Sunday, September 20, 2009

दुआ नहीं तो गिला देता कोई

दुआ नहीं तो गिला देता कोई
मेरी वफ़ओं का क्या सिला देता कोई
जुब मुक़द्दर ही नहीं था अपना
देता भी तो भला क्या देता कोई

हासिल-ए-इश्क़ फ़क़त दर्द है
ए काश पहले ही बता देता कोई.
तक़दीर नहीं थी गर आसमान छूना
खाक़ में ही मिला देता कोई

बेवफा भी हुमें बेवफा कह गया
इससे ज़्यादा क्या दगा देता कोई.
गुमान ही हो जाता किसी अपने का
दामन ही पकड़ कर हिला देता कोई

अरसे से अटका है हिचकियों पे दम
अच्छा होता जो भुला देता कोई
ये तो रो रो के कट गयी 'अहसान'
क्या होता अगरचे हंसा देता कोई

--अज्ञात

तखुल्लुस देख कर लगता है कि शायर का नाम अहसान रहा होगा, अगर आप में से किसी को इस गज़ल के शायर का पूरा नाम पता तो कृपा कर के बताने का कष्ट करें

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