Tuesday, July 12, 2016

दायरा हर बार बनाता हूँ ज़िन्दगी के लिए

दायरा हर बार बनाता हूं ज़िदगी के लिए
लकीरें वहीं रहती है, मैं खिसक जाता हूं

Monday, July 11, 2016

तज़ुर्बा दोबारा कर लूं

तज़ुर्बा कहता है मोहब्बत से किनारा कर लूँ
और दिल कहता है ये तज़ुर्बा दोबारा कर लूँ

Sunday, July 3, 2016

मैं बादशाह था सबको बताता रहता हूँ

तअल्लुका़त की क़ीमत चुकाता रहता हूँ
मैं उसके झूठ पे भी मुस्कुराता रहता हूँ

मगर ग़रीब की बातों को कौन सुनता है
मैं बादशाह था सबको बताता रहता हूँ

ये और बात कि तनहाइयों में रोता हूँ
मगर मैं बच्चों को अपने हँसाता रहता हूँ

तमाम कोशिशें करता हूँ जीत जाने की
मैं दुशमनों को भी घर पे बुलाता रहता हूँ

ये रोज़-रोज़ की *अहबाब से मुलाक़ातें
मैं आप क़ीमते अपनी गिराता रहता हूँ

हसीब सोज़