कुछ खुशी के साए में और कुछ ग़मों के साथ
ज़िंदगी कट गयी है उलझनों के साथ
आज तक उस थकान से दुख रहा है बदन
एक सफ़र मैंने किया था ख़्वाहिशों क साथ
किस तरह खाया है धोखा क्या बताऊँ तुम्हें
दोस्तों के मशवरे थे साज़िशों क साथ
इस दफ़ा सावन में तेरी याद के बादल रहे
इस दफ़ा मैं खूब रोया बारिशों के साथ
शहर में कुछ लोग मेरे चाहने वाले भी थे
फूल भी लग रहे थे पत्थरों के साथ
--अज्ञात
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