायत होती है
[पुरसिश : Inquiry, To Show Concern (About)]

करना ही पडेगा ज़प्त-ए-आलम पीने ही पड़ेंगे ये आंसू
फरयाद-ओ-फुगाँ से ए नादाँ, तौहीन-ए-मुहब्बत होती है
[फुगाँ=Clamor, Cry Of Distress, Cry Of Pain, Lamentation, Wail]

जो आके रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है
जो अश्क ना छलके आंखों से, उस अश्क की कीमत होती है

गुलशन की फकत फूलों से नहीं, कांटो से भी ज़ीनत होती है,
जीने के लिये इस दुनिया में, गम की भी ज़रूरत होती है !

--सबा अफ़गानी

Saturday, November 27, 2010

नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये
नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

--कैफी आज़मी

Source : http://www.urdupoetry.com/kaifi07.html

Sunday, November 21, 2010

तुम्हारे वास्ते क्या सोचते हैं

मुकद्दर आजमाना चाहते हैं
तुम्हें अपना बनाना चाहते हैं

तुम्हारे वास्ते क्या सोचते हैं
निगाहों से बताना चाहते हैं

गलत क्या है, जो हम दिल मांग बैठे
परिंदे भी ठिकाना चाहते हैं

परिस्थितियां ही अक्सर रोकती हैं
मुहब्बत सब निभाना चाहते हैं

बहुत दिन से हैं इन आँखों में आंसू
तुषार अब मुस्कुराना चाहते हैं

--नित्यानंद तुषार
http://ntushar.blogspot.com/

Saturday, November 20, 2010

तेरी दुनिया से होके मजबूर चला ...फ़िल्म : पवित्र पापी

तेरी दुनिया से हो के मजबूर चला
मैं बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर चला
तेरी दुनिया से ...

इस क़दर दूर हूँ मैं लौट के भी आ न सकूँ
ऐसी मंज़िल कि जहाँ खुद को भी मैं पा न सकूँ
और मजबूरी है क्या, इतना भी बतला न सकूँ
तेरी दुनिया से ...

आँख भर आयी अगर, अश्क़ों को मैं पी लूँगा
आह निकली जो कभी, होंठों को मैं सी लूँगा
तुझसे वादा है किया, इस लिये मैं जी लूँगा
तेरी दुनिया से ...

खुश रहे तू है जहां ले जा दुआएं मेरी
तेरी राहों से जुदा हो गयी राहें मेरी
कुछ नहीं साथ मेरे, बस हैं खताएं मेरी
तेरी दुनिया से ..

Thursday, November 18, 2010

मैं पट्रीयों की तरहा ज़मी पर पड़ा रहा

मैं पट्रीयों की तरहा ज़मी पर पड़ा रहा
सीने से गम गुज़रते रहे रेल की तरह

--मुनव्वर राणा

Monday, November 15, 2010

सच कहे सुनके जिसको सारा जहाँ

सच कहे सुनके जिसको सारा जहाँ
झूठ बोले तो इस हुनर से कोई -
--शहरयार

Tuesday, November 9, 2010

यूँ हुआ है कुछ मौसम का असर देखिए

Pune becomes very beautiful during rains.
It has been raining since last 3-4 days
and my city is looking like paradise on earth.
I dedicate this poem to my Pune.

यूँ हुआ है कुछ मौसम का असर देखिए
खिलखिलाता है हर सूखा हुआ शज़र देखिए
हर शय शर्माई हुई सी सिमटी हुई सी कुछ
जहाँ तक भी जाती है नज़र देखिए
मरमरी सर्दी की गुलाबी सुबह के थरथराते होंठ
बजने लगी है आशिको की ग़ज़र देखिए
कुछ साँवले से हुए है दिन आजकल
शाम सी लगती है दोपहर देखिए
कंबल के अंदर अंगड़ाई लेती अलसाई नींद
कितनी चैन से हुई हैं रातें बसर देखिए
खुदा की इस कायनात से क्यूँ ना हो जाए इश्क़ भला
किसी माशूक की सूरत सा लगता मेरा शहर देखिए

--मनीषा पाण्डेय

बुलंदी देर तक किस शक्स के हिस्से मे रहती है

बुलंदी देर तक किस शक्स के हिस्से मे रहती है,
बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी ख़तरे मे रहती है

बहुत जी चाहता है क़ैद ए जान से हम निकल जायें,
तुम्हारी याद भी लेकिन इसे मलबे मे रहती है

यह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नही सकता,
मैं जब तक घर ना लौटूं मेरी माँ सजदे मे रहती है

अमीरी रेशम-ओ-कमख्वाब मे नंगी नज़र आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे मे रहती है

मैं इंसान हूँ बहक जाना मेरी फ़ितरत मे शामिल है,
हवा भी उसको छूकर देर तक नशे मे रहती है

मोहब्बत मे परखने जाँचने से फ़ायदा क्या है,
कमी थोड़ी बहुत हर एक के शज्जर मे रहती है

ये अपने आप को तक्सीम कर लेता है सूबों मे ,
खराबी बस यही हर मुल्क के नक्शे मे रहती है

--मुनव्वर राणा

Friday, October 29, 2010

कहाँ हम कहाँ ये इनायत तुम्हारी

मिली हर कदम पर रफाकत तुम्हारी
कहाँ हम कहाँ ये इनायत तुम्हारी

हमें चाहिए तो बस तालुक तुम्हारा
मोहब्बत मिले या अदावत तुम्हारी

किसी से भी मिलना उसे जीत लेना
बड़ी दिल नशीं है ये आदत तुम्हारी

हम है जिंदगी के किन रास्तों पर
हमेशा रहेगी ज़रूरत तुम्हारी

--अज्ञात

Monday, October 25, 2010

रात बिस्तर पे अब चुपचाप जगी रहती है

रात बिस्तर पे अब चुपचाप जगी रहती है,
खुश है चेहरे से पर दिल से बुझी रहती है.

सुर्ख़ आँखों की वजह ना मानियेगा पैमाने,
जागता मैं भी हूँ ये यादों से सजी रहती है.

सर्द आहों में खुदा उफ़ होता है हुनर कैसा,
नव्ज़ जम जाती है औ सांस जली रहती है.

मैं चिराग ढूंढने निकला हूँ, अँधेरे का मारा,
आज-कल उनकी गली, तारों भरी रहती है.

न हुस्न चाहिए, चाहत थी, महज़ दिल की,
इश्क की नज़र ये भला कहाँ भली रहती है.

देखकर चेहरा मेरा, न पालिये ग़लतफ़हमी,
कितना घुटता हूँ जब चेहरे पे हँसी रहती है.

यूँ तो हर दर पे है खुदा जारी तिजारत तेरी,
दुआ से फिर भी आदि' आस लगी रहती है.


--आदित्य उपाध्याय

Sunday, October 24, 2010

नादान है वो कितना कुछ समझता ही नही है फ़राज

नादान है वो कितना कुछ समझता ही नही है फ़राज

सीने से लगा के पूछता है कि धडकन तेज क्यो है ?

--अहमद फराज़

Saturday, October 23, 2010

कभी चाहत भरे दिन रात अच्छे नहीं लगते

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एक छोटा सा दिल क्या दुखा हर बात कह गए

मुझे पता न था कि आप तराने छोड़ दिए
एक छोटी सी बात पर ये अफ़साने छोड़ दिए
एक छोटा सा दिल क्या दुखा हर बात कह गए
अरे यहाँ कितनो ने रिश्तों के घराने छोड़ दिए
--अज्ञात

बिछड़ना उसकी ख्वाहिश थी न मेरी आरजू लेकिन

बिछड़ना उसकी ख्वाहिश थी न मेरी आरजू लेकिन
जरा सी हिचक ने...ये कारनामा कराया है
 --अज्ञात

मुझसे होती नहीं तेरी बात सबके सामने.

क्या करूँ ज़िक्र-ऐ-ज़ज्बात सबके सामने,
मुझसे होती नहीं तेरी बात सबके सामने.

ये तनहाई मुझे मेरी याद दिला देती है,
होती नहीं खुद से मुलाक़ात सबके सामने....

--अज्ञात 

Friday, October 22, 2010

बात वो कब की भुला दी हमने

अब के यूं दिल को सज़ा दी हमने
उसकी हर बात भुला दी हमने

एक एक फूल बहुत याद आया
शाख-ए-गुल जब वो जला दी हमने

आज तक जिस पे वो शर्माते हैं
बात वो कब की भुला दी हमने

शहर-ए-जहां राख से आबाद हुआ
आअज जब दिल की बुझा दी हमने

आज फिर याद बहुत आया वो
आज फिर उसको दुआ दी हमने

कोई तो बात है उस में
हर ख़ुशी जिस पे लुटा दी हमने

--फैज़ अहमद फैज़

Thursday, October 21, 2010

क्या करते

किसी को अपना करीबी शुमार क्या करते
वो झूठ बोलते थे, ऐतबार क्या करते

पलट के लौटने में पीठ पर लगा चाकू
वो गिर गया था, तो फिर उस पे वार क्या करते

गुजारनी ही पड़ी सांसें पतझड़ों के बीच
जो तू ही नहीं था, तो जान-ए-बहार क्या करते

दिए जलाना मोहब्बत के, अपना मज़हब है
हम जैसे लोग अँधेरे शुमार क्या करते

ख़याल ही नहीं आया, है ज़ख्म ज़ख्म बदन
जो चाहते थे तुझे, खुद से प्यार क्या करते

मिजाज़ अपना है, तूफ़ान को जीतना लड़ कर
उतर गया था, वो दरिया तो क्या करते

कुछ एक दिन में गज़ल से लड़ा ली आँखें
तमाम उम्र तेरा इंतज़ार क्या करते

--तुफैल चतुर्वेदी

Sunday, October 17, 2010

यूं बड़ी देर से पैमाना लिए बैठा हूँ

यूं बड़ी देर से पैमाना लिए बैठा हूँ
कोई देखे तो ये समझे के पिए बैठा हूँ
जिंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले
मैं अभी तक तेरी तस्वीर लिए बैठा हूँ

--अल्ताफ राजा

Album : tum to thehre pardesi
Audio : http://smashits.com/tum-to-thehre-pardesi-altaaf-raja/songs-827.html#

उसके अपने उसूल भी होंगे

फूल के साथ साथ गुलशन में
सोचता हूँ बबूल भी होंगे
क्या हुआ उसने बेवफाई की
उसके अपने उसूल भी होंगे

--अल्ताफ राजा

Album : तुम तो ठहरे परदेसी
Audio : http://smashits.com/tum-to-thehre-pardesi-altaaf-raja/songs-827.html#

तेरा चेहरा और गुलाब हुआ

जब हिज्र के शहर में धूप उतरी
मैं जाग पड़ा तो ख़्वाब हुआ
मेरी सोच खिज़ां की शाख बनी
तेरा चेहरा और गुलाब हुआ

बर्फीली रुत की तेज हवा
क्यूँ झील में कंकड़ फेंक गयी
एक आँख की नींद हराम हुई
एक चाँद का अक्स खराब हुआ

भरे शहर में एक ही चेहरा था
जिसे आज भी गलियां ढूँढती हैं
किसी सुबह उस की धूप हुई
किसी शाम वोही माहताब हुआ

तेरे हिज्र में ज़ेहन पिघलता है
तेरे कुरब में आँखें जलती हैं
तेरा खोना एक क़यामत था,
तेरा मिलना और अज़ाब हुआ

बड़ी उम्र के बाद इन आँखों में
एक अब्र उतरा तेरी यादों का
मेरे दिल की ज़मीन आबाद हुई,
मेरे मन का नगर शादाब हुआ

कभी वस्ल में मोहसिन दिल टूटा
कभी हिज्र कि रुत ने लाज रखी
किसी जिस्म में आँखें खो बैठे
कोई चेहरा खुली किताब हुआ

--मोहसिन

Saturday, October 16, 2010

मुझे मालूम नहीं हुस्न की तारीफ फराज़

मुझे मालूम नहीं हुस्न की तारीफ फराज़
मेरे नज़दीक तो हुस्न वो है, जो तुम जैसा है

--अहमद फ़राज़

Friday, October 15, 2010

अब तू ही बता तुझे अपनी जान कैसे दूं

रोती हुई आँखों से तुझे मुस्कान कैसे दूं
अनजान हूँ खुद तुझे पहचान कैसे दूं
मेरे लिए मेरी जान तू ही है
अब तू ही बता तुझे अपनी जान कैसे दूं

