सारे नूर की रौशनी उस चेहरे मे सिमट आई है
देखने के बाद उसको चाँदनी भी शरमाई है
रोक दिया धड़कनो को उसने जलवानुमा होकर
क़ातिल निगाहों ने दिल पर बिजली गिराई है
इस मासूमियत पर उसका भी लगता है दिल आ गया
शरारती ये लट रुखसार चूमने को चली आई है
वक़्त भी रुक जाता है देखने को ये अंदाज़ उसका
किस नज़ाकत से वो लट गालों से हटाई है
दिल दीवाना हुआ है उसकी ऐसी ही अदाओं का
जैसे हया से, मुस्का के उसने अपनी चूड़ी घुमाई है
उसका रह रह कर मुस्कुराना खुद ही ये बताता है
जिस हुस्न के सब हैं दीवाने, वो भी किसी का तमन्नाई है
--रेहान खान
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Saturday, June 12, 2010
सारे नूर की रौशनी उस चेहरे मे सिमट आई है
यूं इश्क़ का असर होगा सोचा ना था
यूं इश्क़ का असर होगा सोचा ना था
उसका दिल मेरा घर होगा सोचा ना था
मासूम निगाहों से उलझ बैठे क्या पता था
निशाना हम और तीर-ए-नज़र होगा सोचा ना था
इतनी मासूमियत से जान लेगा वो हमारी
इल्ज़ाम-ए-क़त्ल हम पर होगा सोचा ना था
इश्क़ की बाज़ी जीतने का जुनूं इस हद तक
की दाव पर दिल जिगर होगा सोचा ना था
जादू ऐसा चला देगा कोई दिल पर
ये सब से बेख़बर होगा सोचा ना था
नाज़ो अदा की बिजलियों के तमन्नाई थे हम भी मगर
इतना हसीन सितमगर होगा सोचा ना था
--रेहान खान
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