Saturday, November 7, 2009

सभी जज़्बात,ख्यालात बदल जाते हैं

सभी जज़्बात, ख्यालात बदल जाते हैं
यूँ मुहब्बत में ये दिन रात बदल जाते हैं

प्यार उनको भी हैं हमसे पर जाने क्यूँ
हम बात करें तो वो बात बदल जाते हैं

आरज़ू तो है के इज़हार-ए-मुहब्बत कर दूँ
लफ्ज़ चुनते हैं तो लम्हात बदल जाते हैं

कितने नफ़रत थी कभी अहल-ए-मुहब्बत से हमें
हो मुहब्बत तो ख़यालात बदल जाते हैं

एक सा वक़्त मोहब्बत में कहाँ रहता है
गर्दिश-ए-वक़्त से हालात बदल जाते हैं

--अज्ञात


अहल-ए-मोहब्बत=मोहब्बत में रहने वाले

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