--अज्ञात

क्यूँ के सारी दुनिया तो बेवफा नहीं होती

रूठना, खफा रहना, ये वफ़ा नहीं होती
चाहतों में लोगों से क्या खता नहीं होती

सब को एक जैसा क्यों तुम समझने लगते हो
क्यूँ के सारी दुनिया तो बेवफा नहीं होती

हर किसी से यारी, हर किसी से वादे
प्यार करने वालों में ये अदा नहीं होती

बेनकाब चेहरे भी एक हिजाब रखते हैं
सिर्फ सात पर्दों में तो हया नहीं होती

--अज्ञात

जिसका जी चाहे हमें तोड़ के टुकड़े कर दे

रात दिन हिज्र की वेहशत भी नहीं रखनी है
किसी से अब इतनी मोहब्बत भी नहीं रखनी है

जिसका जी चाहे हमें तोड़ के टुकड़े कर दे
इस कदर नरम तबीयत भी नहीं रखनी है

एक दो साल के रिश्तों से हमें क्या हासिल
एक दो पल कि रफाकत भी नहीं रखनी है

जिनसे बिछड़े तो सँभालने में ज़माने लग जाएँ
ऐसे लोगो से मुरव्वत भी नहीं रखनी है

क्या अजब हाल है चाहत के तलबगारों का
शौक बिकने का है और कीमत भी नहीं रखनी है

--अज्ञात


Thursday, October 14, 2010

तुम मुकद्दर का लिखा कहते हो

अब देखते हैं हम दोनों कैसे जुदा हो पायेंगे 
तुम मुकद्दर का लिखा कहते हो हम अपनी दुआ को आजमाएंगे 
--अज्ञात

Wednesday, October 13, 2010

देख कर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है
एक नज़र मेरी तरफ देख तेरा जाता क्या है

मेरी रुसवाइयों में तू भी है बराबर का शरीक
मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है

पास रहकर भी न पहचान सका तू मुझको
दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है

उम्र भर अपने गिरेबान से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है

मैं तो तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता
देख कर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है

--शज़द अहमद

गिर जायें ज़मीन पर तो संभाले नहीं जाते

गिर जायें ज़मीन पर तो संभाले नहीं जाते
बाज़ार में दुख दर्द उछाले नहीं जाते

आंखों से निकलते हो मगर ध्यान में रहना
तुम ऐसे कभी दिल से निकाले नहीं जाते

मुझसे इन आँखों की हिफाज़त नहीं होती
अब मुझसे तेरे ख़्वाब संभाले नहीं जाते

जाते नहीं हम सेहराओं में अब इश्क़-ए-गिरफ्ता
जब तक दिल-ए-मजनू की दुआ ले नहीं जाते

जंगल के ये पौधे हैं इसे छोड़ दो मोहसिन
ग़म आप जवान होते हैं पाले नहीं जाते

--मोहसिन नकवी

मौत भी कम खूबसूरत तो नहीं होगी

मौत भी कम खूबसूरत तो नहीं होगी
जो इसको देखता है जिंदगानी छोड़ जाता है

--अज्ञात

कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब

कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये
--फैज अहमद फैज

Tuesday, October 12, 2010

कई दर्दों को अब दिल में जगह में जगह मिल जायेगी

कईं दर्दों को अब दिल में जगह मिल जायेगी
वो गया कुछ जगह खाली इतनी छोड़ कर

--अज्ञात

Saturday, October 9, 2010

ਦੁਖ ਤਾ ਬਥੇਰੇ ਪਰ ਦਸਣੇ ਨੀ ਯਾਰ ਨੂੰ

ਦੁਖ ਤਾ ਬਥੇਰੇ ਪਰ ਦਸਣੇ ਨੀ ਯਾਰ ਨੂੰ
ਆਪੇ ਯਾਦ ਆਜੁ ਕਦੀ ਸੋਹਨੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ
ਜੇ ਓਹਦੇ ਕੋਲ ਸਮਾ ਨਈ ਆਏ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਬੇਹਨ ਦਾ
ਸਾਨੂ ਵੀ ਨਹੀ ਸ਼ੌਂਕ ਦੁਖ ਪਥਰਾਂ ਨੂ ਕੇਹਨ ਦਾ
ਲੱਗੀ ਰਹੇ ਰੌਨਕ ਓਹਦੇ ਸੁਖਾਂ ਦੇ ਬਾਜ਼ਾਰ ਨੂੰ
ਦੁਖ ਤਾ ਬਥੇਰੇ ਪਰ ਦਸਣੇ ਨੀ ਯਾਰ ਨੂੰ

--Unknown

माना के हर एक की जिंदगी में गम आते हैं मगर

माना के हर एक की जिंदगी में गम आते हैं मगर
जितने गम मुझे मिले उतनी मेरी उम्र न थी.

--अज्ञात

अपनों ने लगाई चोट तो थोड़ा परेशान से रहे...

हम उनकी ज़िन्दगी में सदा अंजान से रहे,
और वो हमारे दिल में कितनी शान से रहे.....

ज़ख्म गैरों के तो बेअसर थे हमारी हस्ती पर,
अपनों ने लगाई चोट तो थोड़ा परेशान से रहे.....

चालाकियां ज़माने की देखा किये सहा किये,
उम्र भर लेकिन वही सादा-दिल इंसान से रहे.....

गरजमंद थे हम किस मुंह से शिकायत करते,
उलटे खफा हमेशा अपने दिल ऐ नादान से रहे..

--हरजीत सिंह (विशेष)

किस क़दर हमसे है खफा कोई

कोई पैगाम न दुआ कोई
किस क़दर हमसे है खफा कोई
उसने रखा मेरी वफ़ा का हिसाब
इस क़दर हो न बेवफा कोई
मैंने उम्मीद को खुदा जाना
है मेरे सब्र की सजा कोई

--अज्ञात

अब सुन के तेरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ

खाली है अभी जाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ,...
ऐ गर्दिश-इ-आयाम मैं कुछ सोच रहा हूँ,...
पहले बड़ा लगाव था तेरे नाम से मुझको,...
अब सुन के तेरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ...

--अज्ञात

उसने लौटा तो दी किताब मेरी

हर बशर बुझा बुझा क्यूँ है
कारवां मोड़ पर रुका रुका क्यूँ है

लिखते लिखते ज़रूर रोया है कोई
खत का मज़मून मिटा मिटा क्यूँ है

उसने लौटा तो दी किताब मेरी
एक पन्ना मगर मुड़ा मुड़ा क्यूँ है

--अज्ञात

Sunday, October 3, 2010

अफवाह किसी ने फैलाई थी तेरे शहर में होने की

अफवाह किसी ने फैलाई थी तेरे शहर में होने की,
मैं हर एक दर पर मुकद्दर आज़माता रहा..

--अज्ञात

Tuesday, September 21, 2010

तेरी तलब में जला डाले आशियाने तक फ़राज़

तेरी तलब में जला डाले आशियाने तक
कहाँ रहूँ मैं तेरे दिल में घर बनाने तक
--अहमद फ़राज़

Sunday, September 12, 2010

तेज़ होती हुई बरसात से डर लगता है...

क़ीमती हो न हो सौग़ात से डर लगता है
मुझको ग़मख़ेज़ रवायात से डर लगता है

आईना ऎब निकाले है बराबर मुझमें
ख़ुद से मिलना है मुलाक़ात से डर लगता है

जीने-मरने का कोई ख़ौफ़ नहीं था पहले
अब ये आलम है कि हर बात से डर लगता है

डूबने से मैं बचा लेता हूँ सूरज का वुजूद
ख़ुदग़रज हूँ कि मुझे रात से डर लगता है

बूंदा-बांदी से हरज कोई नहीं, हो जाए
तेज़ होती हुई बरसात से डर लगता है...

--अज्ञात

जाने फिर क्यूँ हम उसी की आरज़ू करते रहे

उम्र भर जिस आईने की जुस्तजू करते रहे
वो मिला तो हम नज़र से गुफ़्तगू करते रहे
[जुस्तजू=Desire, Inquiry, Quest, Search]

ज़ख़्म पर वो ज़ख़्म देते ही रहे दिल को मगर
हम भी तो कुछ कम न थे हम भी रफ़ू करते रहे

बुझ गए दिल में हमारे जब उम्मीदों के चराग़
रौशनी जुगनू बहुत से चार सू करते रहे
[चार सू=चारों ओर]

वो नहीं मिल पाएगा मालूम था हमको मगर
जाने फिर क्यूँ हम उसी की आरज़ू करते रहे

आपने तहज़ीब के दामन को मैला कर दिया
आप दौलत के नशे में तू ही तू करते रहे

ख़ुशबुएँ पढ़कर नमाज़ें हो गईं रुख़्सत मगर
फूल शाख़ों पर ही शबनम से वुज़ू करते रहे

आईने क्या जानते हैं क्या बताएँगे मुझे
आईने ख़ुद नक़्ल मेरी हू-ब-हू करते रहे...

--अज्ञात

Wednesday, September 1, 2010

भीग जाती हैं जो पलके कभी तन्हाई में

भीग जाती हैं जो पलके कभी तन्हाई में 
कांप उठता हू मेरा दर्द कोई जान ना ले
यू भी डरता हूं की ऐसे में अचानक कोई
मेरी आँखो मैं तुम्हे देखके पहचान ना ले
--अज्ञात 

अज़ीज़तर थी जिसे नींद शाम-ओ-वस्ल में भी

अज़ीज़तर थी जिसे नींद शाम-ओ-वस्ल में भी
वो तेरे हिज्र में जागा है उम्र भर कैसे
--अहमद फ़राज़

Tuesday, August 31, 2010

जाने क्यों शिक़स्त का अज़ाब लिए फिरता हूँ


जाने क्यों शिक़स्त का अज़ाब लिए फिरता हूँ
मैं क्या हूँ और क्या ख्वाब लिए फिरता हूँ

उसने एक बार किया था सवाल-ए-मोहब्बत
मैं हर लम्हा वफ़ा का जवाब लिए फिरता हूँ

उसने पूछा कब से नही सोए
मैं तब से रत-जगों का हिसाब लिए फिरता हूँ

उसकी ख्वाहिश थी के मेरी आँखों में पानी देखे
मैं उस वक़्त से आंसुओं का सैलाब लिए फिरता हूँ

अफ़सोस के फिर भी वो मेरी ना हुई "फ़राज़"
मैं जिस की आरज़ुओं की किताब लिए फिरता हूँ .

--अहमद फ़राज़

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
--कृष्ण बिहारी नूर

Thursday, August 26, 2010

हर ज़ख्म नया पुराने ज़ख्मों की गिनती घटा देता है

हर ज़ख्म नया पुराने ज़ख्मों की गिनती घटा देता है
जाने मुझे कब रखना उनके सितम का हिसाब आएगा

--अज्ञात 

Wednesday, August 25, 2010

न हो उदास वो तुझसे अगर नहीं मिलता

न हो उदास वो तुझसे अगर नहीं मिलता
यहाँ किसी से कोई उम्र भर नहीं मिलता

हुआ है शहर तबाह तुझे खबर तो होगी
बहुत दिनों स मुझे अपना घर नहीं मिलता

हर इक मोड़ पर मिलते हैं सैंकड़ों चेहरे
मैं ढूँढता हूँ जिसे वो मगर नहीं मिलता

--अज्ञात 

Tuesday, August 24, 2010

कुछ मेरी ही मिट्टी में बगावत भी बहुत थी

रास्ता भी कठिन था धूप में शिद्दत भी बहुत थी
साए से मगर उसको मोहब्बत भी बहुत थी
कुछ तेरे ही मौसम जो मुझे रास न आये
कुछ मेरी ही मिट्टी में बगावत भी बहुत थी
--अज्ञात 

तो जब अब टूट के रो नहीं पाते ...तो खुल के हस लिया करते हैं

जज्बातों के बादल अब गरजते नहीं बस. बरस लिया करते हैं
बिखरती ज़िन्दगी को नए हौंसले से हम कस लिया करते हैं
अश्क बहें चुके हैं इतने कि अब पथरा सी गयी हैं आँखें मेरी
तो जब अब टूट के रो नहीं पाते तो खुल के हस लिया करते हैं

--अभिषेक मिश्रा 

मुझे माँ का आँचल दे दो, मुझे उसी में सुकूं मिलता है

किसी को हाथों के हुनर, किसी को खून में जुनूं मिलता है
मुझे माँ का आँचल दे दो, मुझे उसी में सुकूं मिलता है
--अभिषेक मिश्रा

मुझे दिल-फेक आशिक न समझना

हमेशा के लिए दर्ज हो जाये..ज़ेहन में ऐसा तो कोई नाम नहीं आता
दिल किसी न किसी पे तो आएगा इसे और कोई काम नहीं आता
सुनो मुझे दिल-फेक आशिक न समझना तुम बीमार हूँ मैं
क्या करूँ दवा कुछ देर में बदल देता हूँ गर आराम नहीं आता
--अभिषेक मिश्रा 

