Saturday, July 11, 2009

रोज़ तारों की नुमाईश में खलल पड़ता है

रोज़ तारों की नुमाईश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
उनकी याद आई है, सांसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है
--राहत इंदोरी

2 comments:

  1. waah saahab aapke blog pe aa kar to maja aa gaya...yahan to aapne itni badi-badi hastiyan ikatthi kar rakhi hain...shukriya

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  2. Shukriya Archana,

    Aap aaye, hamare blog pe. :)

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