Sunday, July 12, 2009

मेरा दिल चाहता है कि वीराना कह दूँ,

मेरा दिल चाहता है कि वीराना कह दूँ,
मैं इस एक पल को कैसे ज़माना कह दूँ,

सब लोग हँसते हैं पर दिल नही हँसता,
इस जमघट को कैसे दोस्ताना कह दूँ।

माना की तूने मुझे दिया है बहुत कुछ,
पर तू ही बता कैसे खैरात को नजराना कह दूँ।

जानता हूँ के कई लोग ख़ुद को शम्मा कहते हैं,
मेरा जिगर नही की मैं ख़ुद को परवाना कह दूँ।

तू चाहे की मेरे घर को मैं ताजमहल कहूँ,
मैं तो फकीर हूँ तू बता कैसे अमीराना कह दूँ।

मैं तो घर को घर ही कहता रहूँगा सदा,
मुमकिन नही बेकस कि शराबखाना कह दूँ।

--अज्ञात


Source : http://bsbekas.blogspot.com/2008/08/blog-post_4590.html

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