उसने अंदाज़-ए-करम, उन पे वो आना दिल का
हाय वो वक़्त, वो बातें, वो ज़माना दिल का
न सुना उसने तवज्जो से फ़साना दिल का
उम्र गुजरी पर दर्द न जाना दिल का
दिल लगी, दिल की लगी बन के मिटा देती है
रोग दुश्मन को भी या रब न लगाना दिल का
वो भी अपने न हुए, दिल भी गया हाथों से
ऐसे आने से तो बेहतर है, न आना दिल का
उनकी महफ़िल में परवीन उनके तबस्सुम की अदा
हम देखते रह गए हाथ से जाना दिल का
--परवीन शकीर
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Monday, January 7, 2013
हाय वो वक़्त, वो बातें, वो ज़माना दिल का
Thursday, November 24, 2011
मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई
काँप उठती हूँ मैं सोच कर तन्हाई में
मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई
--प्रवीण शाकिर
Thursday, April 8, 2010
अब भला छोड़ कर घर क्या करते
अब भला छोड़ कर घर क्या करते
शाम के वक्त सफर क्या करते
तेरी मसरूफियतें जानते थे
अपने आने की खबर क्या करते
(मसरूफियतें : Engagements)
जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-कमर क्या करते
(शम्स-ओ-कमर : Sun And The Moon)
वो मुसाफिर ही खुली धुप का था
साये फैला के शजर क्या करते
(शजर : Tree)
ख़ाक ही अव्वल-ओ-आखिर थी
कर के ज़र्रे को गौहर क्या करते
(ख़ाक : Dust;
अव्वल-ओ-आखिर : In The Beginning And The End;
ज़र्रे : Particles;
गौहर : Jewels)
राय पहले से ही बना ली तूने
दिल में अब हम तेरे घर क्या करते
इश्क ने सारे सलीके बख्शे
हुस्न से कसब-ए-हुनर क्या करते
(सलीके : Etiquettes; Kasb-E-Hunar : ?)
--परवीन शाकिर