Sunday, July 19, 2009

करिश्मे खूब मेरा जान-निसार करता था

करिश्मे खूब मेरा जान-निसार करता था
मिला के हाथ वो पीछे से वार करता था

वो जब भी ठोकता था कील मेरे सीने में
बड़ी अदा से उसे आर-पार करता था

सितारे तोड़ के लाया नहीं कोई अब तक
कि इस फ़रेब पे वो ऐतबार करता था

उसे पता था कि जीवन सफ़ेद चादर है
ना जाने क्यूं वो उसे दागदार करता था

कुछ इस लिये भी मुझे उसकी बात चुभती थी
कि वो ज़बान का ज़्यादा सिंगार करता था

पलट के आती नहीं है कभी नदी, यारो
मैं जानता था! मगर इंतज़ार करता था

--ज्ञान प्रकाश विवेक

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