Wednesday, November 30, 2011

ऐसा नहीं के हम को मोहब्बत नहीं मिली

ऐसा नहीं के हम को मोहब्बत नहीं मिली
हाँ जैसे चाहते थे वो कुरबत नहीं मिली

मिलने को ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिले
लेकिन तबीयत से तबीयत नहीं मिली

चेहरों के हर हुजूम में हम ढूँढ़ते रहे
सूरत नहीं मिली, कहीं सीरत नहीं मिली

वो यक-ब-यक मिला तो बहुत देर तक हमें
अलफ़ाज़ ढूँढने की भी मोहलत नहीं मिली

उसको गिला रहा के तवज्जो न दी उसे
लेकिन हमें खुद अपनी रफाक़त नहीं मिली

हर शक्स ज़िंदगी में बहुत देर से मिला
कोई भी चीज़ हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं मिली

तुम ने तो कह दिया के मोहब्बत नहीं मिली
मुझको तो ये भी कहने की मोहलत नहीं मिली

--अज्ञात

Saturday, November 26, 2011

मुद्दत के बाद देखा उसे, बदला हुआ था वो

मुद्दत के बाद देखा उसे, बदला हुआ था वो
न जाने क्या हादसा हुआ, सहमा हुआ था वो

मुझे देख कर उसने चेहरा तो छुपा लिया
मगर आँखें बता रही थी के रोया हुआ था वो

उसकी आँखों में देख कर महसूस हुआ मुझे
मेरी तरह किसी सोच में डूबा हुआ था वो

उसकी सोने जैसी रंगत ज़र्द पड़ गयी थी
जैसे किसी के प्यार में जला हुआ था वो

कुर्बान जाऊ उस शक्स पर मैं
याद में जिसकी कोह्या हुआ था वो

--अज्ञात

Thursday, November 24, 2011

मैं गुम रहती हूँ उसकी यादों के मेले में

मैं गुम रहती हूँ उसकी यादों के मेले में

उसे दिल से भुलाना है, मगर फुरसत नहीं मिलती

--अज्ञात

वो कहता था, बिछडूगा तो मर जाऊँगा

उसका दावा भी उसकी तरह झूठा निकला
वो कहता था, बिछडूगा तो मर जाऊँगा

--अज्ञात

मायूस कैदियों की तरह

जीने को तो जी रहे हैं उन के बगैर भी लेकिन
सजा-ए-मौत के मायूस कैदियों की तरह

--अज्ञात

मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई

काँप उठती हूँ मैं सोच कर तन्हाई में
मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई

--प्रवीण शाकिर

मानो मेरी बात, ज़माना ठीक नहीं

सबको दिल का हाल सुनाना ठीक नहीं
मानो मेरी बात, ज़माना ठीक नहीं

अपना तो जनमों का नाता है जानम
लोगों की बातों में आना ठीक नहीं

इज्ज़त से खाओ तो रोटी रोटी है,
ज़िल्लत का ये आब-ओ-दाना ठीक नहीं
[आब-ओ-दाना=Water and food]

लपटें तेरे घर तक भी तो आयेंगी
मेरे घर को आग लगाना ठीक नहीं

उससे कहो सजदे नामरहम होते हैं
वक्त-ए-दुआ यादों में आना ठीक नहीं
[नामरहम=impure]

दिल को मेरे ज़ख्मों से छलनी करके
वो कहते हैं यार निशाना ठीक नहीं

जितना पीयो उतनी प्यास बढ़ाता है
साकी तेरा ये पैमाना ठीक नहीं

हर इक दर्द गम-ए-जाना से हल्का है,
दुनिया वालों का गम-खाना ठीक नहीं
[गम-खाना =house of sorrows]

छोडो यारा दर्द के किस्से, उसकी बात,
उसको कलम की नोक पे लाना ठीक नहीं

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Wednesday, November 23, 2011

