Saturday, October 31, 2009

बदनाम हुए हम शहर में जिसकी वजह से

बदनाम हुए हम शहर में जिसकी वजह से
उस शक़्स को कभी हुए जी भर के देखा भी नही
--अज्ञात

ਮੇਰੇ ਗਮ ਦੀ ਭਨਕ ਨਾ ਤੈਨੂ ਪੈ ਜਾਵੇ

ਮੇਰੇ ਗਮ ਦੀ ਭਨਕ ਨਾ ਤੈਨੂ ਪੈ ਜਾਵੇ
ਪੀੜ ਦਿਲ ਦੀ ਹਾਸੇ ਓਹਲੇ ਲਕੋਈ ਹੋਈ ਹੈ
--ਅਗਯਾਤ

मेरे ग़म दी भनक ना तैनू पै जावे
पीड़ दिल दी हासे ओहले लकोई होई है
--अज्ञात

कोशिश तो की थी बहुत मैने पर मुलाकात ना हुई

कोशिश तो की थी बहुत मैने पर मुलाकात ना हुई
अफ़सोस है की उन से कभी बात ना हुई

दुनिया तो खूब सो रही है होके बे खबर
मेरी बहुत दिनों से मगर रात ना हुई

चुप हो गये अश्कों को मेरे देख कर वो लोग
जो कह रहे थे इस बरस बरसात ना हुई

लिक्खी है कितनी गज़ले मेने उनकी याद में
मगर अफ़सोस तुझसे दिल की बात ना हुई

--अज्ञात

Friday, October 30, 2009

सलीक़ा हो अगर भीगी हुई आंखों को पढ़ने का फ़राज़

सलीक़ा हो अगर भीगी हुई आंखों को पढ़ने का फ़राज़
तो बहते हुए आंसू भी अकसर बात करते हैं
--अहमद फराज़

Monday, October 26, 2009

मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो

मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो
मुझे तुम कभी भी भुला ना सकोगे
ना जाने मुझे क्यूँ यक़ीं हो चला है
मेरी याद को तुम मिटा ना सकोगे

मेरी याद होगी जिधर जाओगे तुम
कभी नग़्मा बन के, कभी बन के आँसू
तड़पता मुझे हर तरफ़ पाओगे तुम
शमा जो जलायी मेरी वफ़ा ने
बुझाना भी चाहो बुझा ना सकोगे

कभी नाम बातों में आया जो मेरा
तो बेचैन हो होके दिल थाम लोगे
निगाहों पे छायेगा ग़म का अंधेरा
किसी ने जो पूछा सबब आँसुओं का
बताना भी चाहो बता ना सकोगे

--मसूर अनवर


Source : http://www.urdupoetry.com/masroor02.html

Sung by Mehendi Hasan

तेरे ख़याल से दामन बचा के देखा है

तेरे ख़याल से दामन बचा के देखा है
दिल को बहुत आज़मा के देखा है
अजब लगता है हर दिन तेरी याद के बग़ैर
हमने कुछ दिन तुम्हें भुला के देखा है

--अज्ञात

आज अश्कों का तार टूट गया

Source : http://www.urdupoetry.com/saif06.html

आज अश्कों का तार टूट गया
रिश्ता-ए-इन्तज़ार टूट गया

यूँ वो ठुकरा के चल दिये गोया
इक खिलौना था प्यार टूट गया

रोये रह-रह कर हिच_कियाँ लेकर
साज़-ए-ग़म बार बार टूट गया

आप की बेरुख़ी का शिकवा क्या
दिल था नापाइदार टूट गया

देख ली दिल ने बेसबाती-ए-गुल
फिर तिलिस्म-ए-बहार टूट गया

'सैफ़' क्या चार दिन की रन्जिश से
इतनी मुद्दत का प्यार टूट गया

--सैफ़ुद्दीन सैफ़


naapaa_idaar = weak/delicate
[besabaatii-e-gul = mortality/short life span of a flower]
[tilism-e-bahaar = (magic)spell of spring]

Sunday, October 25, 2009

हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे

हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे.

धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता
बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे

जो भी होता है, वो अच्छे के लिए होता यहाँ
इस बहाने ही तो हम, ख़ुद को दग़ा देते रहे

साथ उसके रंग, ख़ुश्बू, सुर्ख़ मुस्कानें गईं
हर खुशी को हम मगर, उसका पता देते रहे

चल न पाएगा वो तन्हा, ज़िंदगी की धूप में
उस को मुझसा, कोई मिल जाए, दुआ देते रहे

मेरे चुप होते ही, किस्सा छेड़ देते थे नया
इस तरह वो गुफ़्तगू को, सिलसिला देते रहे

पाँव में जंज़ीर थी, रस्मों-रिवाज़ों की मगर
फड़फड़ा के 'पर' ख़ुशी ख़ुद को ज़रा देते रहे

--श्रद्धा जैन

2122, 2122, 21222, 212



Source : http://bheegigazal.blogspot.com/2009/10/blog-post_25.html

Friday, October 23, 2009

मैं शायर-ए-दर्द मुझे क्यों बुलायें लोग...?

क्यों पराई आग में खुद को जलायें लोग..?
क्यों मेरे ज़ख़्मों पर मरहम लगायें लोग..?


खुद ही मैं उकता गया हूँ ज़िंदगी से अब
फिर किस मूँह से दे.न मुझको दुआयें लोग...?


डूबे हुए हैं दरिया-ए-तम्माना में सब
मुझको थामे.न या खुद को बचायें लोग..?


मैं क्या के एक आग में झुलसा हुआ गुलाब
क्यों मुझको अपने घरों में सजायें लोग..?


गुलशन में काँटों का कदरदान है कौन..?
कैसे मुझको अपने सीने से लगायें लोग...?


सज़ा करती हैं महफिलें खुशी के नगमों से
मैं शायर-ए-दर्द मुझे क्यों बुलायें लोग...?

-अज्ञात

Thursday, October 22, 2009

ਕੋਈ ਪੇਹਲੇ ਪੇਹਲੇ ਪਯਾਰ ਦਿਯਾਂ ਗਲਾਂ, ਕਿਂਝ ਸਕਦਾ ਭੁਲ ਸਜਣਾ

ਕੋਈ ਪੇਹਲੇ ਪੇਹਲੇ ਪਯਾਰ ਦਿਯਾਂ ਗਲਾਂ, ਕਿਂਝ ਸਕਦਾ ਭੁਲ ਸਜਣਾ
ਮੈਨੁ ਅਜ ਵੀ ਮਿਲਣ ਕਿਤਾਬਾਂ ਚੋਂ, ਤੇਰੇ ਵਲੋਂ ਭੇਜੇ ਫੁਲ ਸਜਣਾ

ਬੇਸ਼ਕ ਇਕ ਫੁਲ ਮੁਰਝਾਯੇ ਨੇ, ਪਰ ਮੇਹਕ ਏ ਔਨਦੀ ਯਾਦਾਂ ਚੋਂ
ਜਿਨਦਗੀ ਚੋਂ ਜਾਣ ਵਾਲੇਯੋ, ਹਾਯੇ ਤੁਸੀ ਕਯੋਂ ਨਹੀਂ ਜਾਨਦੇ ਖਵਾਬਾਂ ਚੋਂ

ਨਾ ਜੀ ਹੁਨਦਾ ਨਾ ਮਰ੍ ਹੁਨਦਾ, ਨਾ ਹੁਨਦਾ ਸਾਤੋ ਭੁਲ ਸਜਣਾ.
ਮੈਨੁ ਅਜ ਵੀ ਮਿਲਣ ਕਿਤਾਬਾਂ ਚੋਂ, ਤੇਰੇ ਵਲੋਂ ਭੇਜੇ ਫੁਲ ਸਜਣਾ

--अज्ञात


पहले पहले प्यार दियां गल्लां, किंज सकदा भुल्ल सजणा
मैनूं अज वी मिलण किताबां चों, तेरे वल्लों भेजे फुल्ल सजणा

बेशक इक फुल्ल मुरझाये ने, पर मेहक ए औंदी यादां चों
ज़िन्दगी चों जाण वालयो, हाये तुसी क्यों नहीं जान्दे ख्वाबां चों

ना जी हुन्दा ना मर हुन्दा, ना हुन्दा साथों भुल्ल सजणा
मैं आज वी मिलण किताबां चों, तेरे वल्लों भेजे फुल्ल सजणा

--अज्ञात

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं

बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी
एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं

रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने
आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं

सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने
वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं

तुम तो शायर हो 'कतील' और वो इक आम सा शख़्स
उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं

--क़तील शिफाई

क्या करें

दिल गया,तुम ने लिया हम क्या करें
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें

पुरे होंगे अपने अरमान किस तरह
शौक़ बेहद, वक़्त है कम, क्या करें

बक्ष दें प्यार की गुस्ताखियाँ
दिल ही क़ाबू में नहीं, हम क्या करें

एक सागर परे है अपनी ज़िंदगी
रफ़्ता रफ़्ता इस से भी कम क्या करें

कर चुके सब अपनी-अपनी हिकमतें
दम निकलता है आई मेरे हमदम क्या करें

मामला है आज हुस्न-ओ-इश्क़ का
देखिए वो क्या करें, हम क्या करें

--अज्ञात

मासूमियत का ये अंदाज़ भी मेरे सनम का है मोहसिन

मासूमियत का ये अंदाज़ भी मेरे सनम का है मोहसिन
उसको तसवीर में भी देखूं तो पलकें झुका लेता है
--मोहसिन

हम से तस्खीर मुक़द्दर के सितारे ना हुये

कुछ शब्दों के अर्थ मालूम नहीं कर सका, अगर आपको पता हों तो बताइयेगा ज़रूर

हम से तस्खीर मुक़द्दर के सितारे ना हुये
ज़िंदगी आप थे, और आप हमारे ना हुये

फिर बताओ के भला किस पे सितम ढाओगे
शहर-ए-उलफत में अगर दर्द के मारे ना हुये

ज़र्द आँखों से मेरी हिज्र के मोती बरसे
ये भी क्या कम है मुहब्बत में ख़ासारे ना हुये

सच तो यह है के बिना उस के गुज़ारा जीवन!
ये भी सच है के बिना उस के गुज़ारे ना हुये

इस लिए अपना मिलन हो भी नही सकता था
एक दरिया के कभी दोनो किनारे ना हुये

टूट जाते हैं सभी प्यार के रिश्ते अमजद
कच्चे धागे तो किसी के भी सहारे ना हुये

--अमजद


ज़र्द=Yellow
तस्खीर=किसी को वश में करना

Wednesday, October 21, 2009

खुद को अपनी ही बुलंदी से गिरा कर देखो

खुद को अपनी ही बुलंदी से गिरा कर देखो
तुम ज़रा उसको ये आईना दिखा कर देखो

क्या दिया है तुम्हे इस शहर ने फूलों के एवज़
अब ज़रा संग भी हाथों में उठा कर देखो

शायद आ जाए कोई लौट के जाने वाला
इक दिया आस की चौखट पे जला कर देखो

बंद आँखों में थे खुश रंग से मौसम कितने
अब जो मंज़र है निगाहों को उठा कर देखो

राह के मोड़ में लगता है अकेला कोई
कोई तुम सा ना हो नज़दीक तो जा कर देखो

रुख़ हवाओं क्या समझना है तो एक बार अमीर
फिर कोई शम्मा सर-ए-राह जला कर देखो

--अमीर कज़लबाश

तेरी महफ़िल से उठकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री

तेरी महफ़िल से उठकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री
मुख़ालिफ़ इक जहाँ था जाने बेचारों पे क्या गुज़री

सहर को रुख़्सत-ए-बीमार-ए-फ़ुर्क़त देखने वालो
किसी ने ये भी देखा रात भर तारों पे क्या गुज़री

सुना है ज़िन्दगी वीरानियों ने लूट् ली मिलकर्
न जाने ज़िन्दगी के नाज़बरदारों पे क्या गुज़री

हँसी आई तो है बेकैफ़ सी लेकिन ख़ुदा जाने
मुझे मसरूर पाकर मेरे ग़मख़्वारों पे क्या गुज़री

असीर-ए-ग़म तो जाँ देकर रिहाई पा गया लेकिन
किसी को क्या ख़बर ज़िन्दाँ की दिवारों पे क्या गुज़री

--शकील बँदायूनी

Monday, October 12, 2009

यूं तो फूल से रंगत न गयी, बू न गयी

यूं तो किस फूल से रंगत न गयी, बू न गयी
ए मोहब्बत मेरे पहलू से मगर तू न गयी
--अख्तर शिरानी


