Friday, October 29, 2010

कहाँ हम कहाँ ये इनायत तुम्हारी

मिली हर कदम पर रफाकत तुम्हारी
कहाँ हम कहाँ ये इनायत तुम्हारी

हमें चाहिए तो बस तालुक तुम्हारा
मोहब्बत मिले या अदावत तुम्हारी

किसी से भी मिलना उसे जीत लेना
बड़ी दिल नशीं है ये आदत तुम्हारी

हम है जिंदगी के किन रास्तों पर
हमेशा रहेगी ज़रूरत तुम्हारी

--अज्ञात

Monday, October 25, 2010

रात बिस्तर पे अब चुपचाप जगी रहती है

रात बिस्तर पे अब चुपचाप जगी रहती है,
खुश है चेहरे से पर दिल से बुझी रहती है.

सुर्ख़ आँखों की वजह ना मानियेगा पैमाने,
जागता मैं भी हूँ ये यादों से सजी रहती है.

सर्द आहों में खुदा उफ़ होता है हुनर कैसा,
नव्ज़ जम जाती है औ सांस जली रहती है.

मैं चिराग ढूंढने निकला हूँ, अँधेरे का मारा,
आज-कल उनकी गली, तारों भरी रहती है.

न हुस्न चाहिए, चाहत थी, महज़ दिल की,
इश्क की नज़र ये भला कहाँ भली रहती है.

देखकर चेहरा मेरा, न पालिये ग़लतफ़हमी,
कितना घुटता हूँ जब चेहरे पे हँसी रहती है.

यूँ तो हर दर पे है खुदा जारी तिजारत तेरी,
दुआ से फिर भी आदि' आस लगी रहती है.


--आदित्य उपाध्याय

Sunday, October 24, 2010

नादान है वो कितना कुछ समझता ही नही है फ़राज

नादान है वो कितना कुछ समझता ही नही है फ़राज

सीने से लगा के पूछता है कि धडकन तेज क्यो है ?

--अहमद फराज़

Saturday, October 23, 2010

कभी चाहत भरे दिन रात अच्छे नहीं लगते

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एक छोटा सा दिल क्या दुखा हर बात कह गए

मुझे पता न था कि आप तराने छोड़ दिए
एक छोटी सी बात पर ये अफ़साने छोड़ दिए
एक छोटा सा दिल क्या दुखा हर बात कह गए
अरे यहाँ कितनो ने रिश्तों के घराने छोड़ दिए
--अज्ञात

बिछड़ना उसकी ख्वाहिश थी न मेरी आरजू लेकिन

बिछड़ना उसकी ख्वाहिश थी न मेरी आरजू लेकिन
जरा सी हिचक ने...ये कारनामा कराया है
 --अज्ञात

मुझसे होती नहीं तेरी बात सबके सामने.

क्या करूँ ज़िक्र-ऐ-ज़ज्बात सबके सामने,
मुझसे होती नहीं तेरी बात सबके सामने.

ये तनहाई मुझे मेरी याद दिला देती है,
होती नहीं खुद से मुलाक़ात सबके सामने....

--अज्ञात 

Friday, October 22, 2010

बात वो कब की भुला दी हमने

अब के यूं दिल को सज़ा दी हमने
उसकी हर बात भुला दी हमने

एक एक फूल बहुत याद आया
शाख-ए-गुल जब वो जला दी हमने

आज तक जिस पे वो शर्माते हैं
बात वो कब की भुला दी हमने

शहर-ए-जहां राख से आबाद हुआ
आअज जब दिल की बुझा दी हमने

आज फिर याद बहुत आया वो
आज फिर उसको दुआ दी हमने

कोई तो बात है उस में
हर ख़ुशी जिस पे लुटा दी हमने

--फैज़ अहमद फैज़

Thursday, October 21, 2010

क्या करते

किसी को अपना करीबी शुमार क्या करते
वो झूठ बोलते थे, ऐतबार क्या करते

पलट के लौटने में पीठ पर लगा चाकू
वो गिर गया था, तो फिर उस पे वार क्या करते

गुजारनी ही पड़ी सांसें पतझड़ों के बीच
जो तू ही नहीं था, तो जान-ए-बहार क्या करते

दिए जलाना मोहब्बत के, अपना मज़हब है
हम जैसे लोग अँधेरे शुमार क्या करते

ख़याल ही नहीं आया, है ज़ख्म ज़ख्म बदन
जो चाहते थे तुझे, खुद से प्यार क्या करते

मिजाज़ अपना है, तूफ़ान को जीतना लड़ कर
उतर गया था, वो दरिया तो क्या करते

कुछ एक दिन में गज़ल से लड़ा ली आँखें
तमाम उम्र तेरा इंतज़ार क्या करते

--तुफैल चतुर्वेदी

Sunday, October 17, 2010

यूं बड़ी देर से पैमाना लिए बैठा हूँ

यूं बड़ी देर से पैमाना लिए बैठा हूँ
कोई देखे तो ये समझे के पिए बैठा हूँ
जिंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले
मैं अभी तक तेरी तस्वीर लिए बैठा हूँ

--अल्ताफ राजा

Album : tum to thehre pardesi
Audio : http://smashits.com/tum-to-thehre-pardesi-altaaf-raja/songs-827.html#

उसके अपने उसूल भी होंगे

फूल के साथ साथ गुलशन में
सोचता हूँ बबूल भी होंगे
क्या हुआ उसने बेवफाई की
उसके अपने उसूल भी होंगे

--अल्ताफ राजा

Album : तुम तो ठहरे परदेसी
Audio : http://smashits.com/tum-to-thehre-pardesi-altaaf-raja/songs-827.html#

तेरा चेहरा और गुलाब हुआ

जब हिज्र के शहर में धूप उतरी
मैं जाग पड़ा तो ख़्वाब हुआ
मेरी सोच खिज़ां की शाख बनी
तेरा चेहरा और गुलाब हुआ

बर्फीली रुत की तेज हवा
क्यूँ झील में कंकड़ फेंक गयी
एक आँख की नींद हराम हुई
एक चाँद का अक्स खराब हुआ

भरे शहर में एक ही चेहरा था
जिसे आज भी गलियां ढूँढती हैं
किसी सुबह उस की धूप हुई
किसी शाम वोही माहताब हुआ

तेरे हिज्र में ज़ेहन पिघलता है
तेरे कुरब में आँखें जलती हैं
तेरा खोना एक क़यामत था,
तेरा मिलना और अज़ाब हुआ

बड़ी उम्र के बाद इन आँखों में
एक अब्र उतरा तेरी यादों का
मेरे दिल की ज़मीन आबाद हुई,
मेरे मन का नगर शादाब हुआ

कभी वस्ल में मोहसिन दिल टूटा
कभी हिज्र कि रुत ने लाज रखी
किसी जिस्म में आँखें खो बैठे
कोई चेहरा खुली किताब हुआ

--मोहसिन

Saturday, October 16, 2010

मुझे मालूम नहीं हुस्न की तारीफ फराज़

मुझे मालूम नहीं हुस्न की तारीफ फराज़
मेरे नज़दीक तो हुस्न वो है, जो तुम जैसा है

--अहमद फ़राज़

Friday, October 15, 2010

अब तू ही बता तुझे अपनी जान कैसे दूं

रोती हुई आँखों से तुझे मुस्कान कैसे दूं
अनजान हूँ खुद तुझे पहचान कैसे दूं
मेरे लिए मेरी जान तू ही है
अब तू ही बता तुझे अपनी जान कैसे दूं

--अज्ञात

क्यूँ के सारी दुनिया तो बेवफा नहीं होती

रूठना, खफा रहना, ये वफ़ा नहीं होती
चाहतों में लोगों से क्या खता नहीं होती

सब को एक जैसा क्यों तुम समझने लगते हो
क्यूँ के सारी दुनिया तो बेवफा नहीं होती

हर किसी से यारी, हर किसी से वादे
प्यार करने वालों में ये अदा नहीं होती

बेनकाब चेहरे भी एक हिजाब रखते हैं
सिर्फ सात पर्दों में तो हया नहीं होती

--अज्ञात

जिसका जी चाहे हमें तोड़ के टुकड़े कर दे

रात दिन हिज्र की वेहशत भी नहीं रखनी है
किसी से अब इतनी मोहब्बत भी नहीं रखनी है

जिसका जी चाहे हमें तोड़ के टुकड़े कर दे
इस कदर नरम तबीयत भी नहीं रखनी है

एक दो साल के रिश्तों से हमें क्या हासिल
एक दो पल कि रफाकत भी नहीं रखनी है

जिनसे बिछड़े तो सँभालने में ज़माने लग जाएँ
ऐसे लोगो से मुरव्वत भी नहीं रखनी है

क्या अजब हाल है चाहत के तलबगारों का
शौक बिकने का है और कीमत भी नहीं रखनी है

--अज्ञात


Thursday, October 14, 2010

तुम मुकद्दर का लिखा कहते हो

अब देखते हैं हम दोनों कैसे जुदा हो पायेंगे 
तुम मुकद्दर का लिखा कहते हो हम अपनी दुआ को आजमाएंगे 
--अज्ञात

Wednesday, October 13, 2010

देख कर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है
एक नज़र मेरी तरफ देख तेरा जाता क्या है

मेरी रुसवाइयों में तू भी है बराबर का शरीक
मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है

पास रहकर भी न पहचान सका तू मुझको
दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है

उम्र भर अपने गिरेबान से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है

मैं तो तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता
देख कर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है

--शज़द अहमद

गिर जायें ज़मीन पर तो संभाले नहीं जाते

गिर जायें ज़मीन पर तो संभाले नहीं जाते
बाज़ार में दुख दर्द उछाले नहीं जाते

आंखों से निकलते हो मगर ध्यान में रहना
तुम ऐसे कभी दिल से निकाले नहीं जाते

मुझसे इन आँखों की हिफाज़त नहीं होती
अब मुझसे तेरे ख़्वाब संभाले नहीं जाते

जाते नहीं हम सेहराओं में अब इश्क़-ए-गिरफ्ता
जब तक दिल-ए-मजनू की दुआ ले नहीं जाते

जंगल के ये पौधे हैं इसे छोड़ दो मोहसिन
ग़म आप जवान होते हैं पाले नहीं जाते

--मोहसिन नकवी

मौत भी कम खूबसूरत तो नहीं होगी

मौत भी कम खूबसूरत तो नहीं होगी
जो इसको देखता है जिंदगानी छोड़ जाता है

--अज्ञात

कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब

कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये
--फैज अहमद फैज

Tuesday, October 12, 2010

कई दर्दों को अब दिल में जगह में जगह मिल जायेगी

कईं दर्दों को अब दिल में जगह मिल जायेगी
वो गया कुछ जगह खाली इतनी छोड़ कर

--अज्ञात

Saturday, October 9, 2010

ਦੁਖ ਤਾ ਬਥੇਰੇ ਪਰ ਦਸਣੇ ਨੀ ਯਾਰ ਨੂੰ

ਦੁਖ ਤਾ ਬਥੇਰੇ ਪਰ ਦਸਣੇ ਨੀ ਯਾਰ ਨੂੰ
ਆਪੇ ਯਾਦ ਆਜੁ ਕਦੀ ਸੋਹਨੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ
ਜੇ ਓਹਦੇ ਕੋਲ ਸਮਾ ਨਈ ਆਏ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਬੇਹਨ ਦਾ
ਸਾਨੂ ਵੀ ਨਹੀ ਸ਼ੌਂਕ ਦੁਖ ਪਥਰਾਂ ਨੂ ਕੇਹਨ ਦਾ
ਲੱਗੀ ਰਹੇ ਰੌਨਕ ਓਹਦੇ ਸੁਖਾਂ ਦੇ ਬਾਜ਼ਾਰ ਨੂੰ
ਦੁਖ ਤਾ ਬਥੇਰੇ ਪਰ ਦਸਣੇ ਨੀ ਯਾਰ ਨੂੰ

--Unknown

माना के हर एक की जिंदगी में गम आते हैं मगर

माना के हर एक की जिंदगी में गम आते हैं मगर
जितने गम मुझे मिले उतनी मेरी उम्र न थी.

--अज्ञात

अपनों ने लगाई चोट तो थोड़ा परेशान से रहे...

हम उनकी ज़िन्दगी में सदा अंजान से रहे,
और वो हमारे दिल में कितनी शान से रहे.....

ज़ख्म गैरों के तो बेअसर थे हमारी हस्ती पर,
अपनों ने लगाई चोट तो थोड़ा परेशान से रहे.....

चालाकियां ज़माने की देखा किये सहा किये,
उम्र भर लेकिन वही सादा-दिल इंसान से रहे.....

गरजमंद थे हम किस मुंह से शिकायत करते,
उलटे खफा हमेशा अपने दिल ऐ नादान से रहे..

--हरजीत सिंह (विशेष)

किस क़दर हमसे है खफा कोई

कोई पैगाम न दुआ कोई
किस क़दर हमसे है खफा कोई
उसने रखा मेरी वफ़ा का हिसाब
इस क़दर हो न बेवफा कोई
मैंने उम्मीद को खुदा जाना
है मेरे सब्र की सजा कोई

--अज्ञात

अब सुन के तेरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ

खाली है अभी जाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ,...
ऐ गर्दिश-इ-आयाम मैं कुछ सोच रहा हूँ,...
पहले बड़ा लगाव था तेरे नाम से मुझको,...
अब सुन के तेरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ...

--अज्ञात

उसने लौटा तो दी किताब मेरी

हर बशर बुझा बुझा क्यूँ है
कारवां मोड़ पर रुका रुका क्यूँ है

लिखते लिखते ज़रूर रोया है कोई
खत का मज़मून मिटा मिटा क्यूँ है

उसने लौटा तो दी किताब मेरी
एक पन्ना मगर मुड़ा मुड़ा क्यूँ है

--अज्ञात

Sunday, October 3, 2010

अफवाह किसी ने फैलाई थी तेरे शहर में होने की

अफवाह किसी ने फैलाई थी तेरे शहर में होने की,
मैं हर एक दर पर मुकद्दर आज़माता रहा..

--अज्ञात