ऐसी भी तो किसी से मोहब्बत कभी ना हो

क्या ये भी ज़िन्दगी है कि राहत कभी ना हो
ऐसी भी तो किसी से मोहब्बत कभी ना हो

[raahat=relief (from)]

वादा ज़रूर करते हैं आते नहीं कभी
फिर ये भी चाहते हैं शिकायत कभी ना हो

[shikaayat=complaint]

शाम-ए-विसाल भी ये तग़ाफ़ुल ये बेरुख़ी
तेरी रज़ा है मुझको मसर्रत कभी ना हो

[visaal=union/meeting; taGaaful=neglect; beruKhii=aloofness caused by anger]
[razaa=will/desire; masarrat=happiness]

अहबाब ने दिये हैं मुझे किस तरह फ़रेब
मुझसा भी कोई सादा तबीयत कभी ना हो

[ahabaab=friends (plural of habiib); fareb=deception]

लब तो ये कह रहे हैं के उठ, बढ़ के चूम ले
आँखों का ये इशारा के जुर्रत कभी ना हो

[jurr’at=daring]

दिल चाहता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन
मुझको तो तेरे ख़याल से फ़ुर्सत कभी ना हो

--कृष्ण मोहन

देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग

हर क़दम पर नित नये सांचे में ढल जाते हैं लोग
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग

किस लिए कीजिए किसी गुम-गश्ता जन्नत की तलाश
जब कि मिट्टी के खिलौनों से बहल जाते हैं लोग

कितने सादा-दिल हैं अब भी सुन के आवाज़-ए-जरस
पेश-ओ-पास से बे-खबर घर से निकल जाते हैं लोग

शमा की मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बे-न्याज़
अक्सर अपनी आग मैं चुप चाप जल जाते हैं लोग

शाएर उनकी दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप
ठोकरें खा कर तो सुनते हैं संभल जाते हैं लोग

हिमायत अली शाएर

तू बहुत देर से मिला है मुझे

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे

दिल धड़कता नहीं सुलगता है
वो जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे

लबकुशा हूँ तो इस यक़ीन के साथ
क़त्ल होने का हौसला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

कौन जाने के चाहतों में 'फ़राज़'
क्या गँवाया है क्या मिला है मुझे

--अहमद फ़राज़

Audio : https://sites.google.com/site/mmgulaamalighazals/ZindgiSeYehiGilaHaiMujhe%40Mp3HunGama.Com.mp3?attredirects=0&d=1

Tuesday, November 22, 2011

तो ये तय है के अब उम्र भर नहीं मिलना

तो ये तय है के अब उम्र भर नहीं मिलना
तो फिर ये उम्र ही क्यूँ गर तुझसे नहीं मिलना
--अज्ञात


Audio : http://musicmahfil.blogspot.com/2011/11/ustaad-ghulam-ali-very-famous-name-of.html

Sunday, November 20, 2011

उसकी आदत है, वो अपनों को भुला देता है

जाने किस चीज़ की वो मुझको सज़ा देता है
मेरी हँसती हुई आँखों को रुला देता है

किसी तरह बात लिखूं दिल की उससे, वो अक्सर
दोस्तों को मेरे खत पढ़ के सुना देता है

सामने रख के निगाहों के वो तस्वीर मेरी
अपने कमरे के चरागों को बुझा देता है

मुद्दतों से तो खबर भी नहीं भेजी उसने
उसकी आदत है, वो अपनों को भुला देता है

--वसी शाह

Saturday, November 19, 2011

न थी दुश्मनी किसी से, तेरी दोस्ती से पहले

हमें कोई गम न था, गम-ए-आशिकी से पहले
न थी दुश्मनी किसी से, तेरी दोस्ती से पहले

ये है मेरी बदनसीबी, तेरा क्या कुसूर इसमें
तेरे गम ने मार डाला, मुझे जिंदगी से पहले

मेरा प्यार जल रहा है, ए चाँद आज छुप जा
कभी प्यार कर हमें भी, तेरी चांदनी से पहले

ये अजीब इम्तेहान है, कि तुम्ही को भूलना है
मिले कब थे इस तरह हम, तुम्हे बेदिली से पहले

