माना के साकी के पास जाम बहुत है
पर हमें भी दुनिया में काम बहुत है
आरज़ू, अरमान, इश्क़, तमन्ना, वफ़ा, मोहब्बत
चीज़ें तो अच्छी हैं पर दाम बहुत है
ऐसा भी है कोई जो ग़ालिब को ना जाने
शायर तो अच्छा है पर बदनाम बहुत है
--मिरज़ा ग़ालिब
मुझे ये गज़ल एक दोस्त ने भेजी थी, ग़ालिब के तखल्लुस से लगा कि मिरज़ा ग़ालिब की होनी चाहिये, इस लिये शायर का नाम मिरज़ा ग़ालिब लिख रहा हूँ। अगर ग़लत हो, तो बताईयेगा
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