अपना हिस्सा शुमार करता था
मुझसे इतना वो प्यार करता था
वो बनाता था मेरी तस्वीरें
उनसे बातें हज़ार करता था
मेरा दुख भी खुलूस-ए-नीयत से
अपना दुख शुमार करता था
पहले रखता था फूल रासते में
फिर मेरा इंतज़ार करता था
आज पहलू में वो नहीं फराज़
जो मुझ पे जान निसार करता था
--अहमद फराज़
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