इसी गज़ल का दूसरा शेर

Sunday, October 11, 2009

ਆਜ ਦਿਨ ਹਸ਼ਰ ਦਾ, ਕਲ ਮੈਂ ਨਹੀਂ ਰੈਣਾ

ਆਜ ਦਿਨ ਹਸ਼ਰ ਦਾ, ਕਲ ਮੈਂ ਨਹੀਂ ਰੈਣਾ
ਜੇ ਲਾਈ ਯਾਰੀ ਮੁਲ ਮੋੜਨਾ ਪੈਣਾ
ਤੂ ਅਗ੍ਗੇ ਵਧਯਾ ਤੈਨੂਂ ਫਰਕ ਨਹੀਂ ਪੈਣਾ,
ਮੈਂ ਪਿਛੇ ਹਟ ਗਯਾ ਮੇਰਾ ਕਖ ਨਹੀਂ ਰੈਣਾ

ਆਜ ਦਿਨ ਹਸ਼ਰ ਦਾ, ਕਲ ਮੈਂ ਨਹੀਂ ਰੈਣਾ
ਜੇ ਲਾਈ ਯਾਰੀ ਮੁਲ ਮੋੜਨਾ ਪੈਣਾ


--Babbu maan

Full song available http://www.youtube.com/watch?v=ptDEztK4MIU&feature=related

ਯਾਢਾਂ ਨੂਂ ਤੇਰਿਯਾਂ ਅਸੀ ਪਯਾਰ ਕਰਢੇ ਹਾਂ

ਯਾਢਾਂ ਨੂਂ ਤੇਰਿਯਾਂ ਅਸੀ ਪਯਾਰ ਕਰਢੇ ਹਾਂ
ਸੌ ਜਨਮ ਵੀ ਤੇਰੇ ਤੇ ਨਿਸਾਰ ਕਰਢੇ ਹਾਂ
ਵੇਹਲ ਮਿਲੇ ਤਾਂ ਕੁਝ ਲਿਖ ਭੇਜੀਂ
ਸਿਰਫ ਇਕ ਤੇਰੇ ਹੀ ਸੁਨੇਹੇਂ ਦਾ ਇਂਤਜ਼ਾਰ ਕਰਢੇ ਹਾਂ
--ਅਗਯਾਤ


यादां नूं तेरीयां असी प्यार करदे हां
सौ जनम वी तेरे ते निसार करदे हां
वेहल मिले तां कुझ लिख भेजीं
सिर्फ़ इक तेरे ही सुनेहे दा इंतज़ार हां
--अज्ञात

ਕੁਝ ਢੂਰ ਤੂਂ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਚਲ





कुझ दूर तूं मेरे नाल चल
मैं दिल दी कहाणी कह देवांगां
समझ सकी न तू जे मेरे अखां चों
ओह गल ज़ुबानी कह देवांगां

--Sonu Rakhra Patti

Saturday, October 10, 2009

बहा के ले गया सैलाब वक़्त का उनको

बहा के ले गया सैलाब वक़्त का उनको
जो बैठे सोच रहे कि क्या किया जाये
--अज्ञात

मोहब्बत भी एक पेशा है आज कल के आशिकों का

मोहब्बत भी एक पेशा है आज कल के आशिकों का
जो दिल से करता है उसे झूठ मान लेते हैं
--अज्ञात

Wednesday, October 7, 2009

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ए ज़िन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं
--फ़िराक़ गोरखपुरी

Monday, October 5, 2009

दुख ये है के तू सच सुनने का आदि नहीं वरना

दुख ये है के तू सच सुनने का आदि नहीं वरना
ये उम्र तुझे ख्वाब दिखाने की नहीं है
--अज्ञात

दामन पे कोई छींट, न खंजर पे कोई दाग

दिन एक सितम एक सितम रात करो हो
क्या दोस्त हो दुश्मन को भी तुम मात करो हो
दामन पे कोई छींट, न खंजर पे कोई दाग़
तुम कत्ल करो हो, के करामात करो हो
--कलीम आजिज़

जब भी मांगा, वही मांगा जो मुकद्दर में ना था

जब भी मांगा, वही मांगा जो मुकद्दर में ना था
अपनी हर एक तमन्ना से शिकायत है मुझे
--अज्ञात

