Saturday, July 25, 2009

टूट जाने तलक गिरा मुझको

टूट जाने तलक गिरा मुझको
कैसी मिट्टी का हूं बता मुझको

मेरी खुश्बू भी मर ना जाये कहीं
मेरी जद से ना कर जुदा मुझको

घर मेरे हाथ बाँध देता है
वरना मैदान में देखना मुझको

अक़्ल कोई सज़ा है या इनाम
बड़ा सोचना पड़ा मुझको

हुस्न क्या चन्द रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको

देख भगवे लिबास का जादू
सब समझते हैं पारसा मुझको

कोई मेरा मरज़ तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको

मेरी ताकत ना जिस जगह पहुँची
उस जगह प्यार ले गया मुझको

ज़िन्दगी से नहीं निभा पाया
बस यही एक ग़म रहा मुझको

--हस्ती मल हस्ती

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