हिन्दू-मुस्लिम सब रावन हो जाते हैं

एक आँगन में दो आँगन हो जाते हैं
मत पूछा कर किस कारन हो जाते हैं

हुस्न की दौलत मत बाँटा कर लोगों में
ऐसे वैसे लोग महाजन हो जाते हैं

ख़ुशहाली में सब होते हैं ऊँची ज़ात
भूखे-नंगे लोग हरिजन हो जाते हैं

राम की बस्ती में जब दंगा होता है
हिन्दू-मुस्लिम सब रावन हो जाते हैं

--अज्ञात 

Monday, August 23, 2010

क्या आदमी है

मां-बाप के लिये कभी , कुछ ना करे फिर भी ।
मां-बाप की आँखों का , तारा है आदमी ।।

बेटे की जिद के आगे , धृतराष्ट्र झुक गये ।
अपने ही अजीजों से , हारा है आदमी ॥

अपनों का कत्ल करके , बादशाह बन गया ।
मक्कारी में बुलंद सितारा है आदमी ॥

इक दूसरे के खून का , प्यासा कभी कभी ।
इक दूसरे का गम में सहारा है आदमी ॥

बरबाद कभी बाढ़ में , तूफान में कभी ।
कुदरत के आगे कितना , बेचारा है आदमी ॥

गरमी कभी ठंडक कभी ,और जलजला कभी ।
बरसात का , हालात का , मारा है आदमी ॥

फरमाइशें लम्बी हैं , पूरी नहीं होतीं ।
बीबी की नजर में तो , नकारा है आदमी ॥

उनकी नजर में वोट हैं , इंसान नही हैं ।
सियासत में आदमी का , चारा है आदमी ||

--अजय कुमार

Source : http://gatharee.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

Sunday, August 22, 2010

इस शहर क लोगों से वफ़ा माँग रहा हूँ

इस शहर के लोगों से वफ़ा माँग रहा हूँ
और सोच मे डूबा हूँ के क्या माँग रहा हूँ

ये सब ने सज़ा रखा है जो अपनी जबीन पर
मैं दिल पे भी इक ऐसा निशाँ माँग रा हूँ

इस सूखे हुए खेत का जो रंग बदल दे
उस रहम की बारिश की दुआ माँग रा हूँ

पत्थर का तलबगार हूँ शीशे क नगर मे
क्या माँग रहा हूँ मैं कहाँ माँग रहा हूँ

तू बाँध के जुल्फों से मुझे दिल मे बिठा ले
मुजरिम हूँ तेरा तुझ से सज़ा माँग रहा हूँ

पहलू में तेरे सिर हो मेरा, मौत जब आए
बस इतना करम वक़्त-ए-नज़ा माँग रहा हूँ

मैं कौन हूँ, क्या हूँ, मैं यहाँ किस लिए आया
मैं खुद से खुद अपना ही पता माँग रहा हूँ

दो लफ्ज़ मेरे नाम भी लिख दे कभी "असीम"
मैं तुझ से वफाओं का सिला माँग रहा हूँ

--असीम कौमी

चल के थमती नहीं अश्कों की रवानी असीम

चल के थमती नहीं अश्कों की रवानी असीम
जब भी दोहराता ही तू अपनी कहानी असीम

अब तो ईमान ही नहीं लफ्ज़-इ-वफ़ा पे अपना
ऐसे हालात सुने तेरी जुबानी असीम 

तू ये कहता था कभी इश्क न करना यारो
हाय क्यों हम ने तेरी बात न मानी असीम

जिसका तू हो गया, ता-ज़िन्दगी उस का ही रहा
इश्क करने में नहीं ही तेरा सानी असीम

किसको इस दौर में फुर्सत ही सुनने बैठे
ले के फिर बैठ गया बात पुरानी असीम

गम-ए-दौरां ही बहुत ही हमें तडपाने को
तू न अब और बढ़ा ये परेशानी असीम

तुझसे अच्छे भी बहुत और सुखनवर हैं यहाँ
जा कहीं और दिखा शोला बयानी असीम

--असीम कौमी 

ਓਹ੍ਖੇ ਵੇਲੇ ਇਕ ਇਕ ਕਰ ਕੇ ਸਾਰੇ ਤੁਰ ਗਏ

ਓਹ੍ਖੇ ਵੇਲੇ ਇਕ ਇਕ ਕਰ ਕੇ ਸਾਰੇ ਤੁਰ ਗਏ
ਪੱਲਾ ਤੂ ਵੀ ਛੁਡਾ ਲਿਯਾ ਤਾ ਕੋਈ ਗੱਲ ਨਹੀ
ਮੈਂ ਰਹ ਗਯਾ ਦੁਨਿਯਾ ਵਿਚ ਇਕ ਮਜਾਕ ਬਣਕੇ
ਥੋੜਾ ਤੂ ਵ ਉੜਾ ਲਿਯਾ ਤਾ ਕੋਈ ਗੱਲ ਨਹੀ

ओखे वेले इक इक कर के सारे तुर गए
पल्ला तू वी छुडा लिया ता कोई गल नहीं
मैं रह गया दुनिया विच इक मज़ाक बनके
थोडा तू वी उड़ा लिया ता कोई गल नहीं

--Unknown

उसकी कुरबत तो मुक़द्दर ही मिले या न मिले फ़राज़

उसकी कुरबत तो मुक़द्दर ही मिले या न मिले फ़राज़
उसकी यादों से भी हो जाती ही तसल्ली दिल को

--अहमद फ़राज़

Saturday, August 21, 2010

न मिला दिल का कदरदान इस ज़माने में

न मिला दिल का कदरदान इस ज़माने में
ये शीशा टूट गया देखने और दिखाने में
जी में आता है एक रोज़ शम्मा से पूछूं
मज़ा किस में है, जलने में या जलाने में?
--अज्ञात

Wednesday, August 18, 2010

पानी बदलो.....ज़रा हवा बदलो

पानी बदलो.....ज़रा हवा बदलो
ज़िंदगानी की..... ये फ़िज़ा बदलो

कह रही है ये....... दूर से मंज़िल;
काफिले वालो!... रहनुमा बदलो.

तुमको..... जीना है इस जहाँ में..... अगर;
अपने जीने का...... फलसफा बदलो.

आँधियाँ...... तो.... बदलने वाली नहीं;
तुम ही....... बुझता हुआ दिया बदलो

मुस्कुराहट ........मिला के थोड़ी सी
अपने अश्कों का....... ज़ायक़ा बदलो

सारी दुनिया..... बदल गयी कितनी
तुम भी .....राजेश!... अब ज़रा बदलो...

--राजेश रेडी

Thursday, August 12, 2010

हर तरफ छा गए पैगाम-ऐ-मोहब्बत बनकर...

हर तरफ छा गए पैगाम-ऐ-मोहब्बत बनकर...
मुझसे अच्छी रही किस्मत मेरे अफ़साने की...
--जिगर मोरादाबादी

Monday, August 9, 2010

हम से कुछ लोग मोहब्बत का चलन रखते हैं

हंस के मिलते हैं भले दिल में चुभन रखते हैं
हम से कुछ लोग मोहब्बत का चलन रखते हैं

पाँव थकने का तो मुमकिन है मुदावा लेकिन
लोग पैरों में नहीं मन में थकन रखते हैं
[मुदावा=Cure]

ठीक हो जाओगे कहते हुए मुंह फेर लिया
हाय! क्या खूब वो बीमार का मन रखते हैं

दौर-ए-पस्ती है सबा! वरना तुझे बतलाते;
अपनी परवाज़ में हम कितने गगन रखते हैं
पस्ती=Lowest Point


हम तो हालात के पथराव को सह लेंगे नसीम
बात उनकी है जो शीशे का बदन रखते हैं

--मंगल नसीम

जैसे साँस लेते हुए महताब सी लड़की

जैसे साँस लेते हुए महताब सी लड़की
मेरे निगाह मे बसी है एक ख्वाब सी लड़की

मैं उससे फासला ना करता तो क्या करता
मैं हवओ सा पागल वो चराग़ सी लड़की

उसको सुना नही महसूस किया है मैने
हर सफे पे चुप है वो किताब सी लड़की

दरमिया हमारे हज़ार हिजाब हैं फिर भी
मुझे दिखाई देती है वो नक़ाब सी लड़की

मैं उसके सामने बेज़ुबान सा लगता हूँ
कई सवाल लिए है वो जवाब सी लड़की

--अज्ञात

कभी दीवार कभी दर की बात करता था

कभी दीवार कभी दर की बात करता था
वो अपने उजड़े हुए घर की बात करता था

मैं ज़िक्र जब कभी करता था आसमानों का;
वो अपने टूटे हुए पर की बात करता था

ना थी लकीर कोई उसके हाथ पर यारों
वो फिर भी अपने मुक़द्दर की बात करता था

जो एक हिरनी को जंगल में कर गया घायल
हर इक शजर उसी नश्तर की बात करता था

बस एक अश्क था मेरी उदास आँखों में
जो मुझसे सात समंदर की बात करता था

--ज्ञान प्रकाश विवेक

Saturday, July 31, 2010

दिल की ये आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले

दिल की ये आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले
लो बन गया नसीब के तुम हम से आ मिले
दिल की ये ...

देखें हमें नसीब से अब, अपने क्या मिले
अब तक तो जो भी दोस्त मिले, बेवफ़ा मिले

आँखों को इक इशारे की ज़ेहमत तो दीजिये
कदमों में दिल बिछा दूँ इजाज़त तो दीजिये
ग़म को गले लगा लूँ जो ग़म आप का मिले
दिल की ये ...

हम ने उदासियों में गुज़ारी है ज़िन्दगी
लगता है डर फ़रेब-ए-वफ़ा से कभी कभी
ऐसा न हो कि ज़ख़्म कोई फिर नया मिले
अब तक तो जो भी दोस्त मिले बेवफ़ा मिले

कल तुम जुदा हुए थे जहाँ साथ छोड़ कर
हम आज तक खड़े हैं उसी दिल के मोड़ पर
हम को इस इन्तज़ार का कुछ तो सिला मिले
दिल की ये ...

देखें हमें नसीब से अब, अपने क्या मिले
अब तक तो जो भी दोस्त मिले, बेवफ़ा मिले

* Movie: Nikaah
* Singer(s): Mahendra Kapoor, Salma Agha
* Music Director: Ravi
* Lyricist: Hasan Kamaal
* Actors/Actresses: Raj Babbar, Deepak Parashar, Salma Agha
* Year/Decade: 1982, 1980s


Source : http://chitrageet.blogspot.com/2010/05/blog-post_31.html

तुम अगर साथ देने का वादा करो

तुम अगर साथ देने का वादा करो
मैं यूँही मस्त नग़मे लुटाता रहूं
तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो
मैन तुम्हें देखकर गीत गाता रहूँ, तुम अगर...

कितने जलवे फ़िज़ाओं में बिखरे मगर
मैने अबतक किसी को पुकरा नहीं
तुमको देखा तो नज़रें ये कहने लगीं
हमको चेहरे से हटना गवारा नहीं
तुम अगर मेरी नज़रों के आगे रहो
मैन हर एक शह से नज़रें चुराता रहूँ, तुम अगर...

मैने ख़्वाबों में बरसों तराशा जिसे
तुम वही संग-ए-मरमर की तस्वीर हो
तुम न समझो तुम्हारा मुक़द्दर हूँ मैं
मैं समझता हूं तुम मेरी तक़दीर हो
तुम अगर मुझको अपना समझने लगो
मैं बहारों की महफ़िल सजाता रहूं, तुम अगर...

मैं अकेला बहुत देर चलता रहा
अब सफ़र ज़िन्दगानी का कटता नहीं
जब तलक कोई रंगीं सहारा ना हो
वक़्त क़ाफ़िर जवानी का कटता नहीं
तुम अगर हमक़दम बनके चलती रहो
मैं ज़मीं पर सितारे बिछाता रहूं

तुम अगर साथ देने का वादा करो ...

Source : http://chitrageet.blogspot.com/2008/11/blog-post_788.html
* फ़िल्म - हमराज़ (१९६७) *
* गायक - महेंद्र कपूर *
* संगीतकार - रवि *
* गीतकार - साहिर लुधियानवी *


Wednesday, July 28, 2010

आ जाए किसी दिन तू ऐसा भी नही लगता

आ जाए किसी दिन तू ऐसा भी नही लगता
लेकिन वो तेरा वादा झूठा भी नही लगता

मिलता है सुकूँ दिल को उस यार के कूचे में
हर रोज़ मगर जाना अच्छा भी नही लगता..

