Source : http://www.urdupoetry.com/saif06.html
आज अश्कों का तार टूट गया
रिश्ता-ए-इन्तज़ार टूट गया
यूँ वो ठुकरा के चल दिये गोया
इक खिलौना था प्यार टूट गया
रोये रह-रह कर हिच_कियाँ लेकर
साज़-ए-ग़म बार बार टूट गया
आप की बेरुख़ी का शिकवा क्या
दिल था नापाइदार टूट गया
देख ली दिल ने बेसबाती-ए-गुल
फिर तिलिस्म-ए-बहार टूट गया
'सैफ़' क्या चार दिन की रन्जिश से
इतनी मुद्दत का प्यार टूट गया
--सैफ़ुद्दीन सैफ़
naapaa_idaar = weak/delicate
[besabaatii-e-gul = mortality/short life span of a flower]
[tilism-e-bahaar = (magic)spell of spring]
No comments:
Post a Comment