आते जाते हर राही से पूछ रहा हूँ बरसों से

आते जाते हर राही से पूछ रहा हूँ बरसों से

नाम हमारा ले कर तुमसे हाल किसने पूछा है

--अज्ञात

ये सोच के मैं उम्र की ऊचाईयाँ चढ़ा

ये सोच के मैं उम्र की ऊचाईयाँ चढ़ा
शायद यहाँ, शायद यहाँ, शायद यहाँ है तू

--कुंअर बेचैन

Sunday, October 4, 2009

गुज़रे दिनो की भूली हुई रात की तरह

गुज़रे दिनो की भूली हुई बात की तरह
आंखों में जगता है कोई रात की तरह
तुमसे उम्मीद थी के निभाओगे रिश्ता
तुम भी बदल गये मेरे हालात की तरह
--अज्ञात

कुछ सवाल जवाब हवाओं से…

हमने हवाओं से कहा, जा देखकर आ
मेरा यार मेरी याद में रोता होगा
वो बोली वो तेरी तरह नहीं
जो अश्कों से दामन भिगोता होगा

हमने कहा आंसू न सही,
पर होंठों पर मेरा नाम है
वो बोली तेरा यार बड़ा मसरूफ है
और उसके लिये ये फिज़ूल का काम है

हमने कहा बातों में न सही मगर
दिल में तो वो हमें याद करता होगा
वो बोली कि हर कोई दीवाना नहीं
कि तेरी तरह वक्त बर्बाद करता होगा

हमने कहा, तुम झूठे हो
ऐसी बातों से हमें बहला न पाओगे
वो बोली कि मैं एक ज़रूरत हूँ
मेरे बिना जी न पाओगे

हम बोले कि ऐसी सांसों का हम क्या करें
जिसमें प्यार का मेरे सहारा नहीं
तू न भी मिले मुझे ग़म नहीं
मगर यार के बिना जीना गवारा नहीं

--अज्ञात

अजनबी ख्वाहिशें हैं, मैं दबा भी न सकूँ

अजनबी ख्वाहिशें हैं, मैं दबा भी न सकूँ
ऐसे ज़िद्दी है परिन्दे कि उड़ा भी न सकूँ

फूंक डालूँगा किसी रोज़ ये दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं, के जला भी न सकूँ

मेरी ग़ैरत भी कोई शै है, के महफिल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है के जा भी न सकूँ

एक न एक रोज़ तो मैं ढूँढ ही लूँग तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं है, कि मैं खा भी न सकूँ

फल तो सब मेरे दरख्तों पर पके हैं लेकिन
इतनी कमज़ोर है शाखें के हिला भी न सकूँ

एक न एक रोज़ तो मैं ढूँढ ही लूँग तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं है, कि मैं खा भी न सकूँ

--अज्ञात

प्रीत किये दुख होय

अगर कहीं मैं जानती, प्रीत किये दुख होय
नगर ढिंढोरा पीटती, प्रीत न करयो कोय
--मीरा बाई

सोमवार को आंख लड़ी थी

सोमवार को आंख लड़ी थी
मंगल को बीमार हो गया
बुधवार को दिल दे बैठा
ब्रहस्पति को दीदार हो गया
शुक्रवार को वो भी हस दी
शनिवार को प्यार हो गया
पर SUNDAY की छुट्टी पड़ गयी
सब कुछ बंटा धार हो गया

--गिरिधर व्यास


गिरिधर व्यास, हास्य व्यंग के महान कवि

Saturday, October 3, 2009

तेरी महफिल से निकले

तेरी महफिल से निकले, किसी को खबर तक न हुई फराज़
तेरा मुड़ मुड़ के देखना, हमें बदनाम कर गया
--अहमद फराज़

चाहते हैं वो हर बार एक नया चाहने वाला

चाहते हैं वो हर बार एक नया चाहने वाला,
ए खुदा मुझे रोज़ इक नई सूरत दे दे
--अज्ञात

Thursday, October 1, 2009

उसके वास्ते अपना घर जला न सका

लबों पर झूठ के मोती सजाये मगर
नज़र में तैरती सच्चाईयाँ छुपा न सका
बस इतनी सी बात पर नाराज़ हो गया मुझसे
मैं जो उसके वास्ते अपना घर जला न सका !!
--अज्ञात