देखा है तुझे जब से बेचैन बहुत है दिल
कहने को कोई तुझ से रिश्ता भी नही लगता

क्या फ़ैसला करूँ उस के बारे में अब
वो गैर नही लेकिन अपना भी नही लगता

--मिर्ज़ा ग़ालिब

Tuesday, July 27, 2010

ए काश कहीं ऐसा होता

ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में
इक टूट भी जाता इश्क़ में तो, तकलीफ़ ना होती जीने में

ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में

सच कहते है लोग के पीकर, रंग नशा बन जाता है
कोई भी हो, रोग यह दिल का, दर्द दवा बन जाता है

आग लगी हो इस दिल में तो, हर्ज़ है क्या फिर पीने में

ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में
इक टूट भी जाता इश्क़ में तो, तकलीफ़ ना होती जीने में

ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में

भूल नहीं सकता यह सदमा, याद हमेशा आएगा
किसी ने ऐसा दर्द दिया तो, बरसो मुझे तड़पाएगा
भर नहीं सकते ज़ख़्म यह दिल के, कोई साल महीने में

ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में
एक टूट भी जाता इश्क़ में तो, तकलीफ़ ना होती जीने में

ए काश कहीं ऐसा होता, के दो दिल होते सीने में

--अज्ञात

Monday, July 26, 2010

पलकों पे रुकी बूँद भी रोने को बहुत है

पलकों पे रुकी बूँद भी रोने को बहुत है
एक अश्क भी दामन के भिगोने को बहुत है

ये वाक्या है, दिल में मेरे तेरी मुहब्बत
होने को बहुत कम है, ना होने को बहुत है

फिर क्या उसी तारीख़ को दोहराओगे कातिल
नेज़े पे मेरा सर ही पिरोने को बहुत है
[नेज़ा = भाला]

हर शाख पे उतरेंगे समर दुश्मनियों के
नफरत का बस इक बीज ही बोने को बहुत है
[समर = Fruit]

किस तरह से बातिन पे चढ़ी मैल उतारें
जो ज़ख्म बदन पर है, वो धोने को बहुत हैं

--मोहसिन नकवी

Source : http://forum.urduworld.com/f152/palkon-pe-ruki-boond-286058/

रूह बेचैन दिल उदास बहुत है

रूह बेचैन दिल उदास बहुत है
बुझ गई है शमा-ए-उम्मीद लेकिन आस बहुत है

ये दर्द-ए-जुदाई, ये हिजर के लम्हे
ये फिराक़ का मौसम मुझे रास बहुत है

समंदर के किनारे बैठा हूँ मगर फिर भी
सूखे हैं मेरे होंट और प्यास बहुत है

आएगा मेरी कब्र पे वो फूल चढाने
ये यकीन बहुत है, ये क़यास बहुत है

दिया जब गम तू कुछ ना सोचा उसने
उजड गये हम तो उसे अहसास बहुत है

--अज्ञात

Sunday, July 25, 2010

बड़ी लंबी कहानी है, तुम्हें लेकिन सुनानी है

बड़ी लंबी कहानी है, तुम्हें लेकिन सुनानी है
तेरा गम जानलेवा, पर तेरी यादें सुहानी हैं

ग़मों को छोड़ हम देते,सुकून को थाम ही लेते
ग़मों से क्या करें लेकिन, बड़ी यारी पुरानी है

ज़मीन को चीरना चाहे, हवा को थामना चाहे
बड़ी पागल सही लेकिन, यही यारो जवानी है

आए गम तू दूर ही रहना, समंदर आंसू का है
बहा ले जाए ना तुझको, ये लहरें भी दीवानी हैं

--अज्ञात

उसके होंटों का तबस्सुम रहे कायम या रब

उसके होंटों का तबस्सुम रहे कायम या रब
उस के जीवन में खुशियों का बसेरा कर दे

तू मेरे कुर्ब की रातों को भले खत्म न कर
उसकी हर शाम के आखिर में सवेरा कर दे

उस के दिल के किसी कोने में जगह दे मुझको
उस की आँखों को मेरे सपनों से खेरा कर दे

ये मेरे दिल की दुआ है मेरे मौला सुन ले
सारी दुनिया से छुपा कर उसे मेरा कर दे

--अज्ञात

Didn't get the meaning of red words... r they correct...
Can there be better words here..

लौट आऊंगा तुम इक बार बुला कर देखो

आईना हूँ मैं मेरे सामने आकर देखो
खुद नज़र आओगे जो आँख मिला कर देखो

मेरे गम में मेरी तक़दीर नज़र आती है
डगमगाओगे मेरा दर्द उठा कर देखो

यूँ तो आसान नज़र आता है मंज़िल का सफ़र
कितना मुश्क़िल है मेरी राह से जाकर देखो

बज़्म का मेरी चरागाँ है नज़र का धोखा
किन अंधेरों में भटकता हूँ मैं आकर देखो

दिल तुम्हारा है, मैं यह जान भी दे दूं तुम पर
बस मेरा साथ ज़रा दिल से निभा कर देखो

मौत आने को है मगर तुम से वादा है मेरा
लौट आऊंगा तुम इक बार बुला कर देखो

--अज्ञात

फिर दिल की दीवार पे तेरा चेहरा क्यो है?

वक़्त भी चल रहा है उसी रफ़्तार से
मेरे ज़िंदगी में सब कुछ ठहरा क्यो है?

गिले शिकवे रुक जाते है होंटों तक आके
हर लफ्ज़ पे खामोशी का पहरा क्यो है?

दिल कहता है मोहब्बत नही खता है ये
फिर दिल की दीवार पे तेरा चेहरा क्यो है?

और भी ज़ख़्म है तेरे ज़ख़्मो के सिवा
तेरे ही ज़ख़्म का दाग इतना गहरा क्यो है?

--अज्ञात

Saturday, July 24, 2010

मेरी किस्मत में तू नहीं शायद

मेरी किस्मत में तू नहीं शायद
मैं तेरा इंतज़ार करता हूँ
मैं तुझे कल भी प्यार करता था
मैं तुझे अब भी प्यार करता हूँ

आज समझी वो प्यार को शायद
आज मैं तुझसे प्यार करती हूँ
कल मेरा इंतज़ार था तुझको
आज मैं इंतज़ार करती हूँ

मेरी किस्मत में तू नहीं शायद

सोचता हूँ के मेरी आँखों में
क्यों सजाये थे प्यार के सपने


हर गम टपक रहा है मेरा आंसुओं में ढल कर
वो नज़र से छुप कर, मेरी जिंदगी बदल कर


सोचता हूँ के मेरी आँखों में
क्यों सजाये थे प्यार के सपने
तुझसे मांगी थी इक खुशी मैंने
तूने गम भी नहीं दिए अपने

जिंदगी बोझ बन गयी अब तो
अब तो जीता हूँ और न मरता हूँ
मैं तुझे कल भी प्यार करता था
मैं तुझे अब भी प्यार करता हूँ

मेरी किस्मत में तू नहीं शायद

अब न टूटे ये प्यार के रिश्ते


फूलों के साथ काँटों की चुभन भी देखते जाओ
हसी तो देख ली, दिल की जलन भी देखते जाओ


अब न टूटे ये प्यार के रिश्ते
अब ये रिश्ते सँभालने होंगे
मेरी राहों से तुझको कल की तरह
गम के कांटे निकालने होंगे

दिल न जाए खुशी के रस्ते में
गम की परछाईयो से डरती हूँ
कल मेरा इंतज़ार था तुझको
आज मैं इंतज़ार करती हूँ

मेरी किस्मत में तू नहीं शायद...

शायर/लेखक : अमीर कज़लबाश
फिल्म : प्रेम रोग



गम जुदाई का यूं तो बहुत था मगर

गम जुदाई का यूं तो बहुत था मगर
दूर तक हाथ फिर भी हिलाना पड़ा
बैठ कर रेलगाड़ी में वो चल दिए
रोते रोते हमें घर को आना पड़ा

गम जुदाई का यूं...

वो तो चल भी दिया, दिल मेरा तोड़ कर
मुझ पे बीती है क्या, काश लेता खबर
ये वो गम है जो होगा न कम उम्र भर
होगा पानी का क्या पत्थरों पे असर
इतना रोया हूँ मैं, याद कर के उसे
आसुओं में मुझे डूब जाना पड़ा

गम जुदाई का यूं...

जिसकी खातिर ज़माने को ठुकरा दिया
उसकी चाहत में मुझको मिला ये सिला
गैर के साथ उसका मिलन हो गया
मेरी मजबूरियों की नहीं इंतेहा
उसकी शादी में उसकी खुशी के लिए
प्यार के गीत मुझको भी गाना पड़ा

गम जुदाई का यूं तो बहुत था मगर
दूर तक हाथ फिर भी हिलाना पड़ा
बैठ कर रेलगाड़ी में वो चल दिए
रोते रोते हमें घर को आना पड़ा

--अल्ताफ राजा

Wednesday, July 21, 2010

बच जाएगी, बस जाएगी, जर्रों मे लेकिन याद कोई

माँगे तो क्या माँगे रब से, हो मन मे बची मुराद कोई,
चंदा को छूने की हसरत, पर अब ना तेरे बाद कोई..

वो बोले थे कह दो कहने से मन हल्का हो जाएगा,
जाती लहरों से उजड़े तट करते भी क्या फरियाद कोई.

हमराहों ने जब हाथ छोड़ थी खुशी-खुशी राहें बदली,
तन्हाई यूँ आकर बोली, मत डर है तेरे साथ कोई.

लोगो की नरम-मिजाजी से.. हम को तो सख़्त शिकायत है,
माना की हैं आबाद नही, इतने भी नही बर्बाद कोई

तन मिट्टी का ढलते ढलते, एक रोज धुआँ बन जाएगा,
बच जाएगी, बस जाएगी, जर्रों मे लेकिन याद कोई

--गौरव शुक्ला

E-mail : Gaurav_shukla06@infosys.com

Tuesday, July 20, 2010

ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी

तेरी बेवफाई का शिकवा करूँ तो
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी

भरी बज़्म में तुझको रुसवा करूँ तो
ये मेरी शराफत की तौहीन होगी
तेरी बेवफाई का शिकवा करू तो
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी

न महफ़िल में होंगी, न मेले में होंगी
ये आपस की बातें अकेले में होंगी
मैं लोगो से तेरी शिकायत करूँ तो
ये मेरी शिकायत की तौहीन होंगी

तेरी बेवफाई का शिकवा करू तो
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी

सुना है तेरा और भी इक बलम है
मगर गम न कर तुझको मेरी कसम है
तुझे बेशरम बेमुरव्वत कहूँ तो
ये मेरी मुरव्वत की तौहीन होगी

तेरी बेवफाई का शिकवा करू तो
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी

--शहजाद साहिब

Monday, July 12, 2010

चलो ये मान लिया के आँख मेरी नम

चलो ये मान लिया के आँख मेरी नम नहीं
गुमान न कर के मेरे दिल में कोई गम नहीं

उसी को खौफ है कि मंजिलें कठिन हैं बहुत
वफ़ा की राह पे मेरा जो हमकदम नहीं

तुम्हे गुरूर है अपनी सितामगिरी पे अगर
ए दोस्त हौंसला जीने का मुझ में भी कम नहीं

सुरूर-ए-दिल भी वही है अज़ीज़-ए-जान भी वही है
के डर-ए-जीस्त पे एक नाम जो रकम भी नहीं

इल्म जो हक का उठाया है मैंने अभी
बहाल सांस है, बाजू में कलम भी नहीं

हज़ार गम हैं मगर फिर जो सलामत हूँ
तो किस तरह से कह दूं तेरा करम भी नहीं

--अज्ञात

इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा

इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन...
हम ही चले गये तो मोहब्बत करेगा कौन...

इस घर की देख-रेख के लिए वीरनियाँ तो हों...
जाले हटा दिए तो हिफ़ाज़त करेगा कौन...

सदमे से टूटने के लिए कुछ तो चाहिए...
कुछ भी नहीं तो इसकी शिकायत करेगा कौन...

मुझको खबर तो है की तू कमजोर है मगर...
मैं ये भी जनता हूँ हिमायत करेगा कौन...

--अल्ताफ राजा

हुआ जो कुछ उसे भुलाना चाहिए था

हुआ जो कुछ उसे भुलाना चाहिए था
के उसे अब लौट आना चाहिए था

यह सारा बोझ मेरे सर पे क्यों है
उसे भी थोड़ा गम उठाना चाहिए था

इतनी खामोशी से ताल्लुक तोड़ दिया
उसे पहले बताना चाहिए था

उसकी यादों की खुश्बू है आज भी मेरे दिल मैं
मुझे जिसको भुलाना चाहिए था

ज़रा सी ग़लती पे रूठ बैठे
क्या उससे बस बहाना चाहिए था ??

मुझे पा कर उससे क्या चैन मिलता
जिसे सारा ज़माना चाहिए था

--अज्ञात

Sunday, July 11, 2010

वो मुझसे पूछ रहा है बताओ कैसा है

वो मुझसे पूछ रहा है बताओ कैसा है,
जो मैने तुमको दिया था वो घाव कैसा है

अभी भी टीस से रातों को जागते हो के नहीं,
कुछ अपने ज़ख़्म की हालत सुनाओ कैसा है

कहा तो था के बहुत सख़्त मरहाले होंगे,
यह मेरी ज़ात से तुमको लगाव कैसा है

शदीद कर्ब में जीना भी रास है तुमको,
तुम्हारे शौक़ का यह चल चलाव कैसा है

तलाश कर ही लो मिल जाएगा कोई तुमको,
मेरी ही सिम्त तुम्हारा झुकाव कैसा है

श्रृंगार हुस्न की फ़ितरत रही है सदियों से,
तुम्हारे इश्क़ में आख़िर बनाव कैसा है

वो जिस शहर में बसर कर रहे हो उम्र फिगार,
मुहब्बातों का वहाँ रख रखाव कैसा है

--फिगार

Source: http://mobyhump.blogspot.com/2010/07/ek-koshish-ek-sher-dekh-kar.html

Tuesday, July 6, 2010

वो जो बेखौफ़ मोहब्बत का हुनर देता है

वो जो बेखौफ़ मोहब्बत का हुनर देता है
हाँ वही शक्स बिछड़ने का भी डर देता है

प्यार भर देता है उड़ने की तमन्ना दिल में
और मेरे पंख भी पत्थर के वो कर देता है

मेरे हिस्से के खुदा गम तो मुझे मिलते हैं
पर मेरे हिस्से की सब खुशियाँ किधर देता है?

