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Sunday, January 26, 2014

ठहरी ठहरी सी तबियत में रवानी आई

ठहरी ठहरी सी तबियत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई

आज फिर नींद को आँखों से बिछडते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई

मुद्दतों बाद चला उन पर हमारा जादू
मुदत्तो बाद हमें बात बनानी आई

मुद्दतो बाद पशेमा हुआ दरिया हमसे
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई

मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई

इतनी आसानी से मिलती नहीं फन की दौलत
ढल गयी उम्र तो गजलो पे जवानी आई

--इकबाल अशर 

उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से

उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से
वो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से

वो शखस एक ही लम्हे में टूट-फुट गया
जिसे तराश रहा था में एक ज़माने से

रुकी रुकी से नज़र आ रही है नब्ज़-इ-हयात
ये कौन उठ के गया है मरे सरहाने से

न जाने कितने चरागों को मिल गयी शोहरत
एक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से

उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे जिसके यूँ मुस्कुराने से

--इकबाल अशर

Monday, June 25, 2012

प्यास दरिया की निगाहों से छिपा रखी है

प्यास दरिया की निगाहों से छिपा रखी है
इक बादल से बड़ी आस लगा रखी है

तेरी आँखों की कशिश कैसे तुझे समझाऊं
इन चिरागों ने मेरी नींद उड़ा रखी है

तेरी बातों को छिपाना नहीं आता मुझको
तूने खुश्बू मेरे लहज़े में बसा रखी है

खुद को तन्हा ना समझो ए नये दीवानो
खाक हमने भी कई सहराओं की उड़ा रखी है

--इकबाल अशार