अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है
लैला मजनूँ के मिसालों पे हँसी आती है
जब भी तक़मील-ए-मोहब्बत का ख़याल आता है
मुझको अपने ख़यालों पे हँसी आती है
[तक़मील=completion]
लोग अपने लिये औरों में वफ़ा ढूँढते हैं
उन वफ़ा ढूँढने वालों पे हँसी आती है
देखनेवालों तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हे तो देखने वालों पे हँसी आती है
[तबस्सुम=smile]
चाँदनी रात मोहब्बत में हसीन थी ‘फ़ाकिर’
अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है
--सुदर्शन फाकिर
Source : http://www.urdupoetry.com/faakir23.html
चाँदनी रात मोहब्बत में हसीन थी ‘फ़ाकिर’
ReplyDeleteअब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है
wah !