रिश्ता ही प्यार का होता है ये कैसा रिश्ता
तन्हा दुनिया से जो लड़ने का जिगर देता है

--इरशाद कामिल

Saturday, July 3, 2010

मैं ने कहा के मुझे छोड़ दो या तोड़ दो

मैं ने कहा के मुझे छोड़ दो या तोड़ दो
वो बेवफा हंस के बोली
इतने नायाब खिलौने रोज कहाँ मिलते हैं

--अज्ञात

वो कह गए कि मेरा इंतज़ार मत करना

वो कह गए कि मेरा इंतज़ार मत करना
मैं कहूँ भी तो मुझ पे ऐतबार मत करना
वो कहते हैं के मुझे तुमसे मोहब्बत नहीं
पर तुम किसी और से प्यार मत करना

--अज्ञात

दिल दिया ऐतबार की हद थी

दिल दिया ऐतबार की हद थी
जान दी तेरे प्यार की हद थी
मर गए हम खुली रही आँखें
ये तेरे इंतज़ार की हद थी

--अज्ञात

किताब-ए-जिंदगी

हज़ार निगाहों से गुजरी मगर कोई पढ़ न सका
जिंदगी भर खुली रही किताब-ए-जिंदगी मेरी

--अज्ञात

दर्द, अश्क,तन्हाई और बेकारी बेहिसाब

दर्द, अश्क,तन्हाई और बेकारी बेहिसाब
क्या करेगी मौत मेरी जिंदगी लेकर

--जौली

एक पल में खरीद लेते हैं जो दिल की बस्ती को,
वो लोग देखने में अक्सर गरीब होते हैं

--अज्ञात

Its written that this one is by Ghalib, but i doubt...

Source : http://www.wattpad.com/189439-ghaalib-short-shayaris

ज़रा सी रंजिश पे न छोड़ो वफ़ा का दामन

ज़रा सी रंजिश पे न छोड़ो वफ़ा का दामन
उमरें बीत जाती हैं दिल का रिश्ता बनने में

--अज्ञात

ज़माने से न छुप गर करनी मोहब्बत है

ज़माने से न छुप गर करनी मोहब्बत है
कि मज़ा आता है खेल का तमाशबीनो से

--जौली

Wednesday, June 30, 2010

न जी भर के देखा, न कुछ बात की

न जी भर के देखा, न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

--बशीर बद्र

Sunday, June 27, 2010

वो तीर छोड़ा हुआ उसी कमान का था

वो तीर छोड़ा हुआ उसी कमान का था
अगरचे हाथ किसी और मेहरबान का था

गुज़र रहा था वो लम्हा जो दरमियान का था
मगर ये वक़्त बड़े सख्त इम्तेहान का था

पता नहीं की जुदा हो के कैसे जिंदा रहे
हमारा उसका ताल्लुक तो जिस्म-ओ-जान का था

हवा तो चलती ही रहती थी इस समंदर में
कसूर कोई अगर था तो बादवान का था

वही कहानी कभी झूठ थी, कभी सच्ची थी
ज़रा सा फर्क अगर था, तो बस बयान का था

क़दम क़दम पे नये मंज़रों की हैरत थी
तेरी गली का सफर था, कि इक जहान का था

हम अपने नाम के हिस्से को ढूँढ़ते भी कहाँ
ज़मीन के पास तो जो कुछ था, आसमान का था

कहीं ज़मीन पे सानी नहीं मिला उसका
वो शक्स जैसे किसी और आसमान का था

--मंज़ूर हाशमी

Saturday, June 12, 2010

अपना क्या है सारे शहर का, इक जैसा नुकसान हुआ

जब से उसने शहर को छोड़ा , हर रास्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का, इक जैसा नुकसान हुआ

--मोहसिन नकवी

किस तरह पाया तुझे, किस तरह खोया तुझे

किस तरह पाया तुझे, किस तरह खोया तुझे
मुझ सा मुनकिर भी कायल हो गया तकदीर का

--अहमद फ़राज़

[munkir=atheist; qaa_il honaa=to be a fan/follower]

सारे नूर की रौशनी उस चेहरे मे सिमट आई है

सारे नूर की रौशनी उस चेहरे मे सिमट आई है
देखने के बाद उसको चाँदनी भी शरमाई है

रोक दिया धड़कनो को उसने जलवानुमा होकर
क़ातिल निगाहों ने दिल पर बिजली गिराई है

इस मासूमियत पर उसका भी लगता है दिल आ गया
शरारती ये लट रुखसार चूमने को चली आई है

वक़्त भी रुक जाता है देखने को ये अंदाज़ उसका
किस नज़ाकत से वो लट गालों से हटाई है

दिल दीवाना हुआ है उसकी ऐसी ही अदाओं का
जैसे हया से, मुस्का के उसने अपनी चूड़ी घुमाई है

उसका रह रह कर मुस्कुराना खुद ही ये बताता है
जिस हुस्न के सब हैं दीवाने, वो भी किसी का तमन्नाई है

--रेहान खान

यूं इश्क़ का असर होगा सोचा ना था

यूं इश्क़ का असर होगा सोचा ना था
उसका दिल मेरा घर होगा सोचा ना था

मासूम निगाहों से उलझ बैठे क्या पता था
निशाना हम और तीर-ए-नज़र होगा सोचा ना था

इतनी मासूमियत से जान लेगा वो हमारी
इल्ज़ाम-ए-क़त्ल हम पर होगा सोचा ना था

इश्क़ की बाज़ी जीतने का जुनूं इस हद तक
की दाव पर दिल जिगर होगा सोचा ना था

जादू ऐसा चला देगा कोई दिल पर
ये सब से बेख़बर होगा सोचा ना था

नाज़ो अदा की बिजलियों के तमन्नाई थे हम भी मगर
इतना हसीन सितमगर होगा सोचा ना था

--रेहान खान

एहसास मोहब्बत का दिल में ही रखना है मुझे

एहसास मोहब्बत का दिल में ही रखना है मुझे
महबूब से मुझे मगरूरियत का खतरा है

--अर्घ्वान रब्भी

हालत थक गए हैं, कहानी के बोझ से

अफसाना ख्वाँ !! सुखन को नतीजे की सिम्त ला
हालात थक गए हैं, कहानी के बोझ से !!

--अब्दुल हमीद अदम

afsaanaa-khwaan=story-teller;
sukhan ko=baat ko
simt=taraf/nazdeek

उलटी चाल चलते हैं ये इश्क करने वाले

वो इनकार करते हैं इकरार के लिए
नफरत भी करते हैं तो प्यार के लिए
उलटी चाल चलते हैं ये इश्क करने वाले
आँखें बंद करते हैं तो दीदार के लिए

--अज्ञात

Friday, June 11, 2010

उसने तोड़ा वो तालुक जो मेरी ज़ात से था

उसने तोड़ा वो तालुक जो मेरी ज़ात से था
उसको रंज न जाने मेरी किस बात से था
ला-ताल्लुक रहा लोगों की तरह वो मुझसे
जो अच्छी तरह वाकिफ मेरे हालात से था

--अज्ञात

ज़ात=आत्मा
रंज=दुःख, गम

Thursday, June 10, 2010

हसरत भरी निगाहों को आराम तक नही

हसरत भरी निगाहों को आराम तक नही
पलटा वो ज़िंदगानी की फिर शाम तक नही

जिसकी तलब मैने ज़िंदगी अपनी गुज़ार दी
उस बेवफा के लब पे मेरा नाम तक नही

जो कह गए थे शाम को बैठेंगे आज फिर
कुछ साल हो गए, कोई पैगाम तक नही

मैं दफ़न हूँ तेरे हिजर की एक ऐसी क़ब्र मे
पत्थर पे जिस के आज कोई नाम तक नही

बे-इख्तियार उठते हैं मेरे क़दम उधर
हालांके उस गली में मुझे काम तक नही

उसने पूरे शहर मे चर्चा बहुत किया
मेरे लबों पे एक भी इल्ज़ाम तक नही

--अज्ञात

Monday, June 7, 2010

बात कम कीजे ज़हनात को छुपाते रहिये

बात कम कीजे ज़हनात को छुपाते रहिये
ये नया शहर है कुछ दोस्त बनाते रहिये
दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजिये रिश्ता
दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये

--निदा फाजली
ज़हनात=intellect

Saturday, June 5, 2010

कभी-कभी दुआओं का जवाब आता है

कभी-कभी दुआओं का जवाब आता है
और कुछ इस तरह कि बेहिसाब आता है


ढूँढते रहते हैं रात-दिन जो फुरसत के रात-दिन
हो जाते हैं पस्त जब पर्चा रंग-ए-गुलाब आता है
(पर्चा रंग-ए-गुलाब = pink slip, नौकरी खत्म का आदेश )


यूँ तो तेल निकालो तो तेल निकलता नहीं है
और अब निकला है तो ऐसे जैसे सैलाब आता है
(सैलाब = बाढ़, flood)


चश्मा बदल-बदल कर कई बार देखा
हर बार नज़रों से दूर नज़र सराब आता है
(सराब = मरीचिका, mirage)


पराए भी अपनों की तरह पेश आते हैं 'राहुल'
वक़्त कभी-कभी ऐसा भी खराब आता है

--राहुल उपाध्याय

सिएटल | 425-898-9325
4 जून 2010


Source : http://mere--words.blogspot.com/2010/06/blog-post_04.html

Sunday, May 30, 2010

खंजर तेरे से अब मेरा सर क्यों नहीं

खंजर तेरे से अब मेरा सर क्यों नहीं जाता,
शर्मिंदा हूँ मैं डूब के मर क्यों नहीं जाता,

दिल टूट गया जिस्म में फिर दिल नहीं रहा,
गुज़रा हूँ परेशानी से गुज़र क्यों नहीं जाता

--अज्ञात

Sunday, May 16, 2010

आज दुल्हन के लाल जोड़े में

आज दुल्हन के लाल जोड़े में,
उसे उसकी सहेलियों ने सजाया होगा…

मेरी जान के गोरे हाथों पेर
सखियों ने मेहन्दी को लगाया होगा…

बहुत गहरा चढेगा मेहन्दी का रंग,
उस मेहन्दी में उसने मेरा नाम छुपाया होगा…

रह रह कर रो पड़ेगी
जब जब उसको ख़याल मेरा आया होगा…

खुद को देखगी जब आईने में,
तो अक्स उसको मेरा भी नज़र आया होगा…

लग रही होगी बला सी सुन्दर वो,
आज देख कर उसको चाँद भी शरमाया होगा

आज मेरी जान ने
अपने माँ बाप की इज़्ज़त को बचाया होगा

उसने बेटी होने का
दोस्तों आज हर फ़र्ज़ निभाया होगा

मजबूर होगी वो सबसे ज़्यादा,
सोचता हूँ किस तरह उसने खुद को समझाया होगा

अपने हाथों से उसने
हमारे प्रेम के खतों को जलाया होगा

खुद को मजबूत बना कर उसने
अपने दिल से मेरी यादों को मिटाया होगा

टूट जाएगी जान मेरी,
जब उसकी माँ ने तस्वीर को टेबल से हटाया होगा

हो जाएँगे लाल मेहन्दी वाले हाथ,
जब उन काँच के टुकड़ों को उसने उठाया होगा

भूखी होगी वो जानता हूँ में,
कुछ ना उस पगली ने मेरे बगैर खाया होगा

कैसे संभाला होगा खुदको
जब उसे फेरों के लिए बुलाया होगा

कांपता होगा जिस्म उसका,
हौले से पंडित ने हाथ उसका किसी और को पकड़ाया होगा

में तो मजबूर हूँ पता है उसे,
आज खुद को भी बेबस सा उसने पाया होगा

रो रो के बुरा हाल हो जाएगा उसका,
जब वक़्त उसकी विदाई का आया होगा

बड़े प्यार से मेरी जान को
मया बाप ने डॉली में बिताया होगा

रो पड़ेगी आत्मा भी
दिल भी चीखा ओर चीलाया होगा

आज अपने माँ बाप के लिए
उसने गला अपनी खुशियों का दबाया होगा

रह ना पाएगी जुदा होकेर मुझसे
डर है की ज़हर चुपके से उसने खाया होगा

डोली में बैठी इक ज़िंदा लाश को
चार कंधो पेर कहरों ने उठाया होगा

--अज्ञात

Source : http://www.shers.in/shayari/dard-bhari-shayari/aaj-dulhan-ke-laal-jode-mein-5990/

वो राज़ की बातें महफिलों में करता फिरता था

वो राज़ की बातें महफिलों में करता फिरता था
हम उसका नाम तन्हाइयों को भी बताते न थे

--अज्ञात

मगर ये सच है कि उम्मीद्वार मैं भी हूँ

वो एक तीर है जिसका शिकार मैं भी हूँ
मैं एक हर्फ़ सही दिल के पार मैं भी हूँ

वो सामने रहा दरिया का दूसरा साहिल
अगर जहाज़ न डूबा तो पार मैं भी हूँ

यहाँ तो मौत का सैलाब आता रहता है
बहुत बचा था, मगर अब कि बार मैं भी हूँ

न जाने किसके मुकद्दर में वो लिखा होगा
मगर ये सच है कि उम्मीद्वार मैं भी हूँ

किसे खबर है कि नीले समन्दरों की तरह
बहुत दिनों से बहुत बेकरार मैं भी हूँ

--राहत इंदोरी

नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया

नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया
हमें किसी से निभाना भी तो नहीं आया

