वो कहां जाता किसे कोई सफ़ाई देता
अपने आगे जिसे कुछ भी ना दिखाई देता
वो कोई जज़्बा समझने ही को तैयार नहीं
मैं कहां तक उसे रिश्तों की दुहाई देता
एक अनदेखे सफ़र पर ही निकलना होगा
प्यार में रास्ता होता तो दिखाई देता
घर से निकला हूं कि दिन जीत के अब लौटूँगा
रात आती तो यही ख्वाब दिखाई देता
किस तरह घर के बडे शहर जलाने निकले
काश बच्चों को ये मंज़र ना दिखाई देता
तुझसे हट कर मैं किसे देखता तेरे जैसा
कोई अन्दाज़ किसी में तो दिखाई देता
रौशनी देगा मेरे घर को कहां ऐसा चिराग़
तेरे चेहरे की बदौलत जो दिखाई देता
वसीम बरेलवी
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