जागती रात के होंटों पे फ़साने जैसे
एक पल में सिमट आयें हों ज़माने जैसे
अक्ल कहती है भुला दो जो नहीं मिल पाया
दिल वो पागल के कोई बात न माने जैसे
रास्ते में वही मंज़र हैं पुराने अब तक
बस कमी है तो नहीं लोग पुराने जैसे
आइना देख के एहसास यही होता है
ले गया वक़्त हो उम्रों के खजाने जैसे
रात की आँख से टपका हुआ आंसू वसी
मखमली घास पे मोती के हों दाने जैसे
--वसी शाह
If you know, the author of any of the posts here which is posted as Anonymous.
Please let me know along with the source if possible.
Showing posts with label Wasi Shah. Show all posts
Showing posts with label Wasi Shah. Show all posts
Wednesday, December 7, 2011
दिल वो पागल के कोई बात न माने जैसे
Sunday, November 20, 2011
उसकी आदत है, वो अपनों को भुला देता है
जाने किस चीज़ की वो मुझको सज़ा देता है
मेरी हँसती हुई आँखों को रुला देता है
किसी तरह बात लिखूं दिल की उससे, वो अक्सर
दोस्तों को मेरे खत पढ़ के सुना देता है
सामने रख के निगाहों के वो तस्वीर मेरी
अपने कमरे के चरागों को बुझा देता है
मुद्दतों से तो खबर भी नहीं भेजी उसने
उसकी आदत है, वो अपनों को भुला देता है
--वसी शाह
Sunday, September 4, 2011
चैन लेने नहीं देते ये किसी तौर मुझे
चैन लेने नहीं देते ये किसी तौर मुझे
तेरी यादों ने जो तूफ़ान उठा रखा है
--वसी शाह
Subscribe to:
Posts (Atom)