जला के रख लिया हाथों के साथ दामन तक
तुम्हें चराग बुझाना भी तो नहीं आया

नये मकान बनाए तो फासलों की तरह
हमें ये शहर बसाना भी तो नहीं आया

वो पूछता था मेरी आँख भीगने का सबब
मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया

वसीम देखना मुड मुड के वो उसी की तरफ
किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया

--वसीम बरेलवी

मुझसे गिले हैं, मुझपे भरोसा नहीं उसे

मुझसे गिले हैं, मुझपे भरोसा नहीं उसे
ये सोच कर हम ने भी तो रोका नहीं उसे

वो शक्स कभी चाँद सितारों से पूछे
है कौन सी वो रात, जब सोचा नहीं उसे

अलफ़ाज़ तीर बन के उतारते रहे दिल में
सुनते रहे चुप चाप ही, टोका नहीं उसे

सागर ये मोहब्बत नहीं असूल-ए-वफ़ा है
हम जान तो देंगे मगर धोका नहीं उसे

--सागर

Saturday, May 8, 2010

उन्हें नफरत हुई सारे जहाँ से

उन्हें नफरत हुई सारे जहाँ से
नयी दुनिया कोई लाये कहाँ से

तुम्हारी बात लगती है मुझे तीर
निगाह का काम लेते हो ज़बां से

--अज्ञात

Thursday, May 6, 2010

मंजिल भी नहीं पाई, और रास्ता भी नहीं बदला

कश्ती भी नहीं बदली, दरिया भी नहीं बदला,

हम डूबने वालों का जज्बा भी नहीं बदला,

है शौक-ए-सफर ऐसा, इक उम्र हुई हम ने,

मंजिल भी नहीं पाई, और रास्ता भी नहीं बदला

--अज्ञात

ਏ ਅਖਿਯਾਂ ਦੋ ਹੀ ਚੰਗਿਯਾਂ ਨੇ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂ ਚਾਰ ਨਾ ਕਰ ਲਾਈਨ

ਏ ਅਖਿਯਾਂ ਦੋ ਹੀ ਚੰਗਿਯਾਂ ਨੇ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂ ਚਾਰ ਨਾ ਕਰ ਲਾਈਨ,
ਫਿਰ ਪਛਤਾਉਣਾ ਪੈ ਜੂਗਾ ਕਿਧਰੇ ਪ੍ਯਾਰ ਨਾ ਕਰ ਲਾਈਨ

--ਅਗ੍ਯਾਤ

Wednesday, May 5, 2010

जाने एक नौजवान को क्या सनक चढ़ी...

जाने एक नौजवान को क्या सनक चढ़ी...
जाने थी क्या खुराफात उसने मन मे गढ़ी...
वो जोश मे उठा और तेज़ी से चलने लगा...
एक सज्जन का तेज़ी से पीछा करने लगा...

बेचारे सज्जन भी ये देखकर बड़ा घबराए...
अपने कदम थे उन्होने बड़ी तेज़ी से बढ़ाए...
उनके काँधे पे एक छोटा सा बैग लटका था...
बस उसी मे इस नौजवान का जी अटका था...

सज्जन बैग सीने से चिपकाए ज़ोर से भागे...
लगा शायद नौजवान से निकल गये आगे...
पर वो भी दुगनी रफ़्तार से दौड़ रहा था...
सज्जन का पीछा बिल्कुल न छोड़ रहा था...

सज्जन भागकर तब रेलवे स्टेशन पहुँचे...
बड़ी तेज़ी से थे प्लॅटफॉर्म की ओर लपके...
पर उसने अभी भी उनका पीछा ना छोड़ा...
वो भी उनके पीछे पीछे प्लॅटफॉर्म पे दौड़ा...

लोग तो बस खड़े खड़े तमाशा देख रहे थे...
ओलंपिक जैसी दौड़ से आँख सेंक रहे थे...
फिर पोलीस भी कहीं से सीन मे आई...
नौजवान को पकड़ा और लाठियाँ बजाई...

पर वो सज्जन अभी शायद नही थे थके...
वो तो बस दौड़ते ही रहे और नही रुके..
पोलीस को शक हुआ तो उन्हे भी रोका...
पर वो तो दे गये पोलीस को ही धोखा...

बैग फेंका और वो भीड़ मे कहीं खो गये...
फिर जाने कहाँ वो चुपचाप चंपत हो गये...
बैग खोला तो वहाँ खड़े सब गये सहम..
उसके अंदर रखा हुआ था एक टाइम बम...

फिर तुरंत वहाँ बम निरोधक दस्ता आया...
फिर उन्होने उस बम को फटने से बचाया...
फिर बात चली नौजवान उसी का साथी है...
हो ना हो ये भी ज़रूर कोई आतंकवादी है...


फिर चार लाठियों मे ही वो बिखर गया...
उसके खुलासे से हर कोई था सिहर गया...
बोला मैं कोई आतंकवादी नही सरकार...
मैं तो हूँ बस एक अदना सा बेरोज़गार...

जाने कबसे घर मे था चूल्हा नही जला...
कोशिश की तो पर कोई काम ना मिला....
ये सब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था..
इसलिए एक कोने मे बैठा रो रहा था...

फिर मैने उसे बम रखते हुए देख लिया...
इसीलिए मैं उसके पीछे पीछे हो लिया...
सोचा था कहीं न कहीं तो ये बम फूटेगा...
बस बेरोज़गारी से वही मेरा दामन छूटेगा...

इसके धमाके मे चुपचाप मरने चला था...
परिवार के लिए आज कुछ करने चला था...
मरता तो सरकार से पैसे ही मिल जाते....
मेरे मरने से परिवार के दिन फिर जाते....

--दिलीप तिवारी

E-mail : dileep.tiwari8@gmail.com

Tuesday, May 4, 2010

दिन भर की सब बातें सारे काम तुम्हारे नाम

दिन भर की सब बातें सारे काम तुम्हारे नाम
जब से लिखी हैं हमने अपनी हर एक शाम तुम्हारे नाम
दौलत के बाज़ार में अपनी क्या कीमत है फिर भी
जो भी मिल सकता हो मेरे दाम तुम्हारे नाम

--अज्ञात

अपनी कलम को बेच दिया और लिखने का फन बेच दिया

अपनी कलम को बेच दिया और लिखने का फन बेच दिया
उसको माली कैसे कह दूं जिसने गुलशन बेच दिया

भाई के सर पर दुश्मन ने कैसा सच्चा हाथ रखा
आँगन में दीवार कि खातिर आधा आँगन बेच दिया

दुनिया ने क्या ज़ुल्म किये हैं इसका कोई ज़िक्र नहीं
पर ये चर्चा गली गली है बेवा ने तन बेच दिया

न मन पर कुछ बोझ रखा और न तन पर कुछ भार सहा
बीवी ने फरमाइश की तो माँ का कंगन बेच दिया

--अज्ञात

वो मेरे घर नहीं आता, मैं उसके घर नहीं जाता

वो मेरे घर नहीं आता, मैं उसके घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तालुक मर नहीं जाता

--नवाज़ दिओबंदी

Monday, May 3, 2010

इस दिल में तेरे मिलने का अरमान भी न हो !

माना कि उम्र भर तू मेरा हो नही सकता

पर ऐसा भी क्या कि तू मेरा मेहमान भी न हो !

हो जाये जो होना है पर ऐसा न हो कभी

कि इस दिल में तेरे मिलने का अरमान भी न हो !

--अज्ञात

तुमने तो कह दिया मोहब्बत नहीं मिलती

तुमने तो कह दिया मोहब्बत नहीं मिलती

मुझको तो ये भी कहने की मोहलत नहीं मिलती

तुझको तो यूं खैर शहर के लोगो से खौफ था

और मुझको तो अपने घर से इजाज़त नहीं मिलती

--अज्ञात

Sunday, May 2, 2010

आज इस मोड़ पर लाये हैं उजाले मुझको

आज इस मोड़ पर लाये हैं उजाले मुझको
एक अँधेरे का समुन्दर है संभाले मुझको

जी में आता है तेरे ज़ुल्म-ओ-सितम सब कह दूं
पर रोक लेते हैं लब-ए-इज़हार के ताले मुझको

कुछ तो तेरी राह-ए-गुज़र थी हमदम
कुछ सर-ए-राह मिले लूटने वाले मुझको

वो कब तलक मुझको अपनी पलकों पे सजाये फिरती
कर दिया उसने भी अश्कों के हवाले मुझको

कैद अपनी ही रिवायत की हदों में हूँ
कोई तो हो जो इस अँधेरे से निकाले मुझको

मुझको हर सिम्त अपने होने की बू आती है
कही मेरा होना ही मार ना डाले मुझको

--अज्ञात

Source : http://wafakadard.com/ahmed-farazs-collections/

Friday, April 30, 2010

क्या समझे ?

बात दलदल की करे जो वो कमल क्या समझे ?

प्यार जिसने न किया ताजमहल क्या समझे ?

यूं तो जीने को सभी जीते हैं इस दुनिया में,

दर्द जिसने न सहा हो वो ग़ज़ल क्या समझे ?

--अज्ञात

मंजिलें क्या है रास्ता क्या है

मंजिलें क्या है रास्ता क्या है
हौसला हो तो फासला क्या है

वो सज़ा दे के दूर जा बैठा
किस से पूछूँ मेरी खता क्या है

-आलोक श्रीवास्तव

उसे ये शिकवा के मैं उसे समझ न सका

उसे ये शिकवा के मैं उसे समझ न सका
और मुझे ये नाज़ के मैं जानता बस उसको था

--अज्ञात

Thursday, April 29, 2010

अपनी सूरत लगी पराई सी

दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा
बस तेरा नाम ही लिखा देखा

तेरी आँखों में हमने क्या देखा
कभी कातिल कभी खुदा देखा

अपनी सूरत लगी पराई सी
जब कभी हमने आईना देखा

हाय अंदाज़ तेरे रुकने का
वक्त को भी रुका रुका देखा

तेरे जाने में और आने में
हमने सदियों का फासला देखा

फिर न आया खयाल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा

तेरी आँखों में हमने क्या देखा
कभी कातिल कभी खुदा देखा

दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा
बस तेरा नाम ही लिखा देखा

--सुदर्शन फाकिर

जगजीत और चित्रा की आवाज़ में ये गीत आप youtube पर सुन सकते हैं

तेरी बेरुखी और तेरी मेहरबानी

तेरी बेरुखी और तेरी मेहरबानी
यही मौत है और यही जिंदगानी

वही इक फ़साना वही इक कहानी
जवानी जवानी जवानी जवानी

तेरी बेरुखी और तेरी मेहरबानी
यही मौत है यही जिंदगानी

लबो पर तबस्सुम तो आँखों में पानी
यही है यही दिल जलो की निशानी

बताऊँ है क्या आंसुओं की हकीक़त
जो समझो तो सब कुछ, न समझो तो पानी

--अज्ञात

जगजीत सिंह की आवज में सुनिए

दर्द से दो-दो हाथ कौन करे

बात करनी थी ,बात कौन करे
दर्द से दो-दो हाथ कौन करे.

हम सितारे तुम्हें बुलाते हैं
चाँद ना हो तो रात कौन करे .

हम तुझे रब कहें या बुत समझें
इश्क में जात-पात कौन करे

जिंदगी भर कि कमाई तुम हो
इस से ज्यादा ज़कात कौन करे

--डा कुमार विश्वास

तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं,

तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी.