न थी दुश्मनी किसी से, तेरी दोस्ती से पहले

--फैयाज़ हाशमी

हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाय !! मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं

हम अभी तो हैं गिरफ्तार-ए-मोहब्बत यारो
ठोकरें खा के सुना था कि संभल जाते हैं

ये कभी अपनी जफा पर न हुआ शर्मिन्दा
हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं

उम्र भर जिनकी वफाओं पे भरोसा कीजे
वक़्त पड़ने पे वही लोग बदल जाते हैं

--बशीर बद्र

नज़र उठाओ ज़रा तुम तो क़ायनात चले

नज़र उठाओ ज़रा तुम तो क़ायनात चले,
है इन्तज़ार कि आँखों से कोई बात चले

तुम्हारी मर्ज़ी बिना वक़्त भी अपाहज है
न दिन खिसकता है आगे, न आगे रात चले

न जाने उँगली छुड़ा के निकल गया है किधर
बहुत कहा था जमाने से साथ साथ चले

किसी भिखारी का टूटा हुआ कटोरा है
गले में डाले उसे आसमाँ पे रात चले

--गुलज़ार

Audio : http://tanhayi.mywebdunia.com/2008/11/11/1226401126621.html

बेकरारी गयी, करार गया

बेकरारी गयी, करार गया
तर्क-ए-इश्क और मुझको मार गया

वो जो आये तो खुश्क हो गए अश्क
आज गम का भी ऐतबार गया

हम न हंस ही सके, न ही रो सके
वो गए या हर इख्तियार गया

आप की जिद-ए-बे-महल से कलीम
सब की नज़रों का ऐतबार गया

आ गए वो तो अब ये रोना है
लुत्फ़-ए-गम, लुत्फ़-ए-इंतज़ार गया

किस मज़े से तेरे बगैर "खुमर"
बे जिए ज़िंदगी गुज़ार गया

--खुमार बरबनकवी

रहें ज़िन्दा सलामत यार मेरे

करे दरिया ना पुल मिस्मार मेरे
अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे

{{मिस्मार=destroy}}

बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊँ घर को
कहेंगे क्या दर-ओ-दीवार मेरे

वहीं सूरज की नज़रें थीं ज़ियादा
जहाँ थे पेड़ सायादार मेरे

वही ये शहर है तो शहर वालो
कहाँ है कूचा-ओ-बाज़ार मेरे

तुम अपना हाल-ए-महजूरी सुनाओ
मुझे तो खा गये आज़ार मेरे

{{हाल-ए-महजूरी=state of separation; आज़ार=illness/woes}}

जिन्हें समझा था जान_परवर मैं अब तक
वो सब निकले कफ़न बर_दार मेरे

{{जान=life; परवर=protector/nourisher}}
{{कफ़न-बर_दार=shroud bearer}}

गुज़रते जा रहे हैं दिन हवा से
रहें ज़िन्दा सलामत यार मेरे

दबा जिस से उसी पत्थर में ढल कर
बिके चेहरे सर-ए-बाज़ार मेरे

{{सर-ए-बाज़ार=in public}}

दरीचा क्या खुला मेरी ग़ज़ल का
हवायें ले उड़ी अशार मेरे

{{दरीचा=window; अशार=plural of sher (couplet)}}

--महाशर बदायूनी

http://urdupoetry.com/mahashar01.html

मैं ये कैसे मान जाऊं के वो दूर जा के रोये

मेरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोये
मेरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोये

[दास्तान-ए-हसरत=tale of desire]

कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो के फ़साना-ए-मुहब्बत
मैं उसे सुना के रो~uuँ वो मुझे सुना के रोये

[अहल-ए-दिल=resident of the heart;; फ़साना=tale]

मेरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-नातवाँ की हसरत
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोये

[नातवाँ=weak; शादमाँ=happy]

