राहों पे नज़र रखना, होंटों पे दुआ रखना
आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना
इस रात की शम्मा को इस तरह जलाए रखना
अपनी भी खबर रखना, उसका भी पता रखना
तन्हाई के मौसम में सायों की हुकूमत है
यादों के उजालों को सीने से लगा रखना
रातों को भटकने की देता है सज़ा मुझको
दुश्वार है पहलू में दिल तेरे बिना रखना
लोगों की निगाहों को पढ़ लेने की आदत है
हालात की तहरीरें चेहरे से बचा रखना
फूलों में रहे अगर दिल तो याद दिला देना
तन्हाई के लम्हों का हर ज़ख्म हरा रखना
एक बूँद भी अश्कों की दामन न भिगो पाए
गम उसकी अमानत है, पलकों पे सजा रखना
इस तरह कही उससे बरताव रहे अपना
वो भी न बुरा माने, दिल का भी कहा रखना
--कतील शिफाई
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Thursday, November 15, 2012
आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना
Thursday, May 5, 2011
कुबूल हमने किये जिसके गम खुशी की तरह
किया है प्यार जिसे हमने जिंदगी की तरह
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह
किसे खबर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चांदनी की तरह
बढ़ा के प्यास मेरी उसने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह
सितम तो ये है के वो भी न बन सका अपना
कुबूल हमने किये जिसके गम खुशी की तरह
कभी न सोचा था हमने कतील उसके लिए
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह
--कतील शिफाई
Friday, January 7, 2011
वो रुलाता है, रुलाये मुझे जी भर के कतील
वो रुलाता है, रुलाये मुझे जी भर के कतील
वो मेरी आँख है, मैं उसको रुलाऊं कैसे?
--कतील शिफाई
Wednesday, March 17, 2010
अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको
अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको
मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
ये तेरी सादादिली मार ना डाले मुझको
मैं समंदर भी हूँ मोती भी हूँ ग़ोताज़न भी
कोई भी नाम मेरा लेके बुलाले मुझको
तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू ना गँवाले मुझको
कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या ना रहूँ
जितना जी चाहे तेरा आज सताले मुझको
ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको
मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझ से बचाकर दामन
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजाले मुझको
मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामाँ प्यारे
तू दबे पाँव कभी आके चुराले मुझको
तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको
वादा फिर वादा है, मैं ज़हर भी पी जाऊं कतील
शर्त ये है कोई बाहों में संभाले मुझको
--कतील शिफाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel04.html
Thursday, October 22, 2009
प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं
बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी
एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं
रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने
आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं
सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने
वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं
तुम तो शायर हो 'कतील' और वो इक आम सा शख़्स
उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं
--क़तील शिफाई
Sunday, June 7, 2009
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हालाकि फिल्म में इस गज़ल में बदलाव कर के पेश किया गया है
Original गज़ल इस प्रकार है, और कतील शिफ़ाई द्वारा लिखी गई है
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं
बच निकलते हैं अगर आतिह-ए-सय्याद से हम
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफ़ाम से जल जाते हैं
ख़ुदनुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं
शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिये
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं
जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं
रब्ता बाहम पे हमें क्या ना नहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैग़ाम से जल जाता है
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel22.html
Saturday, June 6, 2009
तुम पूछो और मैं ना बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं
किस को ख़बर थी सँवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं
माना जीवन में औरत एक बार मोहब्बत करती है
लेकिन मुझको ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं
ख़त्म हुआ मेरा अफ़साना अब ये आँसू पोँछ भी लो
जिस में कोई तारा चमके आज की रात वो रात नहीं
मेरे ग़म-गीं होने पर अहबाब हैं यों हैरान क़तील
जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं
--क़तील शिफाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel18.html
Saturday, April 4, 2009
तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शक्स
उसने चाहा भी तुझे और जताया भी नही
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel16.html
Sunday, March 29, 2009
तुम पूछो और मैं न बताऊँ, ऐसे तो कोई हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है, और तो कोई बात नहीं
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel18.html
अब जिसके जी में आये वही रौशनी पाये
हमने तो दिल जला के सरे आम रख दिया
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel29.html
क्यूँ बक्श दिया मुझ से गुनाहगार को मौला
क्यूँ बक्श दिया मुझ से गुनाहगार को मौला
मुनसिफ़ तो किसी से रियायत नही करता
--क़तील शिफ़ाई
इंसान, और देखे बगैर, उसको मान ले
इक खौफ़ का बशर ने खुदा नाम रख दिया
--क़तील शिफ़ाई
Source : http://www.urdupoetry.com/qateel29.html