तुमसे मिलते ही बिछ़ड़ने के वसीले हो गए
दिल मिले तो जान के दुशमन क़बीले हो गए
आज हम बिछ़ड़े हैं तो कितने रँगीले हो गए
मेरी आँखें सुर्ख तेरे हाथ पीले हो गए
अब तेरी यादों के नशतर भी हुए जाते हैं *कुंद
हमको कितने रोज़ अपने ज़ख़्म छीले हो गए
कब की पत्थर हो चुकीं थीं मुंतज़िर आँखें मगर
छू के जब देखा तो मेरे हाथ गीले हो गए
अब कोई उम्मीद है "शाहिद" न कोई आरजू
आसरे टूटे तो जीने के वसीले हो गए
--शाहिद कबीर
Source : http://aajkeeghazal.blogspot.com/2009/07/blog-post.html
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