क्यों पराई आग में खुद को जलायें लोग..?
क्यों मेरे ज़ख़्मों पर मरहम लगायें लोग..?
खुद ही मैं उकता गया हूँ ज़िंदगी से अब
फिर किस मूँह से दे.न मुझको दुआयें लोग...?
डूबे हुए हैं दरिया-ए-तम्माना में सब
मुझको थामे.न या खुद को बचायें लोग..?
मैं क्या के एक आग में झुलसा हुआ गुलाब
क्यों मुझको अपने घरों में सजायें लोग..?
गुलशन में काँटों का कदरदान है कौन..?
कैसे मुझको अपने सीने से लगायें लोग...?
सज़ा करती हैं महफिलें खुशी के नगमों से
मैं शायर-ए-दर्द मुझे क्यों बुलायें लोग...?
-अज्ञात
main shayare dard mujhe kyu bulaye log waah bahut badiya
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