Showing posts with label amol saroj. Show all posts
Showing posts with label amol saroj. Show all posts

Thursday, October 22, 2015

न मुल्क न शहर न ये घर अपना

न मुल्क न शहर ना ये घर अपना
दिल से जाता नहीं है ये डर अपना

बर्फ पे नीले पड़े जिस्म उन नौनिहालो के
सांप भी रो पड़ते जिन्हें देते ज़हर अपना

कैस अब होते तो कहाँ बसर करते
सहरा में बसा है किसी का शहर अपना

रक़ाबत अपने बस का रोग न था
रकीब से कैसे बचाता मैं घर अपना

अमोल सरोज