--वसीम बरेलवी

तुम्हारे पास मेरे सिवा सब कुछ है,

तुम्हारे पास मेरे सिवा सब कुछ है,
मेरे पास सिवा तुम्हारे कुछ भी नही

--अज्ञात

Monday, April 26, 2010

यूँ प्यार को आज़माना नहीं था

दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं था
यूँ प्यार को आज़माना नहीं था

उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था

चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था

दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था

उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था

--श्रद्धा जैन

Source : http://bheegigazal.blogspot.com/2010/04/blog-post_25.html

Friday, April 23, 2010

कभी टूटा ही नहीं मेरे दिल से तेरी यादों का तिलिस्म,

कभी टूटा ही नहीं मेरे दिल से तेरी यादों का तिलिस्म,
गुफ्तगू जिस से भी हो, ख्याल तेरा ही रहता है
--अज्ञात

Tuesday, April 20, 2010

एक वो जो मोहब्बत का सिला देता है

एक वो जो मोहब्बत का सिला देता है
ये ज़माना ही वफाओं की सज़ा देता है

वो भी आंसू है जो आग बुझाए दिल की
ये भी आंसू जो दामन जो जला देता है

--अज्ञात

Sunday, April 18, 2010

हम उसके बिना ज़िन्दगी गुज़ार ही देंगें

हम उसके बिना ज़िन्दगी गुज़ार ही देंगें फराज़
हसरत-ए-ज़िन्दगी था वो, शर्त-ए-ज़िन्दगी तो नहीं

--अहमद फराज़

हमारे बाद नहीं आयेगा तुम्हें चाहत का ऐसा मज़ा फ़राज़

हमारे बाद नहीं आयेगा तुम्हें चाहत का ऐसा मज़ा फ़राज़
तुम लोगों से कहते फिरोगे, मुझे चाहो उसकी तरह

--अहमद फ़राज़

मेरी हर मांगी हुई दुआ बेकार गयी फ़राज़

मेरी हर मांगी हुई दुआ बेकार गयी फ़राज़
जाने किस शक्स ने चाहा था इतनी शिद्दत से उसे

--अहमद फ़राज़

ज़िन्दगी में इस से बढ़ कर रन्ज क्या होगा फ़राज़

ज़िन्दगी में इस से बढ़ कर रन्ज क्या होगा फ़राज़
उसका ये कहना कि तू शायर है दीवाना नहीं

--अहमद फराज़

जिंदगी हूँ तुम्हारी गुज़ारो मुझे

चाहे जितना मुंह से भी पुकारो मुझे
जिंदगी हूँ तुम्हारी गुज़ारो मुझे

अपने घर में हो चारों तरफ आईने
मैं संवारू तुम्हे तुम संवारो मुझे

मैं तुम्हारी नज़र में तो इक खेल हूँ
चाहे जीतो मुझे चाहे हारो मुझे

--अंजुम रहबर

और तो कुछ भी पास निशानी तेरी

और तो कुछ भी पास निशानी तेरी
देखती रहती हूँ तस्वीर पुरानी तेरी

लड़कियां और भी मनसूब तेरे नाम से हैं
क्या कोई मेरी तरह भी है दीवानी तेरी

मैं अगर होंट भी सी लूं तो मेरी खामोशी
सारी दुनिया को सूना देगी कहानी तेरी

मेरे फूलों में महकता है पसीना तेरा
और हाथो में खनकती है जवानी तेरी

राजमहलों में कनीजों का रहा है कब्ज़ा
और जंगल में भटकती रही रानी तेरी

--अंजुम रहबर

खामोश राहों में तेरा साथ चाहिए

खामोश राहों में तेरा साथ चाहिए
तनहा है मेरा हाथ, तेरा हाथ चाहिए

मुझको मेरे मुक़द्दर पर इतना यकीन तो है
तुझको भी मेरे लफ्ज़, मेरी बात चाहिए

मैं खुद अपनी शायरी को क्या अच्छा कहता
मुझको तेरी तारीफ, तेरी दाद चाहिए

--अज्ञात

किसी के प्यार में दीवानावार हम भी हैं

किसी के प्यार में दीवानावार हम भी हैं
तुम्हारी तरह तार तार हम भी हैं
मेरी आँखों में आंसू नहीं मोतिया है
ग़मों के शहर के जागीरदार हम भी हैं
--अज्ञात

कोई नहीं है चाहने वाले तो क्या हुआ

कोई नहीं है चाहने वाला तो क्या हुआ
मेरी तरफ नहीं है उजाला तो क्या हुआ

धरती को मेरी जात से कुछ तो नमी मिली
फूटा है मेरे पाँव का छाला तो क्या हुआ

सारी दुनिया ने हम पे लगाईं तोहमतें
तूने भी मेरा नाम उछाला तो क्या हुआ

--अज्ञात

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुमको देखूं या तुमसे बात करूँ

--अज्ञात

हस्ती के मेरे मानी कुछ तुझसे जुदा तो नहीं

हस्ती के मेरे मानी कुछ तुझसे जुदा तो नहीं
फिर क्यों गुरूर है, मैं गर नहीं तो, तू भी खुदा तो नहीं

--आलोक मेहता

बेजुबान को वो जब जुबां देता है

बेजुबान को वो जब जुबान देता है
पढ़ने को वो अपनी किताब, कुरान देता है
बक्शने पर आये जब उम्मत के गुनाह
तोहफे में हम गुनाहगारो को वो रमजान देता है

--अज्ञात

मिलना था इत्तफाक, बिछड़ना नसीब था

मिलना था इत्तफाक, बिछड़ना नसीब था
वो फिर उतनी दूर हो गया, जितना करीब था

बस्ती के सारे लोग ही आतिस-परस्त थे
घर जल रहा था, और समंदर करीब था

अंजुम मैं जीत कर भी यही सोचती रही
जो हार कर गया, वो बड़ा खुशनसीब था

--अंजुम रहबर

Saturday, April 17, 2010

जिंदगी में किसी का साथ काफी है

जिंदगी में किसी का साथ ही काफी है
हाथो में किसी का हाथ ही काफी है
दूर हो या पास फरक नहीं पड़ता
प्यार का तो बस एहसास ही काफी है

--अज्ञात

जाओ हम ऐतबार करते हैं

हम बुतों से जो प्यार करते हैं
नकले परवरदिगार करते हैं

इतनी कसमें न खाओ घबराकर
जाओ हम ऐतबार करते हैं

अब भी आ जाओ कुछ नहीं बिगड़ा
अब भी हम इन्तजार करते हैं

--अज्ञात

सोचना ही फ़िज़ूल है शायद

सोचना ही फ़िज़ूल है शायद
जिंदगी एक भूल है शायद

हर नज़ारा दिखाई दे धुंधला
मेरी आँखों पे धुल है शायद

इक अजब सा सुकून है दिल में
आपका ग़म क़ुबूल है शायद

दोस्ती प्यार दुश्मनी नफरत
यूं लगे सब फ़िज़ूल है शायद

किस कदर चुभ रहा हूँ मैं
मेरे दामन में फूल है शायद

--राजेन्द्र टोकी

Thursday, April 15, 2010

जब मेरी हक़ीकत जा जा कर उनको सुनाई लोगों ने

जब मेरी हक़ीकत जा जा कर उनको सुनाई लोगों ने
कुछ सच भी कहा, कुछ झूठ कहा ,कुछ बात बनाई लोगों ने,

ढाए हैं हमेशा ज़ुल्म - ओ- सितम दुनिया ने मोहब्बत वालों पर
दो दिल को कभी मिलने ना दिया दीवार उठाई लोगों ने,

आँखो से ना आँसू पोंछ सके ,होंठो पे ख़ुसी देखी ना गयी
आबाद जो देखा घर मेरा तो आग लगाई लोगों ने,

तन्हाई का साथी मिल ना सका ,रुसवाई मे शामिल शहर हुआ
पहले तो मेरा दिल तोड़ दिया फिर ईद मनाई लोगों ने,

इस दौर मे जीना मुश्किल है ,ये इश्क़ कोई आसान नही
हर एक कदम पर मरने की अब रस्म चलाई लोगों ने...

--Unknown

Wednesday, April 14, 2010

ताबीर जो मिल जाती, तो इक ख़्वाब बहुत था

ताबीर जो मिल जाती, तो इक ख़्वाब बहुत था
जो शख्स गँवा बैठे हैं नायाब बहुत था
मैं कैसे बचा लेता भला कश्ती-ए-दिल को
दरिया-ए-मोहब्बत में सैलाब बहुत था
--अज्ञात

Tuesday, April 13, 2010

जज़्बात-ए-इश्क नाकाम न होने देंगे

जज़्बात-ए-इश्क नाकाम न होने देंगे
दिल की दुनिया में कभी शाम न होने देंगे
दोस्ती का हर इलज़ाम अपने सर पर ले लेंगे
पर दोस्त हम तुम्हे बदनाम न होने देंगे

--अज्ञात

तेरी जुदाई में दिल बेकरार न करूँ

तेरी जुदाई में दिल बेकरार न करूँ
तू हुकुम दे तो तेरा इंतज़ार न करूँ
बेवफाई करनी हो तो इस कदर कर
तेरे बाद मैं किसी से प्यार न करूँ

--अज्ञात

Monday, April 12, 2010

आप की यांद ना आयें तो हम बेवफ़ा

आप की यांद ना आयें तो हम बेवफ़ा
आप बुलाऒ और हम ना आये तो हम बेवफ़ा
हमे मरने के लिये खंजर की जरुरत नही ,
बस एक बार नजरे फ़ेर लो अगर ना मर जायें तो हम बेवफ़ा

--अज्ञात

मुँह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन

मुँह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में, ख़ामोशी पहचाने कौन ।

सदियों-सदियों वही तमाशा, रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं, खो जाता है जाने कौन ।

जाने क्या-क्या बोल रहा था, सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून
कल मेरी नींदों में छुपकर, जाग रहा था जाने कौन ।

वो मेरा आईना है और मैं उसकी परछाई हूँ
मेरे ही घर में रहता है, मुझ जैसा ही जाने कौन ।

किरन-किरन अलसाता सूरज, पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है, ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन

--निदा फाजली


Sunday, April 11, 2010

हम रूठे तो किसके भरोसे

हम रूठे तो किसके भरोसे
कौन है जो आएगा हमें मनाने के लिए
हो सकता है तरस आ भी जाए आपको
पर दिल कहाँ से लाऊं आपसे रूठ जाने के लिए

--सत्येन्द्र तिवारी

तेरे बगैर भी जीना बहुत मुहाल नहीं

तेरे बगैर भी जीना बहुत मुहाल नहीं
ये बात और है के मुझसे जिया नहीं जाता

--अज्ञात

बहुत अज़ीज़ था वो शख्स हाँ मगर यारो

बहुत अज़ीज़ था वो शख्स हाँ मगर यारो
बिछड़ गया तो मुझे भूलना पड़ा आखिर !!!
--अज्ञात

Thursday, April 8, 2010

अब भला छोड़ कर घर क्या करते

अब भला छोड़ कर घर क्या करते
शाम के वक्त सफर क्या करते

तेरी मसरूफियतें जानते थे
अपने आने की खबर क्या करते
(मसरूफियतें : Engagements)

जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-कमर क्या करते
(शम्स-ओ-कमर : Sun And The Moon)

वो मुसाफिर ही खुली धुप का था
साये फैला के शजर क्या करते
(शजर : Tree)

ख़ाक ही अव्वल-ओ-आखिर थी
कर के ज़र्रे को गौहर क्या करते
(ख़ाक : Dust;
अव्वल-ओ-आखिर : In The Beginning And The End;
ज़र्रे : Particles;
गौहर : Jewels)


राय पहले से ही बना ली तूने
दिल में अब हम तेरे घर क्या करते

इश्क ने सारे सलीके बख्शे
हुस्न से कसब-ए-हुनर क्या करते
(सलीके : Etiquettes; Kasb-E-Hunar : ?)

--परवीन शाकिर

दिल की चौखट पे एक दीप जला रखा है

दिल की चौखट पे एक दीप जला रखा है
तेरे लौट आने का इमकान सजा रखा है

साँस तक भी नहीं लेते हैं तुझे सोचते वक़्त
हम ने इस काम को भी कल पे उठा रखा है
रूठ जाते हो तो कुछ और हसीन लगते हो
हम ने यह सोच के ही तुम को खफा रखा है

तुम जिसे रोता हुआ छोड़ गये थे एक दिन
हम ने उस शाम को सीने से लगा रखा है
चैन लेने नही देता यह किसी तौर मुझे
तेरी यादों ने जो तूफान उठा रखा है

जाने वाले ने कहा था क वो लौट आएगा ज़रूर
एक इसी आस पे दरवाज़ा खुला रखा है
तेरे जाने से जो इक धूल उठी थी गम की
हम ने उस धूल को आँखों में बसा रखा है

मुझ को कल शाम से वो बहुत याद आने लगा
दिल ने मुद्दत से जो एक शख्स भुला रखा है
आखिरी बार जो आया था मेरे नाम पैगाम
मैने उसी कागज़ को दिल से लगा रखा है

दिल की चौखट पे एक दीप जला रखा है.

