शोला-ए-ग़म में जल रहा है कोई
लम्हा-लम्हा पिघल रहा है कोई
शाम यूँ तीरगी में ढलती है
जैसे करवट बदल रहा है कोई
उसके वादे हैं जी लुभाने की शय
और झूठे बहल रहा है कोई
ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई
दिल की आवारगी के दिन आये
फिर से अरमाँ मचल रहा है कोई
मुझको क्योंकर हो एतबारे-वफ़ा
मेरी जाने-ग़ज़ल रहा है कोई
--मनु बेतखल्लुस
Source : http://kavita.hindyugm.com/2009/07/uske-vaade-jee-lubhane-ki-shai.html
लाजवाब गजल।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }