मुद्दआ वयान हो गया
सर लहू-लुहान हो गया।
कै़द से रिहाई क्या मिली
तंग आसमान हो गया।
तेरे सिर्फ़ इक वयान से
कोई बेजुबान हो गया।
छिन गया लो कागज़े-हयात
ख़त्म इम्तिहान हो गया।
रख गया गुलाब क़ब्र पर
कौन कद्रदान हो गया।
--दिक्षीत दनकौरी
Source : http://aajkeeghazal.blogspot.com/2009/08/blog-post_22.html
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