तेरी बेवफ़ाइयों पर तेरी कज_अदाइयों पर
कभी सर झुका के रोये कभी मूँह छुपा के रोये

[बेवफ़ाई=infidelity; कज-अदाई=crudity/lack of gentility]

जो सुनाई अन्जुमन में शब-ए-ग़म की आप_बीती
कई रो के मुस्कुराये कई मुस्कुरा के रोये

[अन्जुमन=gathering; आप-बीती=first hand experience]

--सैफुद्दीन सैफ

Source : http://www.urdupoetry.com/saif03.html

गरज़ सजदा करवाती है, इबादत कौन करता है

कोई जन्नत का तलबगार है, कोई गम से परेशान है
गरज़ सजदा करवाती है, इबादत कौन करता है

--अज्ञात

उसको भूला मगर नहीं जाता

तेरी बातों पे गर नहीं जाता
मेरे शानो से सर नहीं जाता

मैं भी गलियों में कम ही फिरता हूँ
वो भी अब बाम पर नहीं जाता
[बाम=छत]

लाख उसने भुला दिया हमको,
उसको भूला मगर नहीं जाता

शब-ए-हिजरां भी कट ही जायेगी
हिजर में कोई मर नहीं जाता
[शब-ए-हिजरां=जुदाई की रात]
[हिजर=जुदाई]

शिकवा-ए-दाग-ए-ज़ख्म है वरना,
कौन सा ज़ख्म भर नहीं जाता
[शिकवा-ए-दाग-ए-ज़ख्म=complaint of scar of wound]

रब्त-ए-आशोब-ओ-ज़ब्त-ए-रुसवाई
दिल का इक ये हुनर नहीं जाता
[रब्त-ए-आशोब-ओ-रुसवाई=Relation with Problems and Control of Infamy]

आह !! जाता हूँ घर अकेले मैं
साथ इक नौहा-गर नहीं जाता
[नौहा-गर=Mourner, A person who attends a funeral as a relative or friend of the dead person]

ध्यान सजदों में तुझ पे रहता है
काबे जाता हूँ, पर नहीं जाता

कितना रोता है उसकी यादों में
हैफ !! 'यारा' तू मर नहीं जाता

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मेरी यादों से अगर बच निकलो

मेरी यादों से अगर बच निकलो
तो वादा है मेरा तुमसे
मैं खुद दुनिया से कह दूंगा
कमी मेरी वफ़ा में थी

--अज्ञात

कैसी गुज़र रही है, सभी पूछते हैं

कैसी गुज़र रही है, सभी पूछते हैं
कैसे गुजारता हूँ, कोई पूछता नहीं
--अज्ञात

Tuesday, November 15, 2011

तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत

तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत
हम जहाँ में तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं

--हसरत जयपुरी

Source : http://lyricsindia.net/songs/show/6530

दुनिया करती रही तेरे वजूद को तलाश

दुनिया करती रही तेरे वजूद को तलाश
हमने तेरे ख़याल को मोहब्बत बना लिया

--अज्ञात

Sunday, November 13, 2011

दिन रात माह-ओ-साल से आगे नहीं गये

दिन रात माह-ओ-साल से आगे नहीं गये,
हम तो तेरे ख्याल से आगे नहीं गये,

लोगों ने रोज़ ही नया मांगा खुदा से कुछ,
एक हम तेरे सवाल से आगे नहीं गये

सोचा था मेरे दुःख का मुदावा करेंगे कुछ
वो पुरसिश-ए-मलाल से आगे नहीं गए
[मुदावा=Cure]
पुरसिश=Inquiry, To Show Concern (About)

क्या जुल्म है की इश्क का दावा उन्हें भी है
जो हद-ए-एतदाल से आगे नहीं गए

- मोहतरमा शबनम शकील

Saturday, November 12, 2011

कुछ न हाथ लगा तेरे, ऐसे मेरा दिल तोड़ के

कुछ न हाथ लगा तेरे, ऐसे मेरा दिल तोड़ के
हमें तो गम-ए-इश्क की सल्तनत मिल गयी
--अज्ञात

