ढूँढने जिस में ज़िन्दगी निकली
वो उस शख्स की गली निकली
तेरे लहज़े में क्या नहीं था
सिर्फ़ सच की ज़रा सी कमी निकली
उस हवेली में शाम ढलने पर
हर दरीचे से रौशनी निकली
वो हवा तो नही थी लड़की थी
किस लिए इतनी सिरफिरी निकली
वो तेरे आसमान का क्या करती
जिस की मिट्टी से दोस्ती निकली
--अज्ञात
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