Wednesday, January 29, 2014

एक दिल है के रहता है तरफदार उसी का

जाते थे मेरे हक़ में सब ही फैसले मगर
मुनसिफ ने भी हर बार दिया साथ उसी का

एक वो है के यूँ तोड़ दिए रिश्ते सभी हमसे
एक दिल है के रहता है तरफदार उसी का

--अज्ञात

Sunday, January 26, 2014

ठहरी ठहरी सी तबियत में रवानी आई

ठहरी ठहरी सी तबियत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई

आज फिर नींद को आँखों से बिछडते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई

मुद्दतों बाद चला उन पर हमारा जादू
मुदत्तो बाद हमें बात बनानी आई

मुद्दतो बाद पशेमा हुआ दरिया हमसे
मुद्दतों बाद हमें प्यास छुपानी आई

मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई

इतनी आसानी से मिलती नहीं फन की दौलत
ढल गयी उम्र तो गजलो पे जवानी आई

--इकबाल अशर 

उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से

उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से
वो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से

वो शखस एक ही लम्हे में टूट-फुट गया
जिसे तराश रहा था में एक ज़माने से

रुकी रुकी से नज़र आ रही है नब्ज़-इ-हयात
ये कौन उठ के गया है मरे सरहाने से

न जाने कितने चरागों को मिल गयी शोहरत
एक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से

उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे जिसके यूँ मुस्कुराने से

--इकबाल अशर

Thursday, January 23, 2014

ये रात ये तन्हाई और ये तेरी याद

ये रात ये तनहाई और ये तेरी याद

मैं इश्क न करता तो कब का सो गया होता

--अज्ञात

Tuesday, January 21, 2014

उसे फुरसत नहीं मिलती ज़रा सा याद करने की

उसे फुरसत नहीं मिलती ज़रा सा याद करने की
उसे कह दो हम उसकी याद में फुरसत से बैठे हैं

--अज्ञात

किस्मत भी साथ नहीं देती

किस्मत भी साथ नहीं देती
बिलकुल तेरे जैसी है

--अज्ञात

Friday, January 17, 2014

बिछड़ के तुमसे ज़िन्दगी सज़ा लगती है

बिछड़ के तुमसे ज़िन्दगी सज़ा लगती है
ये सांस भी जैसे मुझसे ख़फ़ा लगती है

तड़प उठते हैं दर्द के मारे
ज़ख्मो को जब तेरे शहर की हवा लगती है

अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किससे करूँ
मुझको तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफा लगती है

--अज्ञात

Thursday, January 16, 2014

वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं

वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुःख झेले आजमाए कौन

आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आये कौन

जावेद अख्तर

Tuesday, January 14, 2014

मैं जानता हूँ कि ख़ामोशी में ही मस्लहत है

मैं जानता हूँ कि ख़ामोशी में ही मस्लहत है
मगर यही मस्लहत मेरे दिल को खल रही है

जावेद अख्तर
[मस्लहत=समझदारी]

Sunday, January 5, 2014

चेहरा बता रहा था कि बेचारा मरा है भूख से

चेहरा बता रहा था कि बेचारा मरा है भूख से
सब लोग कह रहे थे कि कुछ खा के मर गया

--अज्ञात

Thursday, January 2, 2014

वो अपना भी नहीं पराया भी नहीं

वो अपना भी नहीं पराया भी नहीं
ये कैसी धूप है जिसका साया भी नहीं
किसी को चाहा ज़िन्दगी की तरह
उससे दूर भी रहे और भुलाया भी नहीं

--अज्ञात

Wednesday, January 1, 2014

रिश्वत भी नहीं लेता कम्बख्त जान छोड़ने की,

रिश्वत भी नहीं लेता कम्बख्त जान छोड़ने की,
ये तेरा इश्क तो मुझे केजरीवाल लगता हैं...

--अज्ञात