किसी ने ज़हर कहा है, किसी ने शहद कहा,

किसी ने ज़हर कहा है, किसी ने शहद कहा,
कोई समझ ही नहीं पाता है, ज़ायका मेरा
--राहत इंदोरी

Wednesday, November 9, 2011

जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता

आग़ाज़ तो होता है अन्जाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता

[aaGaaz = start; anjaam = end/result]

जब ज़ुल्फ़ की कालिख में घुल जाये कोई रही
बद_नाम सही लेकिन गुम_नाम नहीं होता

[kaalikh = blackness]

हँस हँस के जवाँ दिल के हम क्यों ना चुनें टुकड़े
हर शख़्स की क़िस्मत में इनाम नहीन होता

बहते हुए आँसू ने आँखों से कहा थम कर
जो मै से पिघल जाये वो जाम नहीं होता

दिन डूबे हैं या डूबी बारात लिये कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता

--मीना कुमारी 'नाज़'

Source : http://www.urdupoetry.com/meena02.html

दोस्तों से शिकायतें होंगी,

जो किसी का बुरा नहीं होता,
शख्स ऐसा भला नहीं होता !

दोस्तों से शिकायतें होंगी,
दुश्मनों से गिला नहीं होता !

हर परिंदा स्वयं बनाता है,
अर्श पे रास्ता नहीं होता !

इश्क के कायदे नहीं होते,
दर्द का फ़लसफ़ा नहीं होता !

फ़ितरतन गल्तियां करेगा वो,
आदमी देवता नहीं होता !

ख़त लिखोगे हमें कहाँ आखिर,
जोगियों का पता नहीं होता !

--अज्ञात

Source : http://shivomambar.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html

तुम भी उस वक़्त याद आते हो

ना हो गर आशना नहीं होता
बुत किसी का ख़ुदा नहीं होता

तुम भी उस वक़्त याद आते हो
जब कोई आसरा नहीं होता

दिल में कितना सुकून होता है
जब कोई मुद्दवा नहीं होता

हो ना जब तक शिकार-ए-नाकामी
आदमी काम का नहीं होता

ज़िन्दगी थी शबाब तक "सीमाब"
अब कोई सानेहा नहीं होता

--सीमाब अकबराबादी

Source : http://www.urdupoetry.com/singers/JC284.html

Tuesday, November 8, 2011

मेरी आँखों में नमी का ही समां रहता है

मेरी आँखों में नमी का ही समां रहता है
दिल में एक दर्द जो मुद्दत से जवां रहता है

वो जो कहता था कह बिछड़ेंगे तो मर जायेंगे
अब ये मालूम नहीं है के कहाँ रहता है

एक उसको मेरी चाहत की ज़रूरत न रही
वरना मेरा तो तलबगार जहां रहता है

वो समझता है के मैं भूल गया हूँ उसको
खुद से भी ज्यादा मुझे जिस का ध्यान रहता है

यूं उदासी मेरे सर पर है मुसल्लत जैसे
जैसे दिल पे कोई ज़ख्मों का निशां रहता है

--अज्ञात

Monday, November 7, 2011

बेवफ़ा तेरे रूठ जाने से

बेवफ़ा तेरे रूठ जाने से
आँख मिलती नहीं ज़माने से

आरिज़ा हो गया है रोने का
चन्द घड़ियों के मुस्कुराने से

(आरिज़ा : compensate)

कितने तूफ़ान उठेंगे साहिल पर
एक कश्ती के डूब जाने से

ढूँढ आया तुझे ज़माने में
तुम कहाँ गुम हो एक ज़माने से

अब तो दुनिया से जा रहा हूँ मैं
लौट आओ इसी बहाने से

किस क़दर बढ़ गयी है लज़्ज़त-ए-गम
शिद्दत-ए-गम में मुस्कुराने से

(शिद्दत-ए-गम : intensity of Pain)