--अज्ञात

Source : http://shayari.wordpress.com/2006/09/17/%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA-%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88/

शाम का सूरज हूँ, पूजता कोई नहीं

शाम का सूरज हूँ, पूजता कोई नहीं
जब सुबह होगी तो मै ही देवता हो जाऊँगा

लोग जब पूछेंगे मुझ से मेरी बर्बादी का हाल
तेरे दर के सामने जाकर खडा हो जाऊँगा

दिल गया दामन गया और होश भी हैं लापता
रफ़्ता-रफ़्ता एक दिन मै भी लापता हो जाऊँगा

इश्क में कायम करेंगे दूरियों के सिलसिले
आज तू मुझ से खफा कल मैं तुझ से खफा हो जाऊँगा

--अज्ञात

Wednesday, April 7, 2010

इस कदर हम यार को मनाने निकले

इस कदर हम यार को मनाने निकले
उसकी चाहत के हम दीवाने निकले
जब भी उसे दिल का हाल बताना चाहे
तो उसके होंटों से वक़्त न होने के बहाने निकले

--अज्ञात

Monday, April 5, 2010

नकाब उलटे हुए जब से वो गुज़रता है

नकाब उलटे हुए जब से वो गुज़रता है
समझ कर फूल उसके लैब पे तितली बैठ जाती है

--अज्ञात

Sunday, April 4, 2010

उधेड़-बुन: 21 वीं सदी


उधेड़-बुन: 21 वीं सदी

खींच लेती है हमें तुम्हारी मोहब्बत वरना

खींच लेती है हमें तुम्हारी मोहब्बत वरना
आखिरी बार मिले हैं कईं बार तुझसे

--अज्ञात

तुझको पाने की तमन्ना तो मिटा दी मैंने

तुझको पाने की तमन्ना तो मिटा दी मैंने
दिल से लेकिन तेरे दीदार की हसरत न गयी

--अज्ञात

जाने किसका नाम खुदा था पीतल के गुलदानो पर

सस्ते दामो तो ले आते पर दिल तो था भर आया
जाने किसका नाम खुदा था पीतल के गुलदानो पर

--अज्ञात

Friday, April 2, 2010

मैं उसका हूँ, वो इस एहसास से इनकार करता है

मैं उसका हूँ, वो इस एहसास से इनकार करता है
भरी महफ़िल में भी रुसवा, मुझे हर बार करता है
यकीन है सारी दुनिया को, खफा है मुझसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी, मुझी से प्यार करता है
--डा कुमार विश्वास

तन का कुर्ब ना मांगो

मोहब्बत बंदगी है इसमे तन का कुर्ब ना मांगो

के जिसको छु लिया जाये उसे पुजा नही करते

--अज्ञात

न छूने की इजाज़त है

न छूने की इजाज़त है, न पा सकता हूँ मैं तुमको,
चलो आज ये तय कर लें, कि मेरी हद कहाँ तक है
--अज्ञात

Wednesday, March 31, 2010

दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है

दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है
तेरी जुदाई का मंज़र अभी निगाह में है

तेरे बदलने के बावजूद तुझको चाहा है
ये एतराफ भी शामिल मेरे गुनाह में है
[एतराफ=Admission/Confession]

अज़ाब देगा तो फिर मुझको ख्वाब भी देगा
मैं मुत्मईं हूँ, मेरा दिल तेरी पनाह में है
[मुत्मईं=Appeased, Quiescent]

जिसे बहार के मेहमान खाली छोड़ गए
वो एक मकान अभी तक मकीन की चाह में है
[मकीन=मकान में रहने वाले]

यही वो दिन थे जब एक दूसरे को पाया था
हमारी सालगिराह ठीक अब के माह में है

--अज्ञात

Tuesday, March 30, 2010

मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें

मुझ से मिलती हैं तो मिलती हैं चुरा कर आँखे
फिर वो किसके लिए रखती है सज़ा कर आँखें

मैं उन्हें देखता रहता हूँ जहाँ तक देखूं
एक वो हैं, के जो देखे ना, उठा कर आँखें

उस जगह आज भी बैठा हूँ अकेला यारो
जिस जगह छोड़ गये थे वो मिला कर आँखें

मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें

--सागर

तुम्हारे साथ किसे फैसले की फुरसत थी

तुम्हारे साथ किसे फैसले की फुरसत थी
तुम्हारे बाद भला फैसला मैं क्या करता

--अज्ञात

बात बनती है मगर कोई बनाए तो सही

बात बनती है मगर कोई बनाए तो सही
हमको एक बार कोई दिल में बसाए तो सही
हम बता देंगे मोहब्बत की हकीक़त क्या है
कोई एक बार वफ़ा कर के दिखाए तो सही

--अज्ञात

Monday, March 29, 2010

तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो...

किसी ने चाहा था लड़कपन में तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो
मन ही मन अपना बनाया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

उसे न आता था प्यार जताना
उसे न आता था तुमको मनाना
इसलिए शायद सताया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

दिल ही दिल में अपने ख्वाब बुनता था
सपनो को कलियाँ तेरे लिए चुनता था
कभी न लेकिन बताया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

रातों को उठकर बिस्तर से जागता था
वो तुम्हे चाहता था तुम्हे मांगता था
दुनिया से रूठकर भी मनाया था तुमको
तुम्हे तो शायद याद भी न हो

सोचता था क्या होगा अंजाम मेरा
कोपियों पे लिखता था वो नाम तेरा
किताबों मेंफूल सा सजाया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

पीछे कि सीट से क्लास में बैठकर
प्यार से वो तुमको देखता था अक्सर
चाहा मगर गले से लगा न पाया तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

बचपन कि वो यादें अब भी आती है
बैचैन करती हैं मुजको रुलाती हैं
सोचा बहत ''तोमर'' भुला न पाया तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो....
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो...
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो...

डॉ. विकास तोमर.

Saturday, March 27, 2010

ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਵੈਰੀ ਆਪ ਹੋਏ

ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਵੈਰੀ ਆਪ ਹੋਏ
ਅਸੀਂ ਖੁਦ ਨੂੰ ਜ਼ਹਰ ਪਿਲਾ ਬੈਠੇ

ਜਿਸ ਮੌਤ ਤੋ ਲੋਕ ਡਰਦੇ ਨੇ
ਅਸੀਂ ਉਸ ਮੌਤ ਨੂੰ ਮੀਤ ਬਣਾ ਬੈਠੇ

ਏਸ ਇਸ਼ਕ਼ ਚ ਐਨੇ ਫਟ ਖਾਦੇ ਨੇ
ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਆਪ ਗਵਾ ਬੈਠੇ

ਇਕ ਵਾਰ ਖਾ ਕੇ ਧੋਖਾ, ਲੋਕ ਸੰਭਲ ਜਾਂਦੇ
ਅਸੀਂ ਫਿਰ ਚਲ ਓਸੇ ਰਾਹ ਬੈਠੇ

ਜੋ ਸਾਨੂ ਦਰਦ ਦੇਣਾ ਚਾਹੰਦੇ ਸੀ
ਅਸੀਂ ਉਸਨੁ ਹਮਦਰਦ ਬਣਾ ਬੈਠੇ

ਹੁਣ ਤਾ ਆਸ ਬਚੀ ਸੀ ਜੀਉਣ ਦੀ
ਅਸੀਂ ਓਹ ਵੀ ਆਸ ਮੁਕਾ ਬੈਠੇ

--Unknown

एक हास्यसपद वाकया

वैसे कहते हैं कि हर भाषा कि अपनी एक खास बात होती है, अगर वो समझ में आये, तो खूब आनंद देती है, और अगर न आये, तो सिर्फ एक मजाक बन के रह जाती है


एक जगह मुशायरा हो रहा था, तो एक हिंदी कवि से रहा नहीं गया, पहुँच गए stage पर अपना शेर सुनाने को

न गिला करता हूँ, न शिकवा करता हूँ
तुम सलामत रहो, यही दुआ करता हूँ

अब एक मद्रासी कवि कैसे चुप रहते, वो भी कहने लगे मुझे भी शेर सुनाना है

न गीला करता हूँ, न सूखा करता हूँ
तुम साला मत रहो, यही दुआ करता है

लम्हे ये सुहाने साथ हों न हों

लम्हे ये सुहाने साथ हों न हों
कल में आज जैसी कोई बात हो न हो
आपका प्यार हमेशा इस दिल में रहेगा
चाहे पूरी उमर मुलाकात हो न हो

--अज्ञात

Thursday, March 25, 2010

जल जल कर राख का ढेर बन जाने का दुःख नहीं

जल जल कर राख का ढेर बन जाने का दुःख नहीं
सदमा तो ये है पैरों में रौंदा जा रहा हूँ
--अज्ञात

Some beautiful collection from a friend's blog..Part4

A Gujarati poet - Gani Dahiwala in a very famous Gazal of his says this about comparison of his love with the beloved who got separated as :
Tame Raaj Raani na Chir sam, Ame Rank Naar ni Chundadi,
Tame Tan par raho ghadi-be-ghadi, ame saath daiye kafan sudhi
which can be translated as :

Tum ho jaise kisi maharaani ke vastr-aabhushan, hum hai gareeb naari ki chunari,
Tum rehte ho tan par pal-do-pal, ham saath dete hai kafan tak.

Gulzaar, who has written many memorable songs in his long career as poet and who has written some of the most contemporary songs at all times writes in one of his early works about the way of living in this world :

Jab bhi ji chaahe nayi duniya saja lete hai log,
ek chehre pe kai chehre laga lete hai log

And this incompleteness of things that always remains with everyone and that is always beautifully summrized by poets and can also be seen in Nida Fazli's beautiful words :

Kabhi kisi ko mukammal Jahaan nahi milta,
Kahin zameen to kahin aasman nahi milta


Wish to write more on such couplets as I keep remembering them. May be some other time part 2 :) But something here for a day like today (23rd March)

Some beautiful collection from a friend's blog..Part3

This idea of conveying the start and end of life in terms of childhood and old age has been used by umpteen number of poets and have been used really well. But there were poets and there was Ghalib. The great Mirza Ghalib, who with an air of above the world feeling, wrote :

बाज़ीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब्-ओ-रोज तमाशा मेरे आगे
(Baazicha - e - Atfal = Playground of kids)

And many poets who have been disenchanted with the society and life and the world in general have written things that would mean a world to many poetry lovers like us. Saahir writes beautifully about the idea (And this was sung by Mhd.Rafi with equal finnesse)

तंग आ चुके हैं कश्म-ए-कश-ए-जिंदगी से हम
ठुकरा न दे जहां को कही बेदिली से हम

Saahir famously had a life of failed love affairs and this also goes with lives of many other poets. Poetry hence is created from the indepth feeling of not getting the beloved. Mariz explains how his words have become his own enemies in this couplet,

Mujh par Sitam kari gaya, mari ghazal na sher,
Vaanchi ne rahe chhe e koik bijana khayal ma

which can be translated to :

मुझ पर सितम ढा गए मेरी गज़ल के शेर
पढ़ पढ़ के खो रहे हैं, वो किसी और के ख़याल में

A similar emotion as conveyed by Saahir, about a lost passionate love affair, can be found in the following 4 lines that he wrote for a song :

Tumhe bhi koi uljhan rokti hai peshkadmi se,
Mujhe bhi log kehte hai ki ye jalwe paraye hain,
Mere humraah bhi rusvaaiyaan hai mere maanzi ki,
Tumhare saath bhi guzari hui raaton ke saaye hai

Some beautiful collection from a friend's blog..Part2

And there have been years of poetry that has experimented in this mixing of languages. One of the best and the one of the oldest that I remember is by Amir Khusro (1253-1325). Thinking that this kind of mastery of mixing persian with Braj bhasa existed centuries back, humbles our mind (In the first verse, the first line is in Persian, the second in Brij Bhasha, the third in Persian again, and the fourth in Brij Bhasha.)

ज़ीहाल-ए मिस्कीन मकुन तघाफुल,
दुराए नैना बनाए बतियां;
की ताब-ए हिजरां नदाराम ए जान,
ना लेहो काहे लगाए छातियाँ

Which can be translated (Source : Wikipedia) as :

Do not overlook my misery
Blandishing your eyes, and weaving tales;
My patience has over-brimmed, O sweetheart
Why do you not take me to your bosom?

There are a lot of couplets like these that I admire and are timeless.And I truly belive that writing something contemporary is as difficult as such timeless pieces. The one that I like in the contemporary ones is a couplet by Javed Akhtar on the burgeoning city life :

उँची इमारतो से मकान मेरा घिर गया,
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गये

And the poets keep on writing a lot on God, on lost love, on philosophies of life, on emotions, on love and everything that they see around. Every poet has a past and has a story to tell along with. Nida Fazli whose life like that of poets like Saahir had been impacted by parition of our country writes about worshipping God in these beautiful lines :

घर से मस्जिद बहुत दूर है, चल आ यूं कर ले
किसी रोते हुए बच्चे को हास्य जाए

Nida fazli has written such beautiful verses, including the idea of innocence of kids that most of those lines have been memorable for me. For example.

बच्चों के छोटे हाथो को चाँद सितारे छू लेने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे

I remember a similar nice line from Javed Akhtar that talks of how the kids of today's world are getting smarter :

चाँद में बुढिया, बुजुर्गो में खुदा देखें
भोले इतने भी अब ये बच्चे नहीं होते

Some beautiful collection from a friend's blog..Part1

There is something very specific about poetry in Indian language that is different from its English counterparts - The art of writing poetry in couplets. A couplet that is complete in itself, in its meaning and its story and also fits in to the overall poetry made out of these beautiful couplets together. I am not thinking hard as I am typing this. I would like to go through a few of my favourite couplets as they come to my mind. I am not keeping it constrained by a theme / poet / Language. Ghazal writing - the form for which the couplets are created is a very strong form created in Urdu and the style has over the years been adopted by Hindi and Gujarati poets too. Many poets believe that Ghazal's are the most heart touching write-ups of a poet, as Mariz (A Gujarati Poet) writes :

હોઈ ઉર્દૂ ની ઓથ કે હોઈ ગુર્જરી ની ઑ મરીઝ,
ગઝલો ફકત લખાઈ છે, મોહબ્બત ની ઝબાનમા

Which can be roughly translated to :

चाहे लू उर्दू की या लू गुजराती की कसम मरीज़,
ग़ज़ले सिर्फ़ लिखी जाती है , मोहब्बत की ज़ुबान में

Monday, March 22, 2010

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिल_सिला निकले

किताब-ए-माज़ी के पन्ने उलट के देख ज़रा
ना जाने कौन सा सफ़ाह मुड़ा हुआ निकले

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले

--वसीम बरेलवी


Source : http://www.urdupoetry.com/wbarelvi05.html

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी कि मुताबिक नज़र आयें कैसे

घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे

क़ह-क़हा आँख की बरताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे

--वसीम बरेलवी

Source : http://www.urdupoetry.com/wbarelvi02.html