धुंध सी छाई हुई है आज घर के सामने
कुछ नज़र आता नहीं है अब नज़र के सामने
सर कटाओ या हमारे सामने सजदा करो
शर्त ये रख दी गयी है हर बशर के सामने
सोचता हूँ क्यूं अदालत ने बरी उसको किया
क़त्ल करके जो गया सारे नगर के सामने
देर तक देखा मुझे और फ़िर किसी ने ये कहा
आज तो मुझको पढ़ो मैं हूं नज़र के सामने
कल सड़क पर मर गये थे ठंड से कुछ आदमी
देश की उन्नति बताते पोस्टर के सामने
लौटना मत बीच से पूरा करो अपना सफ़र
हल करो वो मुश्किलें जो हैं डगर के सामने
--नित्यानंद तुशार
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