दार ही को गले लगाओ शमीम
मौत बेहतर है सर झुकाने से

--शमीम जयपुरिया

नयी ख्वाहिश रचाई जा रही है

नयी ख्वाहिश रचाई जा रही है
तेरी फुरकत मनाई जा रही है
(फुरकत : separation)

निभाई थी न हमने जाने किस से
के अब सब से निभाई जा रही है

--जौन एलिया

Source : http://aligarians.com/2007/05/nayii-khvaahish-rachaaii-jaa-rahii-hai/

खुद को पढ़ता हूँ, छोड़ देता हूँ

खुद को पढ़ता हूँ, छोड़ देता हूँ
एक वर्क रोज मोड़ देता हूँ

इस क़दर ज़ख्म हैं निगाहों में
रोज एक आइना तोड़ देता हूँ

मैं पुजारी बरसते फूलों का
छु के शाखों को छोड़ देता हूँ

कासा-ए-शब में खून सूरज का
कतरा कतरा निचोड़ देता हूँ
(कासा-ए-शब : begging bowl of the night)

कांपते होंट भीगती पलकें
बात अधूरी ही छोड़ देता हूँ

रेत के घर बना बना के फराज़
जाने क्यूं खुद ही तोड़ देता हूँ

--ताहिर फराज़

http://aligarians.com/2007/05/khud-ko-parhtaa-huun-chhor-detaa-huun/

फूल सा कुछ कलाम और सही

फूल सा कुछ कलाम और सही
एक गज़ल उसके नाम और सही

उसकी जुल्फें बहुत घनेरी हैं
एक शब का कयाम और सही
(कयाम=stay)

ज़िंदगी के उदास किस्से हैं
एक लड़की का नाम और सही

करसियों को सुनाइये गज़लें
क़त्ल की एक शाम और सही

कपकपाती है रात सीने में
ज़हर का एक जाम और सही

--बशीर बद्र

http://aligarians.com/2007/05/phuul-saa-kuch-kalaam-aur-sahii/

बस एक ख़याल चाहिए था

कब उसका विसाल चाहिए था
बस एक ख़याल चाहिए था
(विसाल=meeting)

कब दिल को जवाब से गरज़ थी
होंटों को सवाल चाहिए था

शौक़ एक नफस था, और वफ़ा को
पास-ए-माह-ओ-साल चाहिए था
(नफस : moment, माह-ओ-साल : months and years)

एक चेहरा-ए-सादा था जो हमको
बे-मिस्ल-ओ-मिसाल चाहिए था
(बे-मिस्ल-ओ-मिसाल : incomparable)

एक कर्ब में ज़ात-ओ-ज़िंदगी हैं
मुमकिन को मुहाल चाहिए था

--जौन एलिया

Source : http://aligarians.com/2008/04/kab-uskaa-visaal-chaahiye-thaa/

भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का

इरादा छोड़ दिया उसने हदों से जुड़ जाने का
ज़माना है, ज़माने की निगाहों में न आने का

कहाँ की दोस्ती, किन दोस्तों की बात करते हो
मियाँ दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का

निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का

ये मैं ही था बचा के खुद को ले आया किनारे तक
समंदर ने बहुत मौका दिया था डूब जाने का

