लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में
कितना है बद_नसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी ना मिली कू-ए-यार में
कू-ए-यार=यार की गली
--बहादुर शाह ज़फर
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Saturday, December 5, 2009
Sunday, March 29, 2009
इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग्दार में
--बहादुर शाह ज़फ़र
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग्दार में
--बहादुर शाह ज़फ़र
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