कौन कहता है मोहब्बत की ज़ुबाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है
वो ना आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को
वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है
रूह को शाद करे दिल को जो पुरनूर करे
हर नज़ारे में ये तंवीर कहाँ होती है
ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मोहब्बत को कहाँ तक रोके
दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है
ज़िन्दगी एक सुलगती सी चिता है "साहिर"
शोला बनती है ना ये भुज के धुआँ होती है
--साहिर होशियारपुरी
Source : http://www.urdupoetry.com/shoshiarpuri01.html
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