Sunday, November 1, 2009

ढूँढने जिस में ज़िन्दगी निकली

ढूँढने जिस में ज़िन्दगी निकली
वो उस शख्स की गली निकली

तेरे लहज़े में क्या नहीं था
सिर्फ़ सच की ज़रा सी कमी निकली

उस हवेली में शाम ढलने पर
हर दरीचे से रौशनी निकली

वो हवा तो नही थी लड़की थी
किस लिए इतनी सिरफिरी निकली

वो तेरे आसमान का क्या करती
जिस की मिट्टी से दोस्ती निकली

--अज्ञात

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