--वसीम बरेलवी

Sunday, November 6, 2011

दिल को कब्र बना कर जाते तो अच्छा था

दिल को कब्र बना कर जाते तो अच्छा था
अरमानो को इसमें दफना कर जाते तो अच्छा था

जुदाई की सज़ा बड़ी तकलीफ देती है
मुझे दीवारों में चुनवा कर जाते तो अच्छा था

तुम्हारे बाद इन हसरतों का क्या होगा
इन्हें कफ़न पहना कर जाते तो अच्छा था

यू रोता छोड़ कर न जाते मुझको
मेरे दिल को बहला कर जाते तो अच्छा था

तेरी खातिर छोड़ सकते इस ज़माने को
इक बार हमें अजमा कर जाते तो अच्छा था

यूं दोस्ती पर दाग लगा कर न जाते था
रस्म-ए-दोस्ती निभा कर जाते तो अच्छा था

मेरी मय्यत में शिरकत तो न कर सके लेकिन
कब्र को फूलों से सजा कर जाते तो अच्छा था

हमारी आखों से नींद चुरा कर चले गए
मीठी नींद हमें सुला कर जाते तो अच्छा था

सागर को अंधेरों में तनहा छोड़ चले
दीप कोई जला कर जाते तो अच्छा था

दिल को कब्र बना कर जाते तो अच्छा था
अरमानो को इसमें दफना कर जाते तो अच्छा था

--अज्ञात



जो न मिल सके वही बेवफा

जो न मिल सके वही बेवफा, ये बड़ी अजीब सी बात है
जो चला गया मुझे छोड़ कर वही आज तक मेरे साथ है
जो मिल सके वो ही बेवफा ..........

जो किसी नजर से अदा हुई वही रौशनी है ख्याल में
वो न आ सके रहूँ मुंतजर, ये खलिश कहाँ थी विसाल में
मेरी जुस्तजू को खबर नहीं, न वो दिन रहे न वो रात है
जो चला गया मुझे छोड़ कर वही आज तक मेरे साथ है
जो मिल सके वो ही बेवफा ..........

करे प्यार लब पर गिला न हो, ये किसी किसी का नसीब है
ये करम है उसका जफा नहीं, वो जुदा भी रह कर करीब है
वो ही आँख है मेरे रूबरू, उसी हाथ में मेरा हाथ है
जो चला गया मुझे छोड़ कर वही आज तक मेरे साथ है
जो मिल सके वो ही बेवफा ..........

मेरा नाम तक जो न ले सका, जो मुझे करार न दे सका
जिसे इख़्तियार तो था मगर, मुझे अपना प्यार न दे सका
वही शख्स मेरी तलाश है, वो ही दर्द मेरी हयात है
जो चला गया मुझे छोड़ कर वही आज तक मेरे साथ है
जो मिल सके वो ही बेवफा ..........

Writer : Unknown.
[Sung by Noor Jahan]

Saturday, November 5, 2011

वो हर किसी को मुस्कुरा के देखते हैं

आज सारे चराग बुझा के देखते हैं
ज़िंदगी तुझे और पास आ के देखते हैं

अमावसों की रात गर देखना हो चाँद
हम उन्हें छत पे बुला के देखते हैं

मेरी रुखसती पे ये कैसी बेचैनी है उनको
मुझे जो जीने पे आ आ के देखते हैं

जब खुल के की बात, तो शरमा गयी वो
चलो आज खुद ही शरमा के देखते हैं

ये इश्क की कसौटी कोई आसान नहीं प्यारे
परवाने खुद को जला के देखते हैं

तू आशिक न सही बीमार समझ ही इनायत कर दे
हम इक बार ज़ोर से कराह के देखते हैं

उन्हें पसंद हैं आप, ये ग़लतफहमी ठीक नहीं
वो हर किसी को मुस्कुरा के देखते हैं

दुनिया भर के अफकारों से सुकून नहीं पाया
चलो आज माँ के पाँव दबा के देखते हैं

गर बेरुखी ही है अंजाम-ए-दोस्ती
फिर आज किसी दुश्मन से हाथ मिला के देखते हैं

हम गिरे तो क्या उनकी औकात तो नहीं बदली
देखो वो अब भी 'मिश्रा' को सर झुका के देखते हैं

--अभिषेक मिश्रा

और मैंने समझा के मेरा जवाब आया है

जब भी कभी हुस्न पे शबाब आया है
तो तेरे शहर ने समझा, इन्कलाब आया है
उन्होंने लौटाया मेरा ही लिखा खत मुझको
और मैंने समझा के मेरा जवाब आया है

--अज्ञात