Sunday, November 1, 2009

कुछ खुशी के साए में और कुछ ग़मों के साथ

कुछ खुशी के साए में और कुछ ग़मों के साथ
ज़िंदगी कट गयी है उलझनों के साथ

आज तक उस थकान से दुख रहा है बदन
एक सफ़र मैंने किया था ख़्वाहिशों क साथ

किस तरह खाया है धोखा क्या बताऊँ तुम्हें
दोस्तों के मशवरे थे साज़िशों क साथ

इस दफ़ा सावन में तेरी याद के बादल रहे
इस दफ़ा मैं खूब रोया बारिशों के साथ

शहर में कुछ लोग मेरे चाहने वाले भी थे
फूल भी लग रहे थे पत्थरों के साथ

--अज्ञात

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