अब तेरी याद से वेहशत नहीं होती मुझको
ज़ख्म खुलते हैं, अजीयत नहीं होती मुझको
अब कोई आये, चला जाए, मैं खुश रहता हूँ
अब किसी शक्स की आदत नहीं होती मुझको
ऐसा बदला हूँ, तेरे शहर का पानी पी कर
झूठ बोलूँ तो नदामत नहीं होती मुझको
है अमानत में खयानत, सो किसी की खातिर
कोई मरता है तो हैरत नहीं होती मुझको
इतना मसरूफ हूँ जीने की हवस में मोहसिन
सांस लेने की भी फुरसत नहीं होती मुझको
--मोहसिन नकवी
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Sunday, August 14, 2011
अब किसी शक्स की आदत नहीं होती मुझको
Monday, May 16, 2011
Sunday, October 17, 2010
तेरा चेहरा और गुलाब हुआ
जब हिज्र के शहर में धूप उतरी
मैं जाग पड़ा तो ख़्वाब हुआ
मेरी सोच खिज़ां की शाख बनी
तेरा चेहरा और गुलाब हुआ
बर्फीली रुत की तेज हवा
क्यूँ झील में कंकड़ फेंक गयी
एक आँख की नींद हराम हुई
एक चाँद का अक्स खराब हुआ
भरे शहर में एक ही चेहरा था
जिसे आज भी गलियां ढूँढती हैं
किसी सुबह उस की धूप हुई
किसी शाम वोही माहताब हुआ
तेरे हिज्र में ज़ेहन पिघलता है
तेरे कुरब में आँखें जलती हैं
तेरा खोना एक क़यामत था,
तेरा मिलना और अज़ाब हुआ
बड़ी उम्र के बाद इन आँखों में
एक अब्र उतरा तेरी यादों का
मेरे दिल की ज़मीन आबाद हुई,
मेरे मन का नगर शादाब हुआ
कभी वस्ल में मोहसिन दिल टूटा
कभी हिज्र कि रुत ने लाज रखी
किसी जिस्म में आँखें खो बैठे
कोई चेहरा खुली किताब हुआ
--मोहसिन
Wednesday, October 13, 2010
गिर जायें ज़मीन पर तो संभाले नहीं जाते
गिर जायें ज़मीन पर तो संभाले नहीं जाते
बाज़ार में दुख दर्द उछाले नहीं जाते
आंखों से निकलते हो मगर ध्यान में रहना
तुम ऐसे कभी दिल से निकाले नहीं जाते
मुझसे इन आँखों की हिफाज़त नहीं होती
अब मुझसे तेरे ख़्वाब संभाले नहीं जाते
जाते नहीं हम सेहराओं में अब इश्क़-ए-गिरफ्ता
जब तक दिल-ए-मजनू की दुआ ले नहीं जाते
जंगल के ये पौधे हैं इसे छोड़ दो मोहसिन
ग़म आप जवान होते हैं पाले नहीं जाते
--मोहसिन नकवी
Monday, July 26, 2010
पलकों पे रुकी बूँद भी रोने को बहुत है
पलकों पे रुकी बूँद भी रोने को बहुत है
एक अश्क भी दामन के भिगोने को बहुत है
ये वाक्या है, दिल में मेरे तेरी मुहब्बत
होने को बहुत कम है, ना होने को बहुत है
फिर क्या उसी तारीख़ को दोहराओगे कातिल
नेज़े पे मेरा सर ही पिरोने को बहुत है
[नेज़ा = भाला]
हर शाख पे उतरेंगे समर दुश्मनियों के
नफरत का बस इक बीज ही बोने को बहुत है
[समर = Fruit]
किस तरह से बातिन पे चढ़ी मैल उतारें
जो ज़ख्म बदन पर है, वो धोने को बहुत हैं
--मोहसिन नकवी
Source : http://forum.urduworld.com/f152/palkon-pe-ruki-boond-286058/
Saturday, June 12, 2010
अपना क्या है सारे शहर का, इक जैसा नुकसान हुआ
जब से उसने शहर को छोड़ा , हर रास्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का, इक जैसा नुकसान हुआ
--मोहसिन नकवी
Sunday, December 6, 2009
है याद मुलाक़ात की वो शाम अभी तक
मैं तुझको भुलाने में हूँ नाकाम अभी तक
आ तुझको दिखाऊँ तेरे बाद ए सितमगर
वीरान पड़ा है दर-ओ-बाम अभी तक
गर तर्क-ए-ताल्लुक को हुआ एक ज़माना
होंटों पे मचलता है तेरा नाम अभी तक
तर्क-ए-ताल्लुक=रिश्ता तोड़ना
महसूस ये होता है के वो हम से खफा हैं
क्या तर्क-ए-मोहब्बत का है इल्ज़ाम अभी तक
मैंखाने में भूले से चले आये हैं मोहसिन
एहबाब की नज़रों में है बदनाम अभी तक
--मोहसिन नक़वी
Thursday, October 22, 2009
मासूमियत का ये अंदाज़ भी मेरे सनम का है मोहसिन
उसको तसवीर में भी देखूं तो पलकें झुका लेता है
--मोहसिन
Saturday, May 9, 2009
उसका मिलना ही मुकद्दर में नहीं था
वरना क्या क्या नहीं खोया उसे पाने के लिये
--मोहसिन नक़वी