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Sunday, March 25, 2012

के पैसे को ही क्यों,बदनाम करते हो..!

न तर्क होने के,न विचार होने के...!
दुखड़े कई है,बेरोजगार होने के...!!

प्रतिशद फैसला करे है जिंदगानी का..!
फायेदे मामूली है,होशियार होने के..!!

के पैसे को ही क्यों,बदनाम करते हो..!
मसले तो बहुत है,तकरार होने के...!

गम-ए-रोजगार से निकल कर कहा जाये..!
करे है होसले परवरदिगार होने के..!!

अपने सितारे भी क्या कमजोर हुए ''बेदिल''..!
जाते रहे मोके नाम वार होने के...!!!

बेदिल शाहपुरी

Thursday, November 5, 2009

तुम भी परेशां हम भी परेशान दिल्ली में

तुम भी परेशां हम भी परेशान दिल्ली में
हम दो ही तो दुखी है इन्सान दिल्ली में

किसी भूके को यहाँ कोई रोटी नहीं देता
दिल छोटे और बड़े है मकान दिल्ली में

रिश्ता बनता नहीं की टूट जाता है पहले
इश्क हो या दोस्ती कुछ नहीं आसान दिल्ली में

आते आते आया ख्याल ये भी तोबा की
मौत है महँगी सस्ती है जान दिल्ली में

यु तो हादसे हर रात होते है बेदिल मगर
बचते नहीं सुबह उनके निशान दिल्ली में

--दीपक बेदिल

Sunday, August 23, 2009

यहाँ के बाशिंदे बिगाड़ने चले है, तासीर मेरी

यहाँ के बाशिंदे बिगाड़ने चले है, तासीर मेरी
तुझे क्या मालूम ये महफ़िल है दोमनगीर मेरी

दिलो-दिमाग चीर के बनी है कलम तीर मेरी
ना समझो को क्या समझ आएगी तहरीर मेरी

चंद दिनों में इन दरख्तों से पत्ते टूटने वाले है
इस महफ़िल में कैसे बन पाएगी तकदीर मेरी

मै उसको छोड़कर इस बज्म में आया करता हूँ
कितना तड़पती है एजाज-ए-बेदिल हीर मेरी

वो कुछ बोलते तो क्या बोलते, कुछ ना बोलते
उन्होंने चुप रह कर ही करदी है तहकीर मेरी

मेरी लियाक़त अभी, खुदा को भी नहीं मालूम
आसमान मेरी छत और जमीन है जागीर मेरी

जबान का नहीं कलम इस्तेमाल करू हूँ अत्फाल
नजर ऊची कर बेदिल अब होनी है ताबीर मेरी


१. तहकीर - insult
२. लियाक़त - ability
३. अत्फाल - baby
४. ताबीर - interpretation
५. दोमनगीर - dependent

Deepak "bedil"...

ना है सारे शहर में दीवाना मुझसा

ना है सारे शहर में दीवाना मुझसा
जल्द ही हो जायेगा जमाना मुझसा

तुम ख़ुशी, ख़ुशी की दवा लिखते हो
तब भी ना आएगा मुस्कुराना मुझसा

शेर-शायरी में हाथ-पैर मारने वालो
कभी तो सुनाया करो फ़साना मुझसा

मै नही एक पंहुचा हुआ रिंद तो क्या
तू कुछ हो तो सजा मयखाना मुझसा

नए ख़याल नए विचार ला दे दे मुझे
दुनिया याद करेगी, अफसाना मुझसा

उन आशिको का इश्क बयान करता हूँ
जो चाहते है ख़ुशी और याराना मुझसा

बेदिल राजा है सारे दिल्ली शहर का
हर महफ़िल में करो आना-जाना मुझसा

--दीपक बेदिल

Sunday, June 21, 2009

मेरी इन गज़लों को उठा कर संभाल कर फेकना

मेरी इन गज़लों को उठा कर संभाल कर फेकना
महफ़िल-ए-यार में ना दिल उछाल कर फेकना

इश्क-ओ- आबरू-ओ- शर्म-ओ- हया गजब है
नफरत को ए साहब दिल से निकाल कर फेकना

हस्ती जब तलक इस मैदान-ए-गुलसिता में मेरी
रहगी फ़ितरत यारो इश्क को बेहाल कर फेकना

ये हुआ की जाट साहब सिर्फ चंद बाते कह पाए
की यारो को मोहब्बत में माला-माल कर फेकना

"बेदिल" के कारनामे दिल्ली में मशहूर हो चले है
मुझे दिल से फेकना दोस्त मगर ख्याल कर फेकना

